बुंदेलखंड की सियासत में डकैतों का दशकों चला राज वोट डालने के लिए किया करते थे फरमान

बुंदेलखंड
संवाददाता
पंकज पाराशर छतरपुर

लोकसभा चुनाव का रण, बुंदेलखंड की सियासत में दशकों चला डकैतों का राज, वोट डालने के लिए जारी करते थे फरमान.

बुंदेलखंड की सियासत दशकों तक डकैतों के इर्द-गिर्द घूमती रही। बीहड़ में बैठे डाकू जिसे चाहते थे, उसे चुनाव जिता देते थे। इसके लिए वे बाकायदा फरमान जारी करते थे। चुनावी हवा का रुख मोड़ना उनके लिए बाएं हाथ का खेल होता था।

80 के दशक में उत्तर प्रदेश के हिस्से में आने वाले बुंदेलखंड के सात में से छह जिलों झांसी, जालौन, बांदा, महोबा, हमीरपुर व चित्रकूट में दस्युओं का दबदबा था। मध्य प्रदेश की बुंदेलखंड में भी दस्यु दस्तक देते थे। दस्यु ददुआ, निर्भय सिंह गुर्जर और ठोकिया ने खुद को बीहड़ का बादशाह घोषित कर दिया था। बदलते वक्त के साथ डकैतों ने सियासतदानों को अपना रहनुमा बनाया और बाद में वे खुद सरपरस्त बन गए।

एक दौर ऐसा भी रहा जब नेता जीत के लिए दस्युओं से फरमान जारी कराते थे। बाद में डकैतों के परिजन खुद मैदान में उतरने लगे। इसमें पहला नाम दुर्दांत डकैत ददुआ का आता है, जिसकी चित्रकूट, महोबा, बांदा व मध्य प्रदेश के इलाकों में तूती बोलती थी। इसका फायदा उठाकर ददुआ अपने बेटे वीर सिंह को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाने में कामयाब हो गया।

साल 2007 में ददुआ एनकाउंटर में मारा गया, लेकिन तब तक उसके परिवार का राजनीतिक साम्राज्य खड़ा हो चुका था। उसका बेटा वीर सिंह सपा के टिकट पर चित्रकूट विधानसभा क्षेत्र से विधायक बना, जबकि भाई बाल कुमार पटेल मिर्जापुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद बनने में कामयाब हो गए थे। भतीजे राम सिंह ने भी सपा के टिकट पर प्रतापगढ़ की पट्टी विधानसभा सीट से चुनाव जीता था।
ददुआ की तरह ही अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया के परिजनों ने भी राजनीति में हाथ आजमाया था।

साल 2005 में ठोकिया की चाची सरिता बांदा के कर्वी ब्लॉक की निर्विरोध प्रमुख चुनी गई थीं। जबकि, दूसरी चाची सविता को उसने निर्विरोध जिला पंचायत का सदस्य बनवा लिया था। साल 2007 में राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर मां पिपरिया देवी बांदा की नरैनी विधानसभा से चुनाव लड़ीं । वे ठोकिया के नाम पर सत्ताइस हजार वोट हासिल करने में कामयाब हो गई थीं। निर्भय सिंह गुर्जर का भी चुनावों में दखल रहा। झांसी के गरौठा, जालौन और भोगनीपुर की सियासत उसी की मर्जी से चलती थी। जिस पर हाथ रख देता, वही चुनावी दौड़ में वही आगे निकल जाता था।

सांसद बन गईं फूलन.

फूलन देवी झांसी मंडल के जालौन जिले के छोटे से गांव गोरहा का पूर्वा की थीं। 14 फरवरी 1981 को हुए बेहमई कांड के बाद फूलन देवी देश भर में सुर्खियों में आ गई थीं। जेल से रिहा होने के दो साल बाद 1996 में समाजवादी पार्टी ने उन्हें लोकसभा का टिकट दिया था। फूलन अपने पहले ही चुनाव में मिर्जापुर से सांसद बनने में कामयाब हो गईं। हालांकि, बाद में उनकी हत्या हो गई।

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