समझौत,लागू करो हड़ताल,कार्य बहिष्कार को लेकर संयुक्त संघर्ष समिति के हुए दो फाड़

वाह रे उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन

लखनऊ 13 मार्च
उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री का एक चौकादेने वाला बयान आया है उसमे मात्र एक संगठन विद्युत मजदूर पंचायत को छोड कर सभी विद्युत कर्माचारी व अभियन्ताओ के संगठन को आज तत्व घोषित कर दिया है।

अगर सयुंक्त संघर्ष समिति संगठन नही तत्व है तो फिर आप के ही दिशा निर्देशनुसार मे 3 दिसम्बर 2022 को उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन , उत्तर प्रदेश पारेषण निगम और सयुंक्त संघर्ष समिती के बीच एक समझौता हुआ था। जिसको कि लागू करने के लिए 15 दिनो की सहमती बनी थी। परन्तु आज 13 मार्च तक वो समझौता लागू नही हुआ । जिस समझौते मे माननीय ऊर्जा मंत्री जी की उपस्थिती मे दो प्रबंधनिदेशको ने हस्ताक्षर कर के सयुक्त बयान जारी किया गया था। जिस मे मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन और उसकी समयोगी कम्पनियो मे वर्ष 2000 मे कम्पनी ऐक्ट 1956 के अनुसार बने मेमोरेंडम आफ आर्टिकल को लागू करने और सविदा कर्मीयो का वेतन बढाने की माग प्रमुख रूप से की गयी थी ।

वैसे पावर कार्पोरेशन लिमिटेड, उत्तर प्रदेश जल विद्युत लिमिटेड और उत्तर प्रदेश उत्पादन एवम् पारेषण निगम लिमिटेड व इनके साथ साथ पाँच वितरण निगमो का भी जन्म हुआ। मध्यांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, पश्चिमाचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, दक्षिणाचल विद्युत वितरण निगम और केस्को का गठन राज्य विद्युत परिषद के विघटन के बाद हुआ था।

यह सभी कम्पनिया कम्पनी एक्ट 1956 के अन्तर्गत बनी थी और हर कम्पनी को चलाने के लिए एक सविधान बनाया गया जिसे मेमोरेंडम आफ आर्टिकल कहा जाता है जिसके अन्तर्गत चयन प्रक्रिया के माध्यम से सभी अध्यक्ष पदो पर यानी अध्यक्ष , प्रबंधनिदेशक ,निर्देशक मण्डल का चयन होना था और इसके साथ ही साथ हर वितरण निगम को भी प्रबन्धनिदेशक और निदेशक मण्डल का चयन चयन प्रक्रिया के माध्यम से होना था इसी बात को ले कर दोनो पक्षो मे सहमती बनी थी कि सन 2000 से आज तक उत्तर प्रदेश पावर
कार्पोरेशन और उसकी सहयोगी सस्थाओ मे अध्यक्ष पद पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियो का ही अवैध कब्जा है और बात रही सविदा कर्मियो की तो यह वही लोग है जो अपनी जान पर खेल कर उत्तर प्रदेश को जगमग करते है वो भी नाम मात्र के वेतन पर यह सविदा कर्मियो की ही फौज है जो कडकती ठंड हो या मूसलाधार पानी बरस रहा हो या फिर आधी तूफान जैसी प्रकृतिक आपदा आयी या भीषण गर्मी की वो तपती दोपहर हो।

जब कोई भी व्यक्ति बाहर निकलना पसन्द नही करते है यह सविदा कर्मी अपनी सीढी के साथ दिन रात अपने काम पर मुस्तैद मिलते है और अक्सर यह वो सविदा कर्मी है जो विद्युत पोलो पर विद्युत आपूर्त बहाल करते वक्त दुर्घटना का शिकार हो कर कभी अशिक और पूर्ण रूप से अपंग हो जाते है और कभी मौत के मुह मे समा जाते है इनकी वेतन वृद्धी की माग है।

वैसे प्रबंधन मे बैठ कर इस घोर अभियांत्रिक विभाग को चलाने के लिए इस क्षेत्र का पर्याप्त अनुभव व योग्यता होनी चाहिए परन्तु वर्तमान प्रबंधन को ही देख ले अध्यक्ष की शिक्षा एम . एससी कृषि (M.sc agr) है और चला रहे है उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन इनके सहयोगी प्रबंधनिदेशक पावर कार्पोरेशन मात्र बी .ए ( B . A )है। ऐसे अधिकारी चला रहे है उत्तर प्रदेश के रीड की हड्डी। पावर कार्पोरेशन को जिनका इस विभाग से दूर दूर तक लेना देना ही नही। अब अगर सयुंक्त संघर्ष समिती 77:47 करोड के धाटे को एक लाख करोड के धाटे मे बदलने के बाद भले ही 23 साल बाद जागी है उसको अब याद आया है कि यह घोर अभियात्रिक विभाग है और इसे अनुभवहीन लोग चला रहे है।

अब जबकि 25 जनवरी 2000 को हुए समझौते मे सरकार और सयुंक्त संघर्ष समिती के बीच समझौता यह भी हुआ था कि अगर विभागीय घाटा बढता है तो फिर से पावर कार्पोरेशन को राज्य विद्युत परिषद मे बदल दिया जाएगा लेकिन आज एक लाख करोड के पास पहुच रहे घाटे पर ना तो मंत्री जी बात कर रहे है और ना ही प्रबंधन और तो और सयुंक्त संघर्ष समिती भी इस समझौते को भूल गयी आखिर इस घाटे का जिम्मेदार कौन है और कौन खा गया जनता का एक लाख करोड । खैर
युद्ध अभी शेष है

साभार
अविजित आनन्द

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