उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन में बह रही है उल्टी गंगा,नियुक्ति विभाग बना महामहिम राज्यपाल से ज्यादा शक्तिशाली

उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन की उल्टी गंगा

लखनऊ :सभी पाठको को होली की हार्दिक शुभकामनाऐ और बधाई अब आते है पावर कार्पोरेशन की विषेश खबर पर । जब से विघान सभा मे पुलिस वालो को जनप्रतिनिधियो के साथ हुई अभद्रता मे सजा सुनाऐ जाने की खबर संज्ञा मे आयी तभी से मै सोच मे पड गया कि उत्तर प्रदेश मे महामहिम राज्यपाल के अधिकारो के हनन की सजा क्या हो सकती है या फिर उत्तर प्रदेश की लालफीता शाही अपनी मन मर्जी चलाती रहेगी।

वैसे खबर का शीर्षक पढ कर सभी को हैरानी हो रही होगी कि आखिरकार मुख्य मंत्री के आधीन रहने वाली राजशाही/ ब्यूरोक्रेट इतने ताकतवर कैसे हो गयी कि उसने उत्तर प्रदेश के महामहिम राज्यपाल महोदया के स्थान पर नियुक्ति कर दी! जी हाँ यह सम्भव हुआ है उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन , उत्तर प्रदेश ट्रांसमीशन कार्पोरेशन लिमिटेड व उत्तर प्रदेश उत्पादन निगम व उत्तर प्रदेश के विभिन्न वितरण निगमो के अध्यक्ष व प्रबन्ध निदेशको की नियुक्ति मे।

तो मामला यह है कि जब उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद का विघटन हुआ और अस्तित्व मे आया उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड , उत्तर प्रदेश जल विद्युत लिमिटेड और उत्तर प्रदेश उत्पादन निगम व पारेषण निगम लिमिटेड तीनो कम्पनियो का दि कम्पनी 1956 एक्ट मे रजिस्ट्रेशन हुआ और सभी कम्पनियो का मेमोरेंडम आफ आर्टिकल भी बना ।

नयी नयी बनी कम्पनियो मे नियमतः तीन अलग-अलग अध्यक्ष , प्रबंध निदेशक और निदेशक मंडल बनाऐ जाने थे जिनका कि चयन विज्ञापन के माध्यम से आए प्रतिभागियो को चयन कर के होना था। जबकि चयन व नियुक्ति का अधिकार उत्तर प्रदेश के महामहिम राज्यपाल का है। महामहिम के द्वारा प्रतिभागियो मे से चुने गये योग्यतम प्रतिभागियो मे से योग्यतम को चुन कर अध्यक्ष पदो और फिर प्रबन्ध निदेशको व निदेशक मण्डल के प्रतिभागियो की नियुक्ति करनी थी।

परन्तु उत्तर प्रदेश राज्य के इतने अच्छे दिन इतनी जल्दी कहा आने वाले थे यहां पर उत्तर प्रदेश मे बैठे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियो ने नियमो को ताक पर रख कर अस्थाई तौर पर तीनो निगमो के अध्यक्ष पद की कमान अस्थाई रूप से अपने हाथ मे ले ली। तब से यानि कि सन् 2000 से अब तक कई सरकारे आयी और चली गयी। लेकिन अध्यक्ष पद की कुर्सी जो कि अस्थाई रूप से भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारीगणो के पास थी वो आज भी उन्ही के हाथो मे चली आ रही है। वैसे तो किसी ने भी मेमोरेंडम आफ आर्टिकल पढने की फुर्सत थी ना ही किसी ने जरूरत समझी।

जो हो रहा है वो सही यह परम्परा कायम हो गयी कि इन तीनो कम्पनियो का एक ही अध्यक्ष होने लगा ना तो कभी किसी ने इस प्रश्न के बारे मे सोचा ना ही किसी पत्रकार ने सवाल उठाए। इसी अव्वस्था के बीच एकदम से एक पत्रकार ने इन भारतीय प्रशासनिक सेबा के अधिकारीगणो को अवैध रूप से नियुक्त लिखना शुरू किया। लेकिन उससे भी किसी ने यह सवाल नही पूछा कि आखिरकार यह नियुक्तिया अवैध या असवैधानिक कैसे ?

वर्तमान मे अवैध रूप से पदासीन भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी जो कि तीन कम्पनियो के अवैध अध्यक्ष है उन्होने बहुत से कर्मचारीयो , अधिकारियो व अभियन्ताओ को पदो से बर्खास्त करना शुरू कर दिया। अब यह बडका बाबू जी/ अवैध अध्यक्ष यह बताने का कष्ट करे कि इनकी नियुक्ति इस पद पर कैसे हुई और महामहिम राज्यपाल ने इनको कब इस पद के योग्य मान कर इस पद पर आरूढ कर दिया? , कब इन्होने ने इस पद के लिए आवेदन किया था, कब दी कम्पनी एक्ट 1956 के अन्तर्गत इनकी नियुक्ति हुई है?
जब जनाब की खुद की नियुक्ति वैध नही है तो फिर यह यहा वैध रूप से नियुक्त लोगो को बर्खास्त कैसे कर सकते है? इस यक्ष प्रश्न का उत्तर अभी मिलना शेष है ।

इसी तरह दि कम्पनी एक्ट 1956 के अन्तर्गत बने मेमोरेंडम आफ आर्टिकल मे प्रदत शक्तियो का प्रयोग करते हुए महामहिम राज्यपाल ने जब प्रबन्ध निदेशक उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन के पद पर इन्जीनियर ए पी मिश्रा की नियुक्ती करी थी प्रबन्ध निदेशक पावर कार्पोरेशन के पद पर से इन्जीनियर ए पी मिश्रा के इस्तीफे के बाद अस्थाई रूप से चार्ज तत्कालीन प्रबन्धन निदेशक उत्पादन निगम विशाल चौहान को अतिरिक्त कार्यभार के रूप मे सौपा गया। उसके बाद वही अतिरिक्त कार्यभार अपर्णा यू , एम देवराज और वर्तमान मे पंकज कुमार के पास यह अस्थाई चार्ज चला आ रहा है।

क्यो कि ए पी मिश्रा के इस्तीफे के बाद तो कोई भी नियुक्ति महामहिम राज्यपाल द्वारा तो की नही गयी है तो यह प्रबन्ध निदेशक भी अवैधानिक रूप से इस महत्वपूर्ण पद पर विराजमान है, और सारे महत्वपूर्ण निर्माण ले रहे है और नियम विरुद्ध आदेश भी दे रहे है। इसी तरह से सभी डिस्कॉमो के चुने हुए प्रबन्ध निदेशको के सेवानिवृत्त होने के बाद यह चार्ज अस्थाई रूप से भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारीगणो के हाथो मे तब तक के लिए है जब तक दी कम्पनी एक्ट 1956 के अन्तर्गत बने मेमोरेंडम आफ आर्टिकल के हिसाब से नयी नियुक्तिया नही हो जाती।

लेकिन यहाँ निदेशको की तो नियुक्तिया हो रही है लेकिन प्रबन्ध निदेशक अवैध रूप से बैठे है। तभी तो कह रहा हूँ कि यहाँ उल्टी गंगा बह रही है। वैध रूप से नियुक्त के ऊपर अवैध रूप से बैठे शासन कर रहे है। मनपढ इतने की सारे नियम कानून ताक पर रख कर राज्यपाल के आदेश के ऊपर अपना आदेश लाद देते है जिन निदेशको की नियुक्ति की समयावधी राज्यपाल के आदेशानुसार पूरी हो गयी है। उन्ही को अपने आधीन विषेश कार्यकारी अधिकारी नियुक्त कर उनसे काम ले रहे है यह अवैध रूप से नियुक्त बडकऊ के कारनामे है ।

वैसे विद्युत कर्मचारी सयुंक्त संघर्ष समिती मेमोरेंडम आफ आर्टिकल लागू करने की माग कर रही है लेकिन कोई उनके बडे नेताओ से यह भी तो पूछे कि आखिर यह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी / बडका बाबू अध्यक्ष और प्रबन्ध निदेशक कैसे बने सिर्फ नियुक्ति विभाग ने स्थानातरण कर देने भर से यह सभी सस्थाओ के अध्यक्ष , प्रबंध निदेशक बन गये ? क्यो इन नेताओ ने आज से पहले मेमोरेंडम आफ आर्टिकल के बारे मे नही बोला? क्यो इस सम्बन्ध मे आन्दोलन नही किया ? क्या यह लडाई वर्तमान अध्यक्ष को हटाने तक है या फिर मेमोरेंडम आफ आर्टिकल लागू कराने तक चलेगी? यह तो भविष्य ही बताएगा कि वो जो आज साहिबे मसनद है वो नही रहेगे
किरायदार है जाती मकान थोडे है । खैर
युद्ध अभी शेष है

संवाद
अविजित आनन्द संपादक

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