जो एक दबंग नेता BJP में तूती बोलती थी ,आज उनका वक्त ऐसा भी है ना तो वे मोदी मोदी करते है ना ही कोई आडवाणी आडवाणी करता है ऐसे क्यो ?क्या अंजान डर से चुप रहते है आडवाणी जी ?

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रिपोर्टर.

राजनीति में जिस किसी की आवाज़ में दम होता है, लोग उसी के नक्कारे की आवाज़ सुनना पसंद करते है औऱ वही दबंग आवाज़ का नेता सत्ता के भोग का आनन्द प्राप्त करता है।

राजनीति में कभी कभी बाई चांस मिलने वाली सफलता या जीवन में परिवर्तन होने वाले स्टार पर भरोसा किया जाता है।

परन्तु आडवाणी जी की Life में साथ ऐसा कोई परिवर्तन नही दिख रहा है।
इसी स्तिथी के शिकार लालकृष्ण आडवाणी जी है, समय, सत्ता और अपनों ने जिस प्रकार से साथ छोड़ने का मन बना लिया है।

एक समय था जब आडवाणी जी की भाजपा में तूती बोलती थी, या यूं कहें कि संस्थापक के तौर पर बिना विचार विमर्श के कोई फ़ैसला नही लिया जाता था।
समय परिवर्तन, प्रकृति का नियम है, दिन के बाद रात का होना एक नियम है।

तो अडवाणी जी इससे कैसे अछूते रह जाते,आज समय के चक्र में लालकृष्ण आडवाणी जी का हाल कमोवेश यही नज़र आ रहा है।

एक के बाद दूसरी और दूसरे के बाद तीसरी उम्मीद इस प्रकार से टूट रही है जैसे रात के अंधेरे में छत पर लेटने वाले लोग आसमान से टूटते हुए तारो को देखते है और सोचते है कि टूटे हुए तारे को देखकर जो भी विश मांगी जाएगी, वह अवश्य पूरी होती है?

आडवाणी जी भी अपनी विश के पूरे होने का लम्बा इंतजार कर रहे हैं,लेकिन मुराद कब तक पूरी होगी ? यह ना तो आडवाणी जी जानते है औऱ ना ही कोई दूसरा?
आडवाणी जी ने क्यों चुप्पी साध लिया है ? क्या कोई डर उनको सता रहा है, या किसी उम्मीद में अपने जीवन का निर्वाह कर रहे है !

गौर तलब हो कि राष्ट्रपति चुनाव के लिये जब रामनाथ कोविंद जी ने अपने 71वर्ष ०१ अक्टूबर १९४५-:- जीवन परिचय- परौख गांव, कानपुर में जन्म, १६ वर्ष दिल्ली उच्च न्यायालय व सुप्रीम कोर्ट में वकालत, दो वर्ष दिल्ली उच्चन्यायालय में सरकारी वकील, १३वर्ष सुप्रीम कोर्ट में सरकारी वकील, १९९४ में राज्यसभा सांसद बने,१९९८ से २००२ तक दलित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष, भाजपा उत्तर प्रदेश में प्रवक्ता की आयु में दाख़िल पर्चा प्रकिया के दौरान जब स्पोर्ट करने वाले नेताओं के साथ मंच पर मौजूद थे ।

तो उस समय दाहिनी तरफ रामनाथ कोविंद जी और बायीं ओर से मोदी जी लालकृष्ण आडवाणी जी के हाथों को उठा रहे थे।

तो साफ ज़ाहिर हो रहा था कि आडवाणी जी बेमन औऱ बुझे बुझे से नज़र आ रहे थे।
क्या यह भी आडवाणी जी की मजबूरी थी या कोई डर अथवा दबाव रहा है ?
इसका जवाब तो केवल और केवल आडवाणी जी या डर पैदा करने वाला ही दे सकता है!

भाजपा के संस्थापक सदस्य के तौर पर क्या उनसे मुख्यमंत्री, केद्रीय मंत्री या कोई साधरण नेता मिलने आता हैं?
आडवाणी जी ने अपने आवास पर प्रेस कांफ्रेंस हाल तक बनवा रखा है।
एक समय था जब पत्रकारों के सवाल जवाब और कैमरो की चमक दमक से आडवाणी जी की कोठी लोगों के हुजूम से भरी रहती थी परन्तु अब अमिट से होती जा रही हैं।

राष्ट्रपति चुनाव में कोविंद जी मार्गदर्शक मण्डल से मुलाकात करेंगें,परन्तु सच्चाई इसके परे है अब तो ना कोई मार्ग है और ना ही कोई दर्शक है।

भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में अब ना कोई संस्क्रति दिखती है और ना ही राष्ट्र का बौद्धिक प्रेम ही?
अब तो केवल भाजपा राष्ट्रद्रोह के सर्टिफिकेट बाटने, वन्देमातरम, तलाक़ औऱ गौरक्षको की पार्टी लगने लगी है।

वही भाजपा हाशिये से समेट कर एक नयी नैय्या को किनारे लगाने वाले बलवंत और दूरदर्शी नज़र रखने वाले दामोदरदास मोदी (प्रधानमंत्री) जी की जय जय औऱ जय के नारों पर एक नई स्फूर्ति, एक नई ऊर्जावान के रूप मे अग्रसर नज़र आ रही है।

कुछ लोगो ने यहाँ तक कहा कि आडवाणी जी को विपक्ष अपना राष्ट्पति उम्मीदवार बना ले, सुझाव देने वालो को पता नही है, कि विपक्ष की हालत भी अडवाणी जी से अधिक खराब है।

आक्सीजन के बूते पर चल रही विपक्ष की हालत इस प्रकार है कि “मार खाने वाले से यह बोला जाए कि चिल्लाए तो औऱ रगड़ दिये जाओगे”!
कमोवेश भाजपा में सपा, बसपा और अन्य सभी दल तो दिख रहे है, परन्तु आडवाणी जी कही दिखाई नही दे रहे है !

सोशल मीडिया में भाजपा का सिक्का सबसे ऊपर है।
भाजपा के लोग टिवटर पर अपने अपने विचार रख रहे है लेकिन कही भी आडवाणी जी की चर्चा अथवा नाम नज़र नही आ रहा है?

उनसे मिलने कौन आता होगा, क्या कोई आडवाणी आडवाणी करता होगा.या सब मोदी मोदी करते होंगे ?

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