एसिड से नहलाकर मारने वाले, इन्सान की जीती-जागती सोने की मूरत किसी चौराहे पर देख लू तो चैन से मर जाऊंगा !
माननीय मोहम्मद शहाबुद्दीन जी, जिनके बारे में विकिपीडिया पर उनके पोलिटिकल करियर से पहले क्रिमिनल करियर लिखता है, जेल से बाहर आ गए हैं। सड़कों को सज़ा दिया गया है, होटलों में पार्टियों का इंतज़ाम है। बिहार के तारणहार आ चुके हैं बेल पर बाहर।
विकिपीडिया कहता है कि महामहिम शहाबुद्दीन जी ‘हिस्ट्री शीटर टाइप ए’ के क्रिमिनल हैं। आगे लिखता है कि टाइप ए का मतलब है जिसमें सुधरने की गुँजाइश नहीं है। अब भला जिसने गुँडई की कला को परफ़ेक्ट कर लिया हो, वो सुधरेगा भी कैसे!
जैसा कि हर क्रिमिनल और क़ातिल के साथ होता है, शहाबुद्दीन जी का भी मानना है कि उनको एक राजनैतिक साज़िश के ज़रिए फँसाया गया है वरना वो तो इतने लोकप्रिय हैं कि 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान जेल में होते हुए भी लगभग एक लाख वोटों से जीत गए थे। और इनका तेज, इनकी महिमा, इतनी प्रभावी थी कि विपक्षी ओम प्रकाश यादव के नौ सहयोगी रातों रात भगवान को प्यारे हो गए।
क़ायदे से इनके नाम में, गुरमीत सिंह राम रहीम की तरह, अंत में ‘इंसान जी’ लगा लेना चाहिए ताकि किसी को इनकी इन्सानियत पर शक ना रहे। अब लोग तो ये भी कहते हैं कि जज को पैसे देकर, तथा जानबूझकर सरकारी वक़ील को बेल के विरोध में कमज़ोर दलीलें दिलाकर माननीय चार बार सांसद रहे, दो बार विधायक रहे, मोहम्मद शहाबुद्दीन जी को बाहर लाया गया है। लेकिन जैसा कि शास्त्रों में कहा गया है कि ‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना’, तो आप भी कहाँ बेकार की बातों में पड़े हैं, बीत ना जाए रैना!
मुझे तो ये डर है कि कल को ये ना पता चले कि इन्होंने समाज के सहायतार्थ एनजीओ खोल रखे हैं। इनके लिए देश की सीमाएँ मायने नहीं रखती। इनके पास एके47 से लेकर पाकिस्तान की आर्मी द्वारा बनाए गए हथियार मिले हैं, ऐसा उस समय के बिहार डीजीपी ओ पी ओझा जी ने रिपोर्ट में लिखा है। ऐसे मानवतावादी, पैग़म्बर टाइप के इन्सान को जो लोगों को सीधे अल्लाह-भगवान से मिलवाता हो, देश के बंधनों में बाँधना ठीक नहीं।
माननीय शहाबुद्दीन जी के पास लोगों के पते भी होते हैं और ये मैं गूगल मैप के आने के पहले की घटना बता रहा हूँ। एक सामाजिक व्यक्ति और भविष्यद्रष्टा के तौर पर शहाबुद्दीन जी ने बिहार के एक जेलर को उनका पता और भविष्य बताते हुए कहा था, ‘तू बनिया टोली में रहता है ना, कोई नहीं बचेगा’। ऐसे ही किसकी कितनी पिटाई होनी चाहिए थी, बीच में बंद हो गई, तो वो भी इन्हें एक अच्छे डॉक्टर की तरह याद रहता है। इन्होंने उसी जेलर को ये भी कहा था कि ‘बहुत दिनों से पिटाई नहीं हुई है, बेल होने दो फिर बताता हूँ।’
तीन सौ से ऊपर (302, 307, 324, 364, 365, 379) की धाराओं पर छः केस, 147-148 के दो केस चल रहे हैं और तेईस ऐसे केस हैं जिसमें चार्जेज़ फ़्रेम नहीं हुए हैं। ये एक डेकोरेटेड क्रिमिनल हैं जिनके बारे में विकिपीडिया कहता है कि इन्हें भारत में क्रिमिनल्स का गोल्ड स्टैण्डर्ड माना जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो इन्होंने अपराध को नए आयाम दिये हैं। इन्होंने अपराधी किस हद तक के हो सकते हैं, वो हद पारिभाषित की है। अब बस जीते जी इनकी किसी चौराहे पर सोने की मूर्ति देख लूँ तो चैन से मर पाउँगा।
पीएचडी-धारी शहाबुद्दीन का स्वभाव वैज्ञानिकों वाला भी रहा है। वैज्ञानिक लोग इस बात पर प्रयोग करते रहते हैं कि ये करने से क्या होगा, वो करने से क्या होगा। इसी जिज्ञासा को शांत करने हेतु इन्होंने दो भाइयों को, जिनके नाम सतीश राज और गिरीश राज थे, एसिड से नहला दिया। इस प्रयोग को देखने की इजाज़त किसी को नहीं थी लेकिन एक व्यक्ति, नाम राजीव रौशन, ने देख लिया। बड़े लोगों का दिल भी बड़ा होता है इसीलिए राजीव रौशन को शहाबुद्दीन साहब ने गोली मरवा कर इस पापी और कष्टकारी दुनिया से मुक्ति दिला दी। कुदोज़ टू द जेन्टलमैन!
दही हाँडी की ऊँचाई नापने वाली, नमक किसे कहते हैं ये पूछने वाली, राजस्थान के एक अख़बार में सरकारी विज्ञापण क्यों कम आ रहे हैं ये जिज्ञासा रखने वाली अदालतों ने माननीय शहाबुद्दीन को चार केसों में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है। इनके लिए सज़ा-ए-मौत सुनाकर भला कौन जज खुद उस सज़ा को भोगे! ख़ैर, महामहिम वापस आए हैं 1300 गाड़ियों के क़ाफ़िले में और बाहर आते ही मुख्यमंत्री नीतिश बाबू को उनकी औक़ात बता दी है। बाकी, शराबबंदी ज़ोर पर है और बिहार में चल रहे बहार में आए ताज़ी हवा के इस नए झोंके का स्वागत धूमधाम से उनके नाम के हिसाब से किया जा रहा है।