लहार विधानसभा क्षेत्र में BJP के लिए जीत हासिल कर पाना मुश्किल ही नही बल्कि नामुमकिन है क्यो ?
भोपाल :- मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीख जैसे जैसे नजदीक आती जा रही है, वैसे वैसे मुकाबला भी दिलचस्प होता जा रहा है।
प्रदेश में भले ही भाजपा की सरकार को लेकिन कई ऐसी सीटे प्राप्त है जिनपर सालों से कांग्रेस का राज है?
आजतक भाजपा इस पर अपनी जीत हासिल नही कर पाई है!
हम बात कर रहे है भिंड की लहार विधानसभा सीट की ।
यहां कांग्रेस विधायक डॉ.गोविन्द सिंह की तूती बोलती है।
लहार उन विधानसभाओं में से एक है जहां कांग्रेस की जीत का इतिहास ही नहीं बल्कि वर्तमान को भी पीछे छोड़े हुए है।
बताया जाता है कि यहां बीजेपी में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच मनमुटाव रहा है, जिसके कारण भाजपा की जीत पर असर पड़ा है।सिंह का यहां अच्छा दबदबा है, जिसके चलते इस बार भी उनके चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं, वही भाजपा भी 2013 में हारी सीटों पर दांव लगाने की कोशिश मे है।
इस सीट को हथियाने के लिए भाजपा इस बार पूरा दम लगा रही है।
डॉ. गोविंद सिंह 1990 से 2013 तक लगातार 6 बार से विधायक हैं।
जिसमें पहली बार 1990 में जनता दल से विधायक बने और उसके बाद 1993 से लगातार अब तक कांग्रेस से विधायक बनते चले आ रहे हैं।
यहां गोविंद सिंह के कारण कांग्रेस इतनी मजबूत स्थिति में है कि 2003 और 2008 के चुनाव में यहां बीजेपी प्रत्याशी की जमानत तक जब्त हो गई थी।
फिर 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पार्टी में दम भरने की कोशिश की और पार्टी ने पूर्व विधायक रसाल सिंह को मैदान में उतारा लेकिन उनकी हार हुई।
भाजपा की हालत लहार विधानसभा सीट पर इतनी कमजोर है कि इसे पटरी पर आने में बहुत समय लगेगा।
हालांकि भाजपा ऐसे उम्मीदवार की तलाश में है जो उन्हें इस किले पर फतह करा दे।
अगर भाजपा इस बार इस किले को भेदने में कामयाब होती है तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैl
जातिय समीकरण
यहां के जातीय समीकरण को देखा जाए तो ठाकुर (भदौरिया), ओबीसी, ब्राह्मण मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं।
जैन समाज और मुस्लिम समाज के मतदाताओं का प्रभाव रहता है।
दिग्गज हुए परास्त सपने हुए है अधूरे भिंड जिले में 11 लाख 39 हजार 799 मतदाता हैं, जिसमें से चार लाख 99 हजार 788 महिला मतदाता हैं।
61 साल पहले वर्ष 1957 में जिले में महिला मतदाताओं की संख्या एक लाख 10 हजार के करीब थी।
लहार की जनता ने 1962 में कांग्रेस के प्रभुदयाल को जीत दिलाई और 1967 में सरदू प्रसाद त्रिपाठी भारतीय जन संघ के टिकट पर विजयी हुए।
1977 में जनता पार्टी से रमा शंकर सिंह ने चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें चुनाव चिन्ह नहीं मिल सका तो उन्हें रेल का इंजन चुनाव चिन्ह से चुनाव लड़ना पड़ा और उन्हें जीत हासिल हुई।
अगला चुनाव 1980 में हुआ और यहां रमा शंकर चौधरी कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा तक पहुंचे और मंत्री भी बने।
इनके पिता राधो राम चौधरी भी 1997 में विधायक रह चुके है !
इसके बाद 1985 में मथुरा प्रसाद महंत भाजपा से चुनाव लड़ कर विजयी हुए।
फिर शुरूआत 1990 में डॉ. गोविन्द सिंह के युग की हुई और उन्होंने अपना पहला चुनाव जनता दल से लड़कर जीत हांसिल की और उसके बाद 1993 से लेकर 1998, 2003, 2008 और 2013 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और हर दफा जीत का जश्न मनाया !