कौन है और कहां से आये चितपावन ब्राम्हण क्या आरएसएस के संस्थापक चितपावन ब्राह्मण विदेशी हैं ?
रिपोर्टर.
देश के असली दुश्मन, मुसलमान या नक्सली नहीं, सिक्ख नहीं, देशस्थ ब्रह्मण भी नहीं, कोई विदेशी भी नहीं, बल्कि ‘ये अपने आप को अग्निपवित’ (purified by fire) घोषित कर समाज में जहर फैलाने वाली संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तमाम आतंकवादी हैं ।
जो नकली नाम चित्तपावन ब्राह्मण के नाम से जाने जाते हैं।
रॉयल सीक्रेट सर्विसेज’ (RSS) का निर्माता पुंजे से लेकर इस ब्रिटिश जासूसी एजेंसी को आर.एस.एस. ( राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ) नाम देनेवाले गोवलकर, सावरकर से लेकर मोहन भागवत तक चित्तपावन ब्राह्मण हीं है।
यही नहीं, कर्नल पुरोहित से लेकर नाथूराम गोड्से, गोपाल गोड्से, नारायण आप्टे तक सब के सब चित्तपावन ब्राह्मण हीं रहे हैं ।
पढ़िये कि इजराईली मूल के ये यहूदी वहाँ की खुफिया एजेंसी ‘मोसाद’ के इशारे पर किस तरह भारत की राष्ट्रीय एकता को तहस नहस करने पर उतारू हैं ?
देश की सशक्त आंतरिक खुफिया एजेंसी ‘आई.बी.’ में नीचे से उपर तक इनका वर्चस्व है और जिस भी विभाग में या क्षेत्र में ये कार्यरत हैं, वहीं से विघटनकारी कार्यों को अंजाम देते हैं!
मालेगाँव बम विस्फोट करानेवाली संस्था अभिनव-भारत की अध्यक्षा ‘हिमानी सावरकर’ बापू के हत्यारे नाथूराम गोड्से की सगी भतीजी और गोपाल गोड्से की बेेटी और दामोदर सावरकर की बहू है, जिसके इशारे पर बेकसूर हिंदुओं की हत्या करके मुसलमानों को फंसाने का कुत्सित प्रयास हुआ, जिससे कि हिन्दु-मुस्लिम में दंगा भड़क उठे ।
चितपावन ब्राह्मण इज़राइली यहूदी मूल के आरएसएस की स्थापना चितपावन ब्राह्मणों ने की और इसके ज्यादातर सरसंघचलक अर्थात् मुखिया अब तक सिर्फ चितपावन ब्राह्मण होते आए हैं।
क्या आप जानते हैं ये चितपावन ब्राह्मण कौन होते हैं ?
चितपावन ब्राह्मण भारत के पश्चिमी किनारे स्थित कोंकण के निवासी हैं ।
18वीं शताब्दी तक चितपावन ब्राह्मणों को देशस्थ ब्राह्मणों द्वारा निम्न स्तर का समझा जाता था ।
यहां तक कि देशस्थ ब्राह्मण नासिक और गोदावरी स्थित घाटों को भी पेशवा समेत समस्त चितपावन ब्राह्मणों को उपयोग नहीं करने देते थे ।
दरअसल कोंकण वह इलाका है जिसे मध्यकाल में विदशों से आने वाले तमाम समूहों ने अपना निवास बनाया जिनमें पारसी, बेने इज़राइली, कुडालदेशकर गौड़ ब्राह्मण, कोंकणी सारस्वत ब्राह्मण और चितपावन ब्राह्मण, जो सबसे अंत में भारत आए, प्रमुख हैं ।
आज भी भारत की महानगरी मुंबई के कोलाबा में रहने वाले बेन इज़राइली लोगों की लोककथाओं में इस बात का जिक्र आता है कि चितपावन ब्राह्मण उन्हीं 14 इज़राइली यहूदियों के खानदान से हैं जो किसी समय कोंकण के तट पर आए थे ।
चितपावन ब्राह्मणों के बारे में 1707 से पहले बहुत कम जानकारी मिलती है ।
इसी समय के आसपास चितपावन ब्राह्मणों में से एक बालाजी विश्वनाथ भट्ट रत्नागिरी से चलकर पुणे सतारा क्षेत्र में पहुँचा ।
उसने किसी तरह छत्रपति शाहूजी का दिल जीत लिया और शाहूजी ने प्रसन्न होकर बालाजी विश्वनाथ भट्ट को अपना पेशवा यानी कि प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया ।
यहीं से चितपावन ब्राह्मणों ने सत्ता पर पकड़ बनानी शुरू कर दी क्योंकि वह समझ गए थे कि सत्ता पर पकड़ बनाए रखना बहुत जरुरी है !
मराठा साम्राज्य का अंत होने तक पेशवा का पद इसी चितपावन ब्राह्मण बालाजी विश्वनाथ भट्ट के परिवार के पास रहा ।
एक चितपावन ब्राह्मण के मराठा साम्राज्य का पेशवा बन जाने का असर यह हुआ कि कोंकण से चितपावन ब्राह्मणों ने बड़ी संख्या में पुणे आना शुरू कर दिया जहाँ उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया जाने लगा !
चितपावन ब्राह्मणों को न सिर्फ मुफ़्त में जमीनें आबंटित की गईं बल्कि उन्हें तमाम करों से भी मुक्ति प्राप्त थी ।
चितपावन ब्राह्मणों ने अपनी जाति को सामाजिक और आर्थिक रूप से ऊपर उठाने के इस अभियान में जबरदस्त साजिश रची ! शाहूजी महाराज का का वध तक करवाया ।
इतिहासकारों के अनुसार 1818 में मराठा साम्राज्य के पतन का यह प्रमुख कारण था !
रिचर्ड मैक्सवेल ने लिखा है कि राजनीतिक अवसर मिलने पर सामाजिक स्तर में ऊपर उठने का यह बेमिसाल उदाहरण है !
{(Richard Maxwell Eaton. A social history of the Deccan, 1300-1761: eight Indian lives, Volume 1. p. 192)}
चितपावन ब्राह्मणों की भाषा भी इस देश के भाषा परिवार से नहीं मिलती थी | 1940 तक ज्यादातर कोंकणी चितपावन ब्राह्मण अपने घरों में चितपावनी कोंकणी बोली बोलते थे जो उस समय तेजी से विलुप्त होती बोलियों में शुमार थी !
आश्चर्यजनक रूप से चितपावन ब्राह्मणों ने इस बोली को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया. उद्देश्य उनका सिर्फ एक ही था कि खुद को मुख्यधारा में स्थापित कर उच्च स्थान पर काबिज़ हुआ जाए. खुद को बदलने में चितपावन ब्राह्मण कितने माहिर हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों ने जब देश में इंग्लिश एजुकेशन की शुरुआत की तो इंग्लिश मीडियम स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला कराने वालों में चितपावन ब्राह्मण सबसे आगे थे !
इस तरह अत्यंत कम जनसंख्या वाले चितपावन ब्राह्मणों ने, जो मूलरूप से इज़राइली यहूदी थे, न सिर्फ इस देश में खुद को स्थापित किया बल्कि आरएसएस नाम का संगठन बना कर वर्तमान में देश के नीति नियंत्रण करने की स्थिति तक खुद को पहुँचाया, जो एक अपने आप में अनूठी मिसाल है !