क्या दिल्ली के लोग स्मार्ट नहीं रहे ?

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रिपोर्टर.

दिल्ली में बैठ कर सरकार 100 स्मार्ट सिटी बनाने की बात कर रही है, मगर क्या वहां के शहरियों को भी स्मार्ट बनाने का सरकारी मंसूबा है? शायद नहीं।

हाल तो यह है कि मुल्क की राजधानी में रहने वाले जिन दिल्ली वासियों को कभी स्मार्ट शहरी समझा जाता था उनके स्मार्ट-पन पर भी सवालिया निशान लगने लगा है।
कभी कहा जाता था कि जो दिल्ली सोचती है वही देश सोचने लगता है। मगर अब ऐसा नहीं लगता।

कुछ मिसालों से बात और बेहतर समझ में आ सकती है।
पिछले एमसीडी चुनाव में दिल्ली में वोटर्स ने उन लोगों को और ताक़त से जिताया जो पिछले दस साल तक एमसीडी और दिल्ली को बर्बाद करते रहे।
आज दिल्ली भारत के सबसे गंदे शहरों में शामिल है।
आज एमसीडी का मतलब ही मच्छर, चिकुनगुनिया और डेंगू (MCD) हो गया है।

दिल्ली में बारिश से अगर 100 लीटर पानी ज़मीन में जाता है तो दिल्ली के शहरी हर साल 140 लीटर पानी निकाल लेते हैं। सोचिये ऐसा कब तक जारी रहेगा।
दिल्ली में पानी की सतह साल दर साल नीचे जा रही है।
लोकसभा में पेश 2016 की ए्क रिपोर्ट के मुताबिक़ उससे पिछले तीन सालों में दिल्ली से 22,000 बच्चे ग़ायब हो गये थे।
उनमें से 41% को पुलिस ढूंढ ही नहीं पाई। यह तादाद लगातार बढ़ रही है।

क्या दिल्ली में इस बात को लेकर कहीं कोई बेचैनी और अहतजाज या बेदारी पाई जाती है जबकि बच्चों के अधिकार को लेकर काम करने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी भी यहीं रहते हैं?
ज़हरीली हवा के लिए रिकार्ड किए गये दुनिया के 20 ख़राब शहरों में से 13 हमारे देश में हैं और उनमें से भी सबसे ख़राब दिल्ली है। है कहीं बेदारी, ग़ुस्सा और प्रदर्शन?
स्मार्ट सिटी बनने के साथ स्मार्ट शहरी भी बनना बहुत ज़रूरी है। क्या दिल्ली के सोच में बदलाव होगा?

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