प्राचीन संस्कृतियों में ऐसा माना जाता था कि चांद अपनी रोशनी खुद व्यक्त करता है,पवित्र कुरान में भी इसका जिक्र किया गया है
संवाददाता
चांद का प्रकाश प्रतिबिंबित प्रकाश है,
प्राचीन संस्कृतियों में यह माना जाता था कि चांद अपना प्रकाश स्वयं व्यक्त करता है। विज्ञान ने हमें बताया कि चांद का प्रकाश प्रतिबिंबित प्रकाश है, फिर भी यह वास्तविकता आज से चौदह सौ वर्ष पहले पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयत में बता दी गई है।
बड़ी बरकतवाला है वह, जिसने आकाश में बुर्ज (नक्षत्र) बनाए और उसमें एक चिराग़ और एक चमकता चाँद बनाया।” (अल क़ुरआन, सूर: 25 आयत 61)
पवित्र क़ुरआन में सूरज के लिये अरबी शब्द “शम्स (ٱلشَّمْسَ)” प्रयुक्त हुआ है। अलबत्ता सूरज को “सिराज (سِرَٰجًا)” भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है मशाल (Torch) जबकि अन्य अवसरों पर उसे “वहाज” अर्थात् जलता हुआ चिराग या प्रज्वलित दीपक कहा गया है। इसका अर्थ “प्रदीप्त” तेज और महानता है।
सूरज के लिये उपरोक्त तीनों स्पष्टीकरण उपयुक्त हैं, क्योंकि उसके अंदर प्रज्वलन (Combustion) का ज़बरदस्त कर्म निरंतर जारी रहने के कारण तीव्र ऊष्मा और रौशनी निकलती रहती है।
चांद के लिये पवित्र क़ुरआन में अरबी शब्द “क़मर (وَٱلْقَمَرَ) प्रयुक्त किया गया है, और इसे बतौर “मुनीर” प्रकाशमान बताया गया है, ऐसा शरीर जो “नूर” (ज्योति) प्रदान करता हो।
अर्थात, प्रतिबिंबित रौशनी देता हो। एक बार पुन: पवित्र क़ुरआन द्वारा चांद के बारे में बताए गये तथ्य पर नज़र डालते हैं, क्योंकि निसंदेह चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है; बल्कि वह सूरज के प्रकाश से प्रतिबिंबित होता है, और हमें जलता हुआ दिखाई देता है। पवित्र क़ुरआन में एक बार भी चांद के लिये “दीपक, सिराज और वहाज” आदि जैसें शब्दों का उपयोग नहीं हुआ है, और न ही सूरज को, “नूर या मुनीर” कहा गया है। इस से स्पष्ट होता है कि, पवित्र क़ुरआन में सूरज और चांद की रोशनी के बीच बहुत स्पष्ट अंतर रखा गया है, जो पवित्र क़ुरआन की आयत के अध्ययन से साफ़ समझ में आता है।
निम्नलिखित आयात में सूरज और चांद की रोशनी के बीच अंतर इस तरह स्पष्ट किया गया है:
वही है जिस ने सूरज को को सर्वथा दीप्ति बनाया और चांद को चमक दी। (अल-क़ुरआन, सूरः 10, आयत 5)
संवाद;मोहमद अफजल इलाहाबाद