मुस्लिम समाज पर बीजेपी के जुल्मोसितम और अदालतों की खामोशी का राज
मुसलमानों पर बीजेपी के मजालिम और अदालतों की खामोशी
नरेन्द्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी की सरकारों वाली रियासतों में मुसलमानों पर हर तरह के जुल्म व जयादतियां हो रही हैं। लेकिन मोदी खामोश हैं तो यह बात समझ में आती है कि उनकी मर्जी मुताबिक ही ज्यादतियां की जा रही हैं। लेकिन देश की अदालतों को क्या हो गया?
चीफ जस्टिस आफ इंडिया से उम्मीद की जाती है कि मुसलमानों पर हो रहे जुल्म पर वह सो-मोटो नोटिस लेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। अदालतों ने मुसलमानों के मामले में ठीक उसी तरह से आंखें बंद कर रखी हैं जिस तरह अदालातों में हाथ में तराजू लिए खड़ी इंसाफ की देवी की आंखों पर पट्टी बंधी है। आखिर बीजेपी मुसलमानों के साथ क्या करना चाहती है?
बीजेपी सरकारों की कार्रवाइयों से तो ऐसा लगता है कि सरकारें मुसलमानों को उकसाकर क्राइम के रास्ते पर ढकेलना चाहती हैं ताकि फिर उन्हें लाॅ एण्ड आर्डर के नाम पर अच्छी तरह से ठीक किया जा सके। मुसलमान फिलहाल इस साजिश में फंसने के लिए तैयार नहीं है और हर ज्यादती को वह बर्दाश्त कर रहा है। लेकिन कब तक?
कहते हैं कि बिल्ली को भी अगर कोई मारते हुए दीवार तक ले जाए तो वह पलटकर हमला कर देती है। यहां तो इंसानों का मामला है। मुसलमानों की खामोशी की सिर्फ एक वजह है कि वह उन फिरकापरस्त ताकतों को अब मजबूत होने देना नहीं चाहते। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बंगाल में लोक सभा एलक्शन में फिरकापरस्त ताकतों को चोट पहुंची है उनसे मुकाबला करने का यही एक मुनासिब रास्ता है।
हालात यह हो गए हैं कि साधु के भेष में छुपे अहमदनगर महाराष्ट्र के खुद को संत बताने वाले रामगिरि ने पैगम्बरे इस्लाम (स.अ.व.) और उनकी जौजा की शान में खुले आम गुस्ताखी और तौहीनआमेज बयान दिया लेकिन मुसलमानों को उसके खिलाफ मुजाहिरा करने और नाराजगी जाहिर करने का भी अख्तियार नहीं दिया जा रहा है। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की कयादत में दगाबाज शिवसैनिकों और बीजेपी की मिली जुली सरकार है इसलिए राम गिरि के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई। देश के संविधान और कानून के मुताबिक समाज में बदअम्नी फैलाने और दो तबकों के दरम्यान नफरत फैलाने की हरकत कोई शख्स करता है तो उसके खिलाफ फौरन ही कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। लेकिन रामगिरि के मामलेे में महाराष्ट्र की मुस्लिम दुश्मन सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। रामगिरि खुद को संत कहता है लेकिन है वह शैतान। क्योकि कोई भी संत किसी दूसरे मजहब के पैगम्बरों की शान में गुस्ताखी कभी कर ही नहीं सकता। रामगिरि ने यौमे आजादी यानी 15 अगस्त को बयान दिया था। हफ्तों गुजर गए पूरे महाराष्ट्र और मुल्क के दूसरे कई प्रदेशों के मुसलमान उसके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मुजाहिरा कर रहे हैं लेकिन सरकार के कान पर जूं नहीं रेंग रही।
नीचे से ऊपर तक अदालतों ने भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी हैं।
बीजेपी की मुस्लिम दुश्मनी का आलम यह है कि मध्य प्रदेश के छतर पुर में भी रामगिरि के खिलाफ जुलूस निकला। जुलूस में शामिल लोग मेमोरण्डम देने जा रहे थे। थाने पर पुलिस और मुसलमानों के दरम्यान बहस हो गयी और पथराव हुआ। पथराव किसने किया आज तक यह बात पुलिस बता नहीं पायी? जुलूस में अंजुमन इस्लामिया कमेटी के साबिक सदर कांग्रेस लीडर हाजी शहजाद अली समेत शहर के कई जिम्मेदार शामिल थे। पुलिस ने फौरन ही तमाम इज्जतदार मुसलमानों को नामजद करते हुए रिपोर्ट दर्ज की। थाने पर हमला करने की रिपोर्ट दर्ज की।
हाजी शहजाद समेत कोई डेढ दर्जन लोगों को गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने बाकायदा उनका जुलूस शहर में निकलवाया और नारे लगवाए ‘अपराध करना पाप है पुलिस हमारी बाप है’। अगले दिन सुबह सवेरे छतरपुर एडमिनिस्ट्रेशन ने बीस हजार स्क्वायर फुट पर बने हाजी शहजाद के आलीशान मकान पर बुलडोजर चलवा दिया। कहा यह गया कि मकान बनाने के लिए नगर निगम से इजाजत नहीं ली गयी थी। मकामी लोगों ने कहा कि यह मकान बाजाब्ता पांच-सात साल से बन रहा था।
अगर निगम निगम से इजाजत नहीं ली गयी थी तो बनने क्यों दिया गया? हाजी शहजाद के घर के चारों तरफ दर्जनों मकान मौजूद हैं किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं। अगर एडमिनिस्टेªशन की बात मान भी ली जाए तो मकान गिराने के साथ-साथ मकान के बाहर खड़ी तकरीबन एक करोड़ रूपए की कीमत की गाड़ियों को जेसेबी से क्यों तोड़ा गया? वायरल वीडियो में साफ दिखता है कि जेसीबी के जरिए तीनों गाड़ियों को कबाड़ में तब्दील किया गया। अंदाजा है कि हाजी शहजाद के मकान की तामीर में पांच से बीस करोड़ रूपए तक खर्च हुए होंगे।
छतर पुर शहर एडमिनिस्टेªशन नें हाजी शहजाद के मकान के साथ जो किया उसके पींछे मकसद यही था कि शहर के बाकी मुसलमानों को भी सड़कों पर उतार कर उनकी पिटाई की जाए। बुलडोजर चलते देखकर खून तो सभी का खौला लेकिन मसलेहतन लोग खामोश रहे। मकान तोडे़ जाने का वीडियो देश ही नहीं विदेशों तक में वायरल है। सरकार तो ज्यादती कर रही है लेकिन खामोशी अख्तियार करके नीचे से ऊपर तक की अदालतें भी सरकार के जुर्म में शामिल हो गयी।
आज देश का मुसलमान चीफ जस्टिस आफ इंडिया की तरफ इस उम्मीद से देख रहा है कि शायद वह कुछ करें। सबकी जबान पर एक ही सवाल है कि चीफ जस्टिस साहब आपके रहते मुसलमानों पर इतना जुल्म हो रहा है? अगर आप भी खामोश रहेंगे तो मुसलमान कहां जाएगा? मध्य प्रदेश के वजीरए-ए-आला मोहन यादव ने इस मामले में कहा कि अगर कोई कानून हाथ में लेगा तो कानून उसके घर तक पहुंचेगा। उनका मतलब थाने का घेराव और पथराव से था। नफरत की आग में अंधे होकर वह भूल गए कि अभी तो पुलिस यह भी नहीं तय कर पायी थी कि पथराव कैसे हुआ और किसने किया? लेकिन हाजी शहजाद को चंद घंटे के अंदर उसकी सजा दे दी गयी।
बगैर किसी जांच के बुलडोजर के जरिए मुसलमानों को सजा देने का सिलसिला उत्तर प्रदेश के वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद से शुरू किया था।
लोग अदालत में गए सरकार की तरफ से कह दिया गया कि मकान का नक्शा पास नहीं था इसलिए तोड़ा गया। अदालत ने सरकार की आंख बंद करके दलील मान ली। इस बात पर गौर नहीं किया कि अगर नक्शा पास नहीं था तो मकान के मालिक को पन्द्रह दिन की मोहलत के साथ नोटिस दिया जाना चाहिए था। अदालत ने मकान के मालिकों को कोई राहत नहीं दी तो बीजेपी सरकारों के हौसले बढ़ गए। योगी को बुलडोजर बाबा कहा जाने लगा। मध्य प्रदेश, असम, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान की बीजेपी सरकारों ने भी बगैर किसी सुनवाई के मुसलमानों को बुलडोजर की सजा देना शुरू कर दिया। एक रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में छत्तीस इमारतोें पर बुलडोजर चला जिनमें से अट्ठाइस इमारतें सिर्फ मुसलमानों की थीं। ऐसा नहीं कि मुसलमानोें को बुलडोजर से तकलीफ है बड़ी तादाद में हिन्दू भी इस कार्रवाई को पसंद नहीं करते।
इसीलिए 2024 के लोक सभा एलक्शन में उत्तर प्रदेश के हिन्दू और मुसलमानों ने मिलकर बुलडोजर बाबा यानी योगी आदित्यनाथ को अपने वोट के जरिए सजा दी। पिछली लोक सभा में बीजेपी के पास अस्सी में से छियासठ सीटें थीं इस बार घट कर तैंतीस यानी आधी रह गयी। नफरत फैलाने के सबसे बड़े सरगना नरेन्द्र मोदी भी बनारस में हारते-हारते बचे।
बीजेपी का एक और वजीर-ए-आला असम में है हेमंत बिस्वा सरमा। वह रोज मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलता है। नफरत के इस माहौल को मजीद हवा देने के लिए उसने अभी एलान कर दिया कि यूनिवर्सिटी आफ साइंस एण्ड टेक्नोलाजी मेघालय में पढे हुए लड़कों को असम में सरकारी नौकरी नहीं दी जाएगी। यह युनिवर्सिटी असम में न होकर मेघालय में है जो दोनों रियासतों की सरहद के पास है।
इस युनिवर्सिटी से बिस्वा सरमा की नफरत की वजह यह है कि यह युनिवर्सिटी मुसलमानों ने बनाई। महबूब उल हक उसके चांसलर हैं। युनिवर्सिटी के खिलाफ जहर उगलते वक्त हेमंत बिस्वा सरमा को यह भी ख्याल नहीं रहा कि युनिवर्सिटी के टीचिंग स्टाफ और तलबा में हिन्दुओं की तादाद मुसलमानों से ज्यादा है। उम्दा तालीम के लिए मोदी सरकार ने ही इस युनिवर्सिटी को अवार्ड दे चुकी है। यहां हम बिस्वा सरमा को नाम इज्जत व एहतराम के साथ नहीं लिख रहे हैं क्योंकि बिस्वा सरमा संवैधानिक ओहदे पर रहते हुए मुसलसल संविधान की धज्जियां उड़ाते संविधान के मुजरिम बन चुके हैं और संविधान के मुजरिमों का नाम इज्जत व एहतराम से नहीं लिया जाता।
युनिवर्सिटी के मरकजी हाल की छत पर तीन गुम्बद बने हैं। कुछ दिन पहले बिस्वा सरमा उन गुम्बदों को जेहाद की अलामत बता चुके है। फिर कहा कि यह युनिवर्सिटी सैलाब जेहाद चलाए हुए है। इसी वजह से असम में सैलाब आता है। इन हालात में मुसलमानों को सिर्फ अदालतों का ही सहारा है। अगर वहां से मदद न मिली तो मायूसी का शिकार होकर गलत रास्ते पर कुछ लोग जा सकते हैं।
संवाद; मोहमद अरशद यूपी