मुगल काल की चांदनी चौक जो आज के दौर में पुरानी दिल्ली की रग रग में दौड़ रही है,पुराने दौर में तो एक अलग ही रंग में रंगी हुई थी,जानिए पूरा वाकया

नई दिल्ली
संवाददाता
उस्मान खान अंता

मुगल काल में चांदनी चौक, जो आज पुरानी दिल्ली की रग-रग में दौड़ती है, उस वक्त एक अलग ही रंग में रंगी हुई थी. स्वपना लिड्डल ने अपनी किताब “चॉंदनी चौक: द मुगल सिटी ऑफ ओल्ड दिल्ली” में लिखा है कि, आज का चांदनी चौक, शाहजहाँबाद का एक हिस्सा हुआ करता था।

एक ज़माने में ये वो शानदार राजधानी शहर था, जिसे 17वीं सदी में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था. लिड्डल बताती हैं कि जिस शहंशाह ने ताजमहल जैसा हसीन नमूना एक नायाब तोहफे के रूप में दुनिया को दिया, वही शाहजहाँ, शाहजहाँबाद को मुगलिया वैभव की इंतहा बनाना चाहते थे।

बताते चलें कि इस शानदार नजारे की रीढ़ थी चांदनी चौक। इतिहास बताता है कि इसे शाहजहाँ की लाडली बेटी, जहाँआरा बेगम ने डिजाइन किया था। विलियम डालरिम्पल नाम के एक इतिहासकार ने अपनी किताब “द लास्ट मुगल” में लिखा है कि जहाँआरा बेगम अपने इंतजामिया हुनर के लिए जानी जाती थीं। उन्होंने चांदनी चौक को एक ऐसे बाज़ार के रूप में खयाल किया जिसे चार भागों में बांटा जाएगा: उर्दू बाज़ार, जौहरी बाज़ार, अशरफी बाज़ार और फतेहपुरी बाज़ार. हर एक बाज़ार किसी खास चीज़ के लिए मशहूर होता, और इस बंटवारे से यह यकीनी होता था कि कारोबार बिना किसी रुकावट के चलता रहे।

निकोलो मनूची जैसे यूरोपीय सैलानियों ने भी अपने खयालात किताबों में लिखे. उनकी किताब का नाम है “स्टोरिया डो मोगोर”. मनूची ने चांदनी चौक के खूबसूरत नजारे के बारे में लिखा है, खासकर वहां बीच से निकलने वाली नहर के बारे में
मनूची के मुताबिक, इस नहर में चांद की रोशनी पड़ती थी, जिसकी वजह से इस बाज़ार का नाम “चांदनी चौक” पड़ा. जहाँआरा बेगम के इस ख्याल ने ना सिर्फ बाज़ार की खूबसूरती बढ़ाई, बल्कि ये नहर एक मकसद भी पूरा करती थी – उस ज़माने में सामानों को इधर-उधर ले जाने के लिए किश्तियों का इस्तेमाल होता था, ये नहर उनके लिए काफी मददगार साबित होती थी।

चमक-धमक के अलावा, चांदनी चौक आर्थिक गतिविधियों का भी केंद्र था. इर्विन की ने अपनी किताब “इंडिया: ए हिस्ट्री” में लिखा है कि ये बाज़ार अंतरराष्ट्रीय व्यापार का गढ़ था. यहां मध्य एशिया, फारस और यूरोप तक के व्यापारी आया-जाया करते थे। ये लोग अपने सामानों का कपड़ा, मसालों और दूसरी भारतीय चीज़ों से लेन-देन करते थे। इस तरह के लेन-देन से न सिर्फ मुगल बादशाहों का खजाना भरता था बल्कि पूरे साम्राज्य में कला और संस्कृति का भी आदान-प्रदान होता था।

मुगल काल में चांदनी चौक, मुगल राजवंश की कलात्मक सोच, बेहतरीन प्लानिंग और आर्थिक समझ का सबूत है। ये खूबसूरती, व्यापार और संस्कृतियों के मिलन का एक ऐसा चौराहा था, जो अपने शिखर पर रहे विशाल मुगल साम्राज्य की एक झलक दिखाता है।
इतिहास की एक झलक।

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