भारत की पहली मुस्लिम शिक्षिका फातिमा शेख जिन्होंने क्रांतिसूर्य ज्योतिबा फुले और माता सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर लड़कियों में करीब 170 साल पहले शिक्षा की मशाल जलाई थी ।

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रिपोर्टर:-

आज फातिमा शेख के जनम दिन पर कुछ खास रिपोर्ट
आज से लगभग 170 साल पहले तक शिक्षा बहुसंख्य लोगों तक नहीं पहुंच पाई थी जब विश्व आधुनिक शिक्षा में काफी आगे निकल चुका था, लेकिन भारत में बहुसंख्य लोग शिक्षा से वंचित थे।

लडकियों की शिक्षा का तो पूछो ही मत, क्या हाल था ?
ज्योति राव फुले पूना में 1827 में पैदा हुए उन्होंने समाज की मुख्य धारा से वंचित समाज की दुर्गति को बहुत ही निकट से देखा था।

उन्हें पता था कि इस समाज के पतन का कारण शिक्षा की कमी है, इसीलिए वे चाहते थे कि बहुसंख्य लोगों के घरों तक शिक्षा का प्रचार प्रसार होना चाहिए।
विशेषतः वे लड़कियों की शिक्षा के प्रबल पक्षधर थे इसका आरंभ उन्होंने अपने घर से ही किया।
उन्होंने सबसे पहले अपनी जीवन संगिनी सावित्रीबाई को शिक्षित किया।

ज्योतिराव अपनी जीवन संगिनी को शिक्षित बनाकर अपने कार्य को और भी आगे ले जाने की तैयारियों में जुट गए।
यह बात उस समय के कुछ षड्यंत्रकारियों को बिल्कुल भी पसंद नहीं आई, उनका चारों ओर से विरोध होने लगा।
ज्योतिराव फिर भी अपने कार्य को मजबूती से करते रहे।
ज्योतिराव नहीं माने तो उनके पिता गोविंद राव पर दबाव बनाया गया।
अंततः पिता को भी प्रस्थापित व्यवस्था के सामने विवश होना पड़ा।

मज़बूरी में ज्योतिराव फुले को अपना घर छोड़ना पडा। उनके एक दोस्त उस्मान शेख पूना के गंज पेठ में रहते थे।
उन्होंने ज्योतिराव फुले को रहने के लिए अपना घर दिया।
यहीं ज्योतिराव फुले ने 1848 में अपना पहला स्कूल शुरू किया। उस्मान शेख भी लड़कियों की शिक्षा के महत्व को समझते थे।

उनकी एक बहन फातिमा थीं जिसे वे बहुत चाहते थे।
उस्मान शेख ने अपनी बहन के दिल में शिक्षा के प्रति रुचि पैदा की।
सावित्रीबाई के साथ वह भी लिखना- पढ़ना सीखने लगीं। बाद में उन्होंने शैक्षिक सनद प्राप्त की।
क्रांतिसूर्य ज्योति राव फुले ने लड़कियों के लिए कई स्कूल खोले। सावित्रीबाई और फातिमा ने वहां पढ़ाना शुरू किया।
वो जब भी रास्ते से गुजरतीं, तो लोग उनकी हंसी उड़ाते और उन्हें पत्थर मारते।

दोनों इस ज्यादती को सहन करती रहीं, लेकिन उन्होंने अपना काम बंद नहीं किया।
फातिमा शेख के जमाने में लड़कियों की शिक्षा में असंख्य रुकावटें थीं।
ऐसे जमाने में उन्होंने स्वयं शिक्षा प्राप्त की तथा दूसरों को भी लिखना- पढ़ना सिखाया।
फातिमा शेख शिक्षा देने वाली पहली मुस्लिम महिला थीं जिनके पास शिक्षा की सनद थी।
उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए जो सेवाएं दीं, उसे भुलाया नहीं जा सकता।

घर-घर जाना, लोगों को शिक्षा का महत्व समझाना,
लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए उनके अभिभावकों की खुशामद करना फातिमा शेख की आदत बन गई थी।
आखिर उनकी मेहनत रंग लाने लगी। लोगों के विचारों में परिवर्तन आया वे अपनी घरों की लड़कियों को स्कूल भेजने लगे।
लड़कियों में भी शिक्षा के प्रति रूचि जाग्रत होने लगी। स्कूल में उनकी संख्या बढती गयी।

मुस्लिम लड़कियां भी खुशी- खुशी स्कूल जाने लगीं।
विपरीत व्यवस्था के विरोध में जाकर शिक्षा के महान कार्य में ज्योतिराव एवं सावित्री बाई फुले को साथ महान सहयोग व साथ दिया शिक्षा की क्रांति में।भारत देश व भारत की हर महिलाऐं आपकी हमेशा ऋणी रहेंगी।
ऐसी मानवतावादी शिक्षिका मातृशक्ति की प्रतीक फातिमा शेख जी के जन्मदिवस की सामाजिक न्याय,समता व बन्धुत्व को मानने वाले देशवासियों को असीम शुभकामनाएं शत शत नमन।

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