मोदी तेरी कब्र खुदेगी,क्या आगामी वर्ष2024के लोक सभा चुनाव को देख खौफजदा हाल में नजर आ रहे है मोदीजी?
नई दिल्ली
संवाददाता: हिसामुद्दीन सिद्दीकी
2024 से खौफजदा दिखते पीएम मोदी
नई दिल्ली! जैसे-जैसे 2024 का लोक सभा एलक्शन नजदीक आता जा रहा है मुल्क की अपोजीशन पार्टियां इकट्ठा हो रही हैं ऐसा लगता है कि वैसे-वैसे वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी अपने सियासी मुस्तकबिल से खौफजदा नजर आ रहे हैं।
यह उनका खौफ ही है कि अब अपनी पार्टी के यौम-ए-तासीस (स्थापना दिवस) के मौके पर तकरीर करते हुए मोदी ने दो बातें बहुत जोर देकर कहीं, एक यह कि 2014 में देश आठ सौ साल से ज्यादा की गुलामी से बाहर निकला, 2014 में मिली आजादी सिर्फ सत्ता की तब्दीली नहीं थी बल्कि भारत अपना खोया हुआ वकार (गौरव) हासिल करने के लिए दोबारा उठ खड़ा हुआ है।
दूसरी बात जो वह बार-बार कह रहे हैं और उसे मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं वह यह है कि उनके मुखालिफीन कह रहे हैं ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’। इन बातों के जरिए दरअस्ल वह हिन्दुत्व को एक नई शक्ल में उभारना चाहते हैं।ठ सौ साल की गुलामी की उनकी बात से जाहिर होता है कि 2014 में उन्होने एलक्शन जीत कर मुगल हुकूमत को शिकस्त दी है।रहे कि 2014 में मोदी ने तो नहीं कहा था लेकिन आरएसएस और बीजेपी के कुछ छुटभय्या लीडरों ने जगह-जगह यह कहा था कि मोदी ने आठ सौ साल की मुगल हुकूमत को शिकस्त देकर हिन्दुओं को फतेह दिलाई है। गुजिश्ता साल मोदी की नजदीकी बन चुकी बड़बोली अदाकारा कंगना रानौत ने कहा था कि देश को असल आजादी 2014 में मिली, 1947 में तों अंगे्रजों ने गांधी और नेहरू को भीक में आजादी दी थी। अब लगता है कि कंगना रानाउत से यह बात कहलवाई गई थी।जीर-ए-आजम मोदी ने आठ सौ साल से ज्यादा की गुलामी से देश को बाहर निकलने की बात कहकर पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, अटल बिहारी वाजपेयी, इंदिरा गांधी और मनमोहन सिंह सभी की हुकूमतों को गुलामी बता दिया। हालांकि आठ सौ सालों में मुगलों की हुकूमत तो तकरीबन सवा तीन सौ साल ही रही। इसके बावजूद उन्होने आठ सौ साल की गुलामी कहकर यह साबित करने की कोशिश की है कि पृथ्वीराज चैहान के बाद से 2014 में उनके आने तक मुगलों, तातारियों, खिलजियों, गुलामों, लोधियों, अंग्र्रेजों और मराठों सभी की हुकूमतों में हम गुलाम ही थे। पीएम मोदी के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि 2013 से 2023 तक उन्होने देश से जितने वादे किए एक भी पूरा नहीं हुआ उल्टे उनके कई नजदीकी जानने वाले देश का हजारों करोड़ रूपया लेकर भाग गए फिलहाल वह अपने दोस्त गौतम अडानी की कम्पनियों के घपलों घोटालों में उलझे हुए हैं।आठ सौ साल की गुलामी का मुद्दा छेड़कर पीएम मोदी अपने हामियों और आम हिन्दुओं को पोलराइज करना चाहते हैं। पोलराइज करने की कोशिश कितनी कामयाब होती है इसका अंदाजा आने वाली तेरह मई को लग जाएगा जब कर्नाटक असम्बली के एलक्शन के नतीजों का एलान होगा। चुनावी अंदाजे लगाने के जितने भी तरीके मुमकिन होते हैं सभी का अंदाजा है कि कर्नाटक में बीजेपी बहुत बुरी तरह हार रही है। पार्टी शायद साठ से सत्तर सीटों तक ही सिमट जाएगी। अगर कर्नाटक के नतीजे बीजेपी के हक में नहीं आते हैं तो सीधे-सीधे पीएम नरेन्द्र मोदी की साख का सवाल बन जाएंगे और यहीं से 2024 के लिए उनकी सियासत की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। खुद मोदी ने कर्नाटक असम्बली के एलक्शन को अपनी साख का मुद्दा बना लिया है। पूरी बीजेपी सिर्फ नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर यह एलक्शन लड़ रही है। ठीक उसी तरह जैसे गुजिश्ता दिनों बीजेपी ने दिल्ली एमसीडी, गुजरात और हिमाचल प्रदेश असम्बली का एलक्शन लड़ा था और सिर्फ गुजरात जीत कर बड़े पैमाने पर जश्न भी मनाया था।पीएम मोदी अब जज्बाती (इमोशनल) कार्ड भी खूब खेल रहे हैं और अक्सर अवामी मीटिंगों में बोलते हैं कि आज वह (अपोजीशन) खुल कर कहने लगे हैं ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’, लेकिन देश कह रहा है ‘मोदी तेरा कमल खिलेगा’। यह उनकी गलतबयानी है किसी भी अपोजीशन पार्टी ने यह नहीं कहा है कि ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’। दरअसल गुजरात असम्बली के पिछले चुनाव में कांग्रेस के एक मकामी लीडर ने कह दिया था इस एलक्शन में मोदी की सियासी कब्र खुद जाएगी। उस बात को मोदी ने तोड़मरोड़ कर पेश करना शुरू कर दिया है।अगर बीजेपी कर्नाटक का एलक्शन हारती है तो मोदी देश के शायद पहले वजीर-ए-आजम हो जाएंगे जिनकी पार्टी का पूरे दक्खिन भारत से कोई ताल्लुक नहीं रहेगा। नेहरू के जमाने में तमिलनाडु और केरल तक में कांग्रेस सरकारें थी। इंदिरा गांधी के दौर में कर्नाटक और आंध्रप्रदेश कांग्रेस का मजबूत गढ हुआ करते थे। राजीव गांधी के दौर में तमिलनाडु में भले ही उनकी सरकार न रही हो बाकी तीन रियासतों में कांग्रेस सरकारें होती थी। यहां तक कि पंडित अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में कभी डीएमके तो कभी आल इंडिया अन्ना डीएमके की सरकारों में बीजेपी की साझेदारी रहती थी। अब अगर मोदी कर्नाटक में हारते हैं तो दक्खिन भारत से उनका राब्ता पूरी तरह खत्म हो जाएगा। केरल में बीजेपी का एक भी मेम्बर असम्बली नहीं है, तमिलनाडु में मामूली नुमाइंदगी है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बीजेपी बहुत कमजोर है वाजपेयी की जमाने में आंध्र प्रदेश की चन्द्र बाबू नायडू सरकार में भी बीजेपी शामिल हुआ करती थी।
याद रहे कि कर्नाटक के बाद बीजेपी दक्खिन भारत से पूरी तरह साफ हो जाएगी। पूरब में मगरिबी बंगाल, उड़ीसा, झारखण्ड और बिहार में फिलहाल बीजेपी की सरकारें बनती नजर नहीं आ रही हैं। खतरा मध्य प्रदेश में भी है। जहां इस साल के आखिर में असम्बली एलक्शन होना है। राजस्थान और छत्तीसगढ में पार्टी कमजोर है फिर 2024 में मोदी की बीजेपी इस दावे के साथ कैसे मैदान में उतरेगी कि देश के एक सौ चालीस करोड़ लोगों की ताकत नरेन्द्र मोदी के साथ है।