बाबरी मस्जिद की शाहदत, पर दिल को छू लेने वाली ये एक् सच्ची कहानी बाबरी मस्जिद को शहीद करनेवाले शख्स की ज़बानी !

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रिपोर्टर,

ऐसा क्या असर हुआ  क़ि बाबरी मस्जिद को ढहाने वाले वाले आज खुद ही इस्लाम के अनुयाई बन गए ?

पढ़ें उनकी खुद की जुबानी जिन्होंने सबसे पहले बाबरी मस्जिद की गुम्बद पर चोट की थी।

बाबरी मस्जिद को ढहाने वाले वाले ने कहा, ‘कोई इस्लाम का अनुयायी किसी मंदिर को गिराकर मस्जिद नहीं बना सकता ।

आज  हम आपको उस शख्स की मुंह जबानी और उनसे किए गए कुछ सवालों के जवाब  से रूबरू करवाते है, जिन्होंने बाबरी मस्जिद पर सबसे पहला  हथौड़ा  चलाया था।

जब किसी धार्मिक स्थल को तोड़ना आसान नहीं तो फिर एक मस्जिद को कैसे तोड़ दिया गया  ?

इस सवाल के  जवाब  में कहा क़ि  रामायण नामक एक सीरियल बनाया गया उस के द्वार लोगों के अंदर रामनाम की आस्था पैदा की गई फिर इसी इसी आस्था को बाबरी विध्वंश में काम लाया गया।

समस्त साधु समाज को जोड़ने के लिए 1990चरण पादुका यात्रा चलाई गई जिसके द्वारा समस्त साधु समाज को एक किया गया !

जिस समय यह यात्रा चलाई गयी उस समय देश के 4096 सीटें थी फिर 40 हजार रथ पुरे देश में भेजे गए  थे।

उन्होंने पूरे देश का चक्कर लगाया और इस यात्रा की कामयाबी के बाद 6 दिसंबर  को एक छड्यंत्र रचा गया ।फिर एक नारा दिया गया‘राम लला हम आएंगे मंदिर वही बनाएंगे’ इस नारे ने अपना काम दिखाना शुरू कर दिया।

मोहम्मद आमिर उर्फ़ (बलवीर) जिन्होंने बाबरी मस्जिद की शहादत का पूरा आँखों देखा हाल सुनाया।

मोहम्मद आमिर उर्फ़ बलवीर वह शख्स है जिन्होंने बाबरी मस्जिद पर पहला  वार किया था।

बाद में जब इन्होंने इस्लाम को करीब से जानने की कोशिश की तो इस धर्म को इन्होंने सबसे अच्छा मजहब माना और इन्होंने अपनी ज़िन्दगी में इस्लाम को अपनाया।

जिस पर हम ने मोहम्मद आमिर उर्फ़ बलवीर से कुछ सवाल किए  क्या आप मस्जिद  को गिराने से पहले मस्जिद के अंदर गए थे?

जवाब  यूँ दिया क़ि हाँ  मैं मस्जीद पर हमला होने से पहले मस्जिद के अंदर गया था।

मैंने वहां बना मेंबर देखा सब चीजें जैसी की तैसी थी पूरी मस्जिद सफ़ेद रंग के संगेमरमर की चादर ओढ़ें हुए थी।

पूछे  गए सवाल  क़ि आप को मस्जिद के ऊपर जाने का रास्ता कैसे मिला आप कैसे मस्जिद के ऊपर पहुचे?

इस सवाल का जवाब  इस तरह दिया क़ि बाबरी मस्जिद के  पास, बगल से गुजरने वाले मानस भवन रोड की तरफ हमें भेजा गया जहाँ बाबरी मस्जिद पर चढ़ने केलिए सीढ़िया  मौजूद थी. ।

और मस्जिद को गिराने आने वाले औजार  और हथियार वहाँ पर्याप्त मात्रा में मौजूद थे और रस्सियां पहले से वहां मौजूद थी जिन को पड़कर मैं ऊपर चढ़ा !

मुझे बीच का गुम्बद तहस् नहस करने का टारगेट दियागया था, सो में अपने जूनून  के साथ ऊपर चढ़ रहा था ।

लेकिन डर यह भी था क़ि जिस तरह मुलायम सिंह ने कार सेवकों पर गोलियां चलवाई थी, कही ऐसा हादसा आज मेरे साथ भी न हो जाये?

फिर में ऊपर चढ़कर नारा लगाया ‘राम लाला हम ज़रूर आएंगे मंदिर यही बनाएंगे। पूछे गए ’सवाल  क़िआप को डर किस बात का था ?

जवाब में कहा हम लोगों  ने नारा लगा दिया था ‘कसम खाते है राम मंदिर यही बनाएंगे ।

जब हम ऊपर थे तो वहां एक हेलीकाप्टर आया वह हेलीकॉप्टर सर्वे करने आया ।

तब गुम्बद पर चढ़ने वाले लोग उस हेलीकाप्टर को देखकर डर गए थे हम सब लोग बहुत डरे हुए थे।

क़ि अब फायरिंग होगी और हम सब मारे जाने वाले हैं, कुछ देर बाद हेलीकॉप्टर चला गया !

हेलीकॉप्टर जाने के बाद बहुत देर तक सन्नाटा पसरा रहा सब चुप चाप थे कोई किसी की तरफ इशारा तक नहीं कर रहा था. अचानक नीचे से आवाज आई घबराने की कोई जरुरत नहीं है

हमला करो मेने एक घबराहट भरे अंदाज में पहला वार बाबरी मस्जिद के गुम्बद पर किया और दूसरा वार किया यहाँ तक की तीसरा वार किया।

जिस के बाद मेरी घबराहट बढ़ गई, मेरे हाथ कांपने लगे.उस वक़्त मेरा दिल बहुत तेजी से धड़कने लगा मुझे दिखाई नहीं दे रहा था।

मेरे सामने अँधेरा छा गया जब मैने पलट कर देखा तो मेरे सभी साथी जा चुके थे अब मेरी घबराहट बहुत बढ़ती चली गई मुझे लगा मेरी मौत करीब आ गई है !

मुझे बहुत पसीना आने लगा मेरा में अपने आप पर संयम खोने लगा था मेरा बैलेंस बिगड़ने लगा अगर में वहां से गिर जाता तो इतनी ऊंचाई से गिर कर मेरी मौत ही हो जाती वही दूसरा डर यह सता रहा था क़ि मुस्लिम लोग मुझे अब नहीं छोड़ेंगे?

मगर कुछ देर बाद मेरा साथी जोगेन्दर पाल आया और वह मुझे किसी तरह नीचे उतार लाया मुझे व स्वामी दयानंद दादू  को नारनोल हरयाणा वाले कार्यालय में ले जाया गया जहाँ मुझे पानी पिलाकर तस्सली दी गई.।

उस के बाद मेरी जिंदगी में एक नया मोड़ आ गए में उन सब घटनाओं को बार बार सोच रहा था, मगर उस पूरी मस्जिद में कोई हिस्सा ऐसा नहीं था।

जिसमे यह साबित हो सके की उस इमारत को किसी दुसरी इमारत को गिराकर वनाया गया हो?

उस मस्जिद क हर हिस्सा  बेहद ही खूबसूरत  था।,.इस घटना के बाद मेने इस्लाम का गहन अध्यन किया ।

जिसमें मुझे पता चला की कोई इस्लाम का अनुयायी किसी मंदिर को गिराकर मस्जिद नहीं बना सकता क्योकि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुचाना इस्लाम के सिद्धन्तो के खिलाफ है।

मैंने अपने अध्यन में इस्लाम को श्रेष्ठ और अमन शांति का मजहब पाया जिसके बाद मेने अपनी ज़िन्दगी में इस्लाम को अपनाया है।

इस्लाम तो क्या कोई भी मज़हब आपस में बेर करना नहीं सिखाता लेकिन कुछ लोगों ने धर्म की आध में लोगों को बहक कर इनको नापाक कर रखा हुआ है।

आम जनता सियासी मोहरा बनी हुयी है। और इनका कुछ भी नहीं जाता भुगतना और मरना आम इंसान को पढता है

लश्कर भी तुम्हारा है। सरदार भी तुम्हारा है., तुम सच को झूठ लिख दो अखबार भी तुम्हारा है. सरकार भी तुम्हारी है दरबार भी तुम्हारा है। किस में है इतना दम ?हम किसके पास जाएं कौन करेगा इन्साफ?

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