जाने अलकजा के क्या मायने है, किसे कहते है अल कजा?
संवाददाता
अल क़ज़ा क्या है?
अल क़ज़ा यानी सर के बाज़ हिस्से मूंड दिया जाए और कुछ हिस्सा छोड़ दिया जाए।
क़ज़ा से मुराद मख़्सूस सर के बाल मुँडवाना (shave) है, न कि महज़ trim करना।
बताते चलें तो यहूदी ये अमल करते थे जो कि सर के सारे बाल मुंडवा कर, साइड कलमें लंबी रखते थे, जिसको Payot कहा जाता है जो तस्वीर नंबर 1 और 2 में देखा जा सकता है।
बाज़ लोगों को मुग़ालता हुआ है ये क़ज़ा से मुराद तस्वीर नंबर 3 और 4 वाले बाल हैं, जोकि बिल्कुल सिरे से ग़लत है। और क़ज़ा का हुक्म भी मकरूह (ना-पसंदीदा) है, हराम नहीं।
मज़ाहिब-ए-अर्ब’आ के इत्तिफ़ाक़ से ये मकरूह है, जैसा कि इमाम नवावी रहीमाहुल्लाह ने ज़िक्र किया: “यानी उलमा का इज्मा है कि ये मकरूह है।” (शरह सहीह मुस्लिम: 14/101)
हाफ़िज़ इब्न हजर अस्कलानी रहीमाहुल्लाह तफ़्सीली बहस करते हुए क़ज़ा के माने बयान करते हैं।
और इसका नतीजा ये है कि क़ज़ा सर के बालों के साथ मख़्सूस है, और उससे कनपटयों और सर की गुद्दी के बाल मुराद नहीं।” (फ़त्ह अल बारी: 10/365
अब रहा ये कि को आज कल सर के बाज़ हिस्से के अतराफ़ में जो बाल कटे हुए होते हैं लेकिन मूंडे हुए नहीं, और सर के बलाई हिस्से पर पूरे बाल होते हैं क्या ये भी अल क़ज़ा में शामिल है?
इमाम अहमद बिन हंबल से पूछा गया अल क़ज़ा के बारे में?
आपने फरमाया: अल क़ज़ा ये है कि सर के बाज़ बाल मूंड दिए जाएं और बाज़ नहीं, रावी कहता है मैंने पूछा पेशानी पर जो बाल होते हैं और अतराफ़ में नहीं क्या ये भी मकरूह है?
इमाम अहमद ने फरमाया हदीस में सर के बाज़ बाल मूंडना और बाज़ छोड़ देने के बारे में है, रहा सर के बाज़ बाल मुख़्तसर करना और बाज़ छोड़ देना तो ये मूंडना नहीं।
रावी कहता है गोया कि इमाम अहमद ने इस बारे में रुख़्सत दी।”
(अल वुकूफ व अल तरज्जुल मिन अल जामे लि मसाइल अल इमाम अहमद: सफ़्हा 151)
यानी अल क़ज़ा अव्वल तो मकरूह है, और रहा बाज़ बाल मुख़्तसर करना अतराफ़ से और पेशानी के बढ़ाना तो ये मकरूह भी नहीं।
संवाद;मोहमद अफजल इलाहाबाद