राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बड़ी धूम धाम से मनाया रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस,जाने क्या है इसकी खासियतें?
छिंदवाड़ा
से
विशेष संवाददाता
मनोज डोंगरे की एक खास रिपोर्ट
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा मनाया गया रानी दुर्गावती बलिदान दिवस
छिंदवाड़ा। आज खजरी चौक छिंदवाड़ा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महाविद्यालय कार्यविभाग छिंदवाड़ा द्वारा पूजन एवं मल्यार्पण का कार्यक्रम रखा गया। जिसमें रानी दुर्गावती के समक्ष दीप प्रज्वलित करके कार्यक्रम की शुरुआत की गई व वीरांगना रानी दुर्गावती की मूर्ति पर माल्यार्पण किया गया।
इस अवसर पर जिला महाविद्यालय प्रमुख अमन सोनी ने बताया कि भारत के इतिहास में मुगलों को चुनौती देने वाले शासकों की सूची में महाराणा प्रताप और शिवाजी महाराज का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।. लेकिन इस सूची में ये दो नाम अकेले नहीं थे। इसमें एक नाम गोंडवाना की रानी दुर्गावती का भी है जिन्होंने अकबर की सेना में नाक में दम कर दिया था। आज उनका बलिदान दिवस मनाया जा रहा है।
उन्हें ना केवल आखिरी दम तक मुगल सेना को रोक कर अकबर की उनके राज्य पर कब्जा करने की हसरत को कभी पूरा नहीं होने दिया।
आज भी पुरे हिन्दू समाज व गोंडवाना क्षेत्र में उन्हें उनकी वीरता और अदम्य साहस के अलावा उनके द्वारा किए जनकल्याण कार्यों के लिए याद किया जाता है। उन्होंने बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी जैसी युद्ध कलाओं की शिक्षा ली थी। अकबरनामा में भी रानी दुर्गावती का जिक्र है जिसमें कहा गया है कि वो तीर और बंदूक चलाने में खासे माहिर थीं।. दुर्गावती के पति दलपत शाह का मध्य प्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र में रहने वाले गोंड वंशजों के 4 राज्यों, गढ़मंडला, देवगढ़, चंदा और खेरला, में से गढ़मंडला पर अधिकार था। दुर्भाग्यवश रानी दुर्गावती से विवाह के कुछ वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया।पति के निधन के समय दुर्गावती के पुत्र नारायण की उम्र मात्र 5 वर्ष की ही थी।. इसलिए रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन अपने हाथों में ले लिया।. उनके राज्य का केंद्र वर्तमान जबलपुर था।. रानी ने 16 साल तक इस क्षेत्र में शासन किया और एक कुशल प्रशासक की अपनी छवि निर्मित की।
आगे उन्होंने बताया कि अकबर ने रानी दुर्गावती को एक सोने का पिंजरा भेजकर कहा था कि रानियों को महल के अंदर ही सीमित रहना चाहिए, लेकिन दुर्गावती ने तीखा जवाब दिया जिससे अकबर तिलमिला उठा। अकबर वैसे भी अपना साम्राज्य का दक्षिण में विस्तार कर ही रहा था और मालवा पर कब्जाकर चुका था। उसने गोंडवाना को भी अपने कब्जे में करने के लिए आसिफ खां को गोंडवाना में आक्रमण करने का आदेश दिया।
अकबर की सेना द्वारा गोंडवाना में हमले के दौरान दुर्गावती ने अपने बेटे नारायण के साथ घोड़े में सवार होकर तलवार लेकर दुश्मनों पर हमला कर दिया। उनके साहस को देखकर मुगल सेना में भगदड़ मच गई इस हार से घबराकर आसिफ खां ने रानी को शांति का प्रस्ताव भेजा, लेकिन रानी ने प्रस्ताव ठुकरा दिया।लेकिन आसिफ खां ने कुछ दिन बाद दूसरी बार हमला किया और फिर मुंह की खाई। तीसरी बार आसिफ खां ने दोगुनी ताकत से हमला किया। इस युद्ध में रानी के वीर पुत्र वीर नारायण ने सैकड़ों सैनिकों को मारकर वीरगति को प्राप्त की।
24 जून 1564 को हुए हमले में रानी ने केवल 300 सैनिकों साथ सैंकड़ों मुगल सैनिकों को मारा और बहादुरी से लड़ रही थीं कि अचानक एक तीर आकर उनकी आंख में लगा लेकिन उन्होंने खुद को दुश्मनों को जिंदा पकड़ने नहीं दिया अपनी ही कटार छाती में उतार कर बलिदान दे दिया। जबलपुर के पासमंडला रोड पर स्थित रानी की समाधि बनी है। कार्यकम में जिला महाविद्यालय प्रमुख अमन सोनी, नगर कार्यवाह ठा.राजासिंह राजपूत, आदेश साहू, राहुल जीं, नगर महाविद्यालीन प्रमुख शिवांश साहू, अनिरुद्ध देशवाड़े, नगर join rss प्रमुख आकाश पटेल व अन्यं महाविद्यालिन छात्र उपस्थित थे।