बरसों से ईवीएम को लेकर संदेह जताया जा रहा है इस पर बहस जारी है ,अब सुनने में आ रहा कि न्यायमूर्तियों ने फैसला सुरक्षित कर लिया है!
नई दिल्ली
विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो
जस्टिस खन्ना, औऱ जस्टिस दत्ता की कलम, इतिहास को रूख देने की दहलीज पर हैं।
EVM पर बहस कई दिनों से जारी थी, आज सुना कि न्यायमूर्तियों ने फैसला सुरक्षित कर लिया।
बरसो से, EVM को लेकर संदेह का वातावरण रहा।तमाम फैक्ट्स और तर्क के साथ वकीलों, जनसंगठनों और राजनीतिक दलों ने याचिकायें लगाई।
जो हरि इच्छा से, सुनवाई की रौशनी न देख सकी। बडी देर से, जब जनरल इलेक्शन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी, उन्हें सुना जा रहा है।
चुनावी प्रोसेस की कई लेक्यूना, EVM मे मालवेयर डालने की ओपरच्यूनटीज, कुतर्को के माध्यम से भाजपा नेताओ द्वारा मशीन को सही ठहराने की कोशिश.. ऐसी बाते हैं जो जनमानस में संशय, गहरा अविश्वास पैदा करती है।
जिसका दोषी खुद चुनाव आयोग है। उसने इन संशय को दूर करने के लिए कुछ नही किया। उल्टे हैक करने की चुनौती दी।
बिना छुए
आयोग स्वीकारने को तैयार नही कि निर्माण से उपयोग तक, हर कर्मचारी मशीनों को हाथ से छूता है, ऑपरेट करता है, खोलता, बन्द करता है, “मेंटेनेंस” करता है।
तब कुछ भी हो सकता है।
चुनाव के ठीक पहले, उसमे लैपटॉप भी कनेक्ट करता है, सिम्बल इंस्टाल करता है, प्रि फॉर्मेंटेड प्रोग्राम इंजर्ट करता है।
तब भी कुछ हो सकता है।
उस चिप में क्या है?? विविपेट केलिब्रेशन में क्या होता है? जो प्रोग्राम धड़ल्ले से डाला जाता है, उसमे क्या कोडिंग है?? क्या एल्गोरिदम है?
उसमे कुछ भी हो सकता है। क्या है, उस कर्मचारी को नही पता। चुनाव आयोग के शीर्ष अफरसान को भी नही पता।
किसी प्रक्रिया में आस्था सवालों के उत्तर से जगाई जा सकती है। बेफिक्री, अहंकार, चुनौती और हेकड़ी से कतई नही।
तीन दिन पहले मॉक पोलिंग के दौरान, केरल में मशीन ने वाम, कांग्रेस और दूसरे किसी को एक वोट देने पर बीजेपी को मुफ्त में 2 वोट दिए, ऐसी खबर पढ़ी। कोर्ट ने इसकी जांच के आदेश दिये, यह भी पढ़ा।
ठीक उसी समय चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट को बता रहा था कि वह विश्व की एकमात्र नोबल, और भरोसेमंद संस्था है, इसलिए पब्लिक आंख मूंद कर भरोसा करे।
आयोग को वोटर के हाथ मे विविपेट पर्ची दिया जाना, लोकतन्त्र को खतरा लगता है।
100% पर्ची गिनना, उसे समय की बरबादी लगती है। किसी भावी वाद (litigation) के समय पेश करने के लिए पर्चियां सबूत की तरह सुरक्षित रखना, स्पेस और समय की बर्बादी लगता है।
हर सुधार टालने के लिये समय और खर्च का हवाला दिया गया। ठीक वैसे ही, जैसे इलेक्टोरल बांड के केस में स्टेट बैंक, उल जलूल हीला हवाला करता रहा। बहस के दौरान कई चौकाने वाले खुलासे हुए। चुनाव आयोग के हास्यास्पद जवाब आये।
चुनाव आयोग के अफसरों की जीतोड़ कोशिश है, जो प्रि प्लान है, सब कुछ उसके मुताबिक हो। विविपेट की पर्ची न गिननी पड़े, प्रक्रिया पारदर्शी न करनी पड़े।
ECI ने पिछले कुछ बरसों में अपनी
क्रेडिबिल्टी की धज्जियां उड़ा ली हैं।
उदाहरणों की लंबी श्रृंखला है, जिससे वह बीजेपी का पिट्ठू, और सरकार का मातहत लगने लगा है।
कोर्ट ने उसके बहानो को कितना सुना, माना, ये तो फैसले से पता चलेगा।लेकिन जनता को उसकी बातों पर लेशमात्र भी यकीन नही।
इस केस में सबसे लॉजिक की बात यही है कि ईवीएम बनी रहे, ताकि वोट इनवैलिड होने, या जोड़ घटाव में गलत होने की संभावना शून्य रहे।
मगर विविपेट की हर पर्ची, व्यक्ति के हाथ में आने दी जाए। वह दस्तखत या अंगूठा लगाकर डब्बे में डाल दे।
डब्बे और मशीनें, स्ट्रांग रूम में रहे, और वहां कैंडिडेट्स के एजेंटों को पहरे की इजाजत दी जाए। मतगणना के बाद, उसका 100% मिलान, छपी पर्चियों से हो।
जहां डेढ़ माह में चुनाव सम्पन्न हो रहे हैं, परिणाम आने में 12 घण्टे और सही।
चुनाव आयोग को इसमे कोई समस्या होनी नही चाहिए। और अगर होती है, तो उसकी नीयत में खोट होने का इससे बड़ा सबूत नहीं।
जो पार्टी इस बात का विरोध करे, उसकी भी नीयत खोटी मानी जाए। जज साहबान ऐसा निर्णय दे, ताकि कोर्ट की नीयत भी शको शुबहे से ऊपर रहे।
2024 में चुनाव परिणाम अप्रत्याशित होने जा रहे हैं। पर्ची मिलान 100% हो, तो एक तरह का, और पर्ची मिलान के बगैर हो,
तो दूसरी तरह का..
मगर मिलान के बगैर आयी सरकार की क्रेडिबिल्टी शून्य होगी। अपना इकबाल बनाये रखने के लिए उसे संविधानेत्तर तरीके अपनाने होंगे।
क्योकि 400 पार की गूंज के साथ, सम्विधान की छाती पर भाला, साध दिया गया है। तो जस्टिस खन्ना और जस्टिस दत्ता, इस भाले को हटाकर, न्यायपालिका पर आस्था स्थापित करेंगे, या चूक जाएंगे?
यह इस सदी का सबसे बड़ा सवाल है।
पर फैसला चाहे जो हो,आज की डेट में ये दो शख्स, इतिहास की धारा को दिशा देने की दहलीज पर हैं। देश दम साधे, उनके फैसले का इंतजार कर रहा है।
जो अब तलक आ जाना चाहिए था। चुनावी मत डालने की पहले चरण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। टोटली सात चरणों में चुनाव होने बाकी है।इस लिए इस मुद्दे की संज्ञा में लिया जाए ।
संवाद:पिनाकी मोरे