आने वाली ईद को आप क्या कहेंगे बकरा ईद या कुछ और ?
रिपोर्टर.
तो में कहुँगा क़ुरबानी तो अक्सर बकरे की दी जाती है तो इसे “बकरा ईद” क्यों नही कहते ?
अच्छा चलो , कुरबानी तो ऊंट, भैसा, दुंबा, भेड़ो की भी दी जाती है
तो आप लोग इस ईद को ऊंट ईद, भैसा ईद, दुंबा ईद, भैड़ ईद” क्यों नही कहते ? या फिर कुल मिलाकर जानवर ईद” क्यों नही कहते ?
दरअसल हमारी अक्लों पर परदा पड़ा हुआ है कि हम अपने तक़वे से नज़र अंदाज़ी करके इस ईद को जानवरों से निसबत दे रहे हैं!
जब कि इस ईद का जानवर, गोश्त, खून और जान से दूर दूर तक का कोई वास्ता नहीं है।
कुरआन शरीफ पुकार पुकार कर कह रहा है कि अल्लाह को हरगिज़ ना उनके गोश्त पहुँचते है ना उनके खून ।
हाँ तुम्हारी परहेज़गारी उस तक ज़रूर दस्तयाब होती है।
सूरह हज, पारा 17 , आयत 37 अब जिन चीज़ो की अल्लाह की बारगाह में अहमियत ही नहीं भला फिर हम क्यों उन चीज़ो को ईद से जोड़ रहे है !
अल्लाह(सु.त.) की नज़र फ़क़त *हमारे दिलों पर, नियत पर, तक़वे पर, परहेज़गारी और इस्तिकामत पर होती है ।
जो जज्बा उसकी राह मे वह भी सिर्फ उसकी रज़ा के लिए क़ुरबानी करने का हो बस।
हिंदू तहज़ीब वालो की तरफ से इस ईद को ‘बकरा ईद’ कहा जाता है।
कोई बता दे मुझे कि ‘इंडिया’ के अलावा पूरी दुनिया में इस ईद को कोई ‘बकरा ईद’ कहता हो?
यह कमाल सिर्फ ‘हुनूद’ की तहज़ीब का हिसा है,जिस के रंग मे हम रंगते चले गए!
बेशक़ इस्लाम मे इस ईद को ईद-उल-अज्हा” कहा गया है। ईद’ के मायने है , मुसलमानों के जश़न का दिन और अज्हा’ के मायने है चाश़्त का वक्त।
लेकिन आवाम मे ‘ईद-उल-अज्हा’ के मायने क़ुरबानी की ईद से मशहूर है।
फिर भी लौग ‘क़ुरबानी की ईद’ ना कहते हुए सीधे ‘बकरा ईद’ कह देते है !
जाहिलों की तरह, फिर मीडिया वाले जब ईद को जानवरों से मंसूब करके खुद मुसलमान और इस्लाम की तस्वीर बिगाड़ते है तो इसमे अफ़सोस की क्या बात है तुम्हारी तहज़ीब को तो तुमने ही बिगाड़ा है।
बहुत से इस्लामी केलेंडरों में भी बेधड़क आज भी बकरा ईद’ लिखा जा रहा है।
जब इस्लाम की तारीख़ मे इस ईद को ईद-उल -अज्हा”कहा गया है फिर इसे ‘बकरा ईद क्यों कहा जाता है ?
किसी भी बुज़ुर्ग ने इस ईद को ‘बकरा ईद’ नही कहा है|
बराए करम ये अहद करें कि बेशक आज से हम इस ईद को सिर्फ और सिर्फ ईद-उल-अज्हा” ही कहेंगे।