एड़ी चोटी का जोर लगाये क्यों अपना पसंदीदा राष्ट्रपति मुन्तख़ब करना चाहती है BJP ?
आशिष केसरवानी.
देश में दो महीने बाद राष्ट्रपति पद के चुनाव होने हैं. इस चुनाव में अपनी पसंद के उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनाने के लिए बीजेपी एक-एक वोट के जुगाड़ में लगी है!
बीजेपी ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का संसद से इस्तीफा राष्ट्रपति चुनाव होने तक रोक रखा है!
इसके साथ ही नौ अप्रैल को विधानसभा और लोकसभा की कुल डेढ़ दर्जन सीटों पर होने वाले उपचुनावों के लिए भी एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है।
बीजेपी को अपनी पसंद का राष्ट्रपति चुनने के लिए अब भी करीब 16 हजार वोट चाहिए।
ऐसे में एक एक विधायक और सांसद का वोट महत्वपूर्ण हो गया है।
राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के चुने हुए सांसद और देश भर की विधानसभाओं के विधायक वोट करते हैं.।
776 सांसद और 4120 विधायक मिलाकर कुल 4896 लोग नया राष्ट्रपति चुनेंगे.।
इनके वोटों की कुल कीमत 10 लाख 98 हजार बैठती है यानी जीत के लिए 5 लाख 49 हजार वोट चाहिए।
पिछले महीने हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी और उसकी सहायक पार्टियों के पास कुल 4 लाख 57 हजार वोट थे यानी उसे अपनी पसंद का राष्ट्रपति चुनने के लिए 92 हजार वोटों की जरूरत थी!
पांच राज्यों से बीजेपी के जितने विधायक चुन कर आए उनकी कुल कीमत 96 हजार बैठती है. इस प्रकार बीजेपी के पास 5 लाख 53 हजार वोट हो गये जो आसानी से उसे अपना राष्ट्रपति दे सकते हैं !
लेकिन इसमें उन विधायकों के वोट की कीमत शामिल है जो इन पांच राज्यों में पिछली विधानसभा के समय NDA में थे ।
इनकी कुल कीमत करीब बीस हजार के लगभग बैठती है।
अब अगर हम पांच लाख 53 हजार में से बीस हजार वोट कम करते हैं तो ये आंकड़ा पहुंचता है पांच लाख 33 हजार. ये जीत के आंकड़े पांच लाख 49 हजार से करीब 16 हजार कम है।
वैसे बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्ये के अभी तक लोकसभा से इस्तीफे नहीं करवाए हैं।
इसी तरह मनोहर पर्ररिकर भी राज्यसभा में बने हुए हैं. राष्ट्रपति चुनाव में एक सांसद के वोट की कीमत 708 है.
तीन इस्तीफे नहीं करवा के बीजेपी ने करीब 2100 वोटों की व्यवस्था कर ली है. अब उसकी नजर 16 हजार वोटों पर हैं।
दिनाक 9 अप्रेल को जिन 12 विधानसभा और 3 लोकसभा सीटों के लिए उपचुनाव हो रहा है उनके वोटों की कुल कीमत करीब 4 हजार बैठती है !
बीजेपी की कोशिश ज्यादा से ज्यादा सीटे जीतने की है ताकि वो 16 हजार के अंतर को कम कर सके. यही वजह है कि एक एक सीट पर बीजेपी ने पूरा जोर लगा रखा है!
बीजेपी को शिवसेना जैसे अपने साथियों का भी डर है जो जरुरी नहीं है कि बीजेपी के उम्मीदवार को ही वोट दें।
इसके अलावा राष्ट्रपति के चुनाव में सांसद और विधायक पार्टी के व्हिप से बंधे नहीं होते हैं. लिहाजा बीजेपी को अपनी पंसद का राष्ट्रपति बनवा पाने में काफी मेहनत करनी पड़ेगी ?