ये है हकीकत अड़ानी पोर्ट और पकड़े गए करोड़ों के ड्रग मामले की,मगर ऐसे बड़े मामले के खिलाफ भला कोई कैसे कर सकता है सख्त कार्रवाई?

एडमिन

कोई भी स्मगलर कभी भी 21,000 करोड़ का माल पहली बार में नहीं भेजता।
पहले पोर्ट हेंडलिंग एजेंसी से सेटिंग होतीं है.. फिर वही लोग कस्टम वालों से सेटिंग बिठाते हैँ।
तब छोटा कंसांइनमेन्ट आता है। सब ठीक रहा तो थोड़ा बड़ा।फिर और बड़ा और जब रूट ओपरेशनल हो जाता है तब जाके बड़े कंसांइनमेन्ट आते हैँ।
जहाँ माल पकड़ा गया अडानी के उस मुंद्रा पोर्ट का कोल टर्मिनल दुनियां का सबसे बड़ा टार्मिनल है और उसकी कुल कीमत 2,000 करोड़ है!
ड्रग कंसांइनमेन्ट की वेल्यू थी 21,000 करोड़। सोचिये आज तक जितने कंसांइनमेन्ट निकले उनकी कुल कीमत क्या होंगी ? जिस धंधे के मात्र एक कंसांइनमेन्ट में पूरा पोर्ट ही ख़रीदा जा सकता है,
आपको लगता है वो पोर्ट के मालिक से सीधा डील नहीं कर सकता ? अरे भैया वो आदमी पोर्ट ख़रीद सकता है।
सरकारी की बजाय प्राइवेट पोर्ट ही क्योँ चुना? क्योंकि सरकारी में बड़े अधिकारी तो फिक्स होते हैँ।
लेकिन कौन छोटा अधिकारी कब ड्यूटी पे रहेगा उसकी 100% एकयुरेट जानकारी नहीं हो पाती। लेकिन प्राइवेट पोर्ट हेंडलिंग एजेंसी के केस में उन्हें सूचना रहती है।
कस्टम और पोर्ट हेंडलिंग एजेंसी का इंटरेक्शन ज़्यादा होने से सेटिंग आसानी से बैठ जाती है.. डील करना आसान होता है।
सी पोर्ट का एरिया बहुत बड़ा होता है, जैटी पर माल उतारने से लेकर बॉन्डिंड वेयरहॉउस तक बहुत ऐसी जगह होतीं हैँ। जहाँ माल आसानी से आँखों से बचा रह सकता है यदि पोर्ट हेंडलिंग एजेंसी साथ हो.।
कस्टम डिपार्टमेंट हर माल चेक नहीं कर सकता। वो सिर्फ सेम्पल के तौर पे रेंन्डोमली कुछ माल देखता है, या जिसपे शक हो उस माल को।
ये रेग्युलर कंसांइनमेन्ट का हिस्सा था जो छोटे कस्टम अधिकारी ने गलती से पकड़ लिया।
इस मामले में मुंद्रा पोर्ट कर अडानी समूह के अधिकारियों से कड़ी पूछताँछ होनी चाहिए थी।
ग्राउंड स्टॉफ को रिमांड पर लेना चाहिए था की क्या उन्हें कोई अलग निर्देश भी दिए गए हैँ भूतकाल में इसमें इन्वेस्टीगेशन होनी चाहिए थी।
प्राइवेट ट्रांसपोर्ट हमेशा ही आर्गेनाएज्ड क्राइम में मददगार होता है क्योंकि इसके मालिक मुनाफा देखते है मोरल नही!

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