इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने राज्य सरकार से कहा s c,St कानून के तहत दोषी पर इल्जाम सिद्ध होने पर ही पीड़ित को दी जाए मुआवजे की

लखनऊ

हेमेंद्र कुमार राय एडवोकेट

.इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में जस्टिस दिनेश सिंह ने इसरार अहमद उर्फ इसरार व अन्य की याचिका पर दिया एक अहम आदेश।
उच्च न्यायालय ने कहा कि उनके संज्ञान में आया है कि हर दिन बड़ी संख्या में आ रहे हैं ऐसे मामले।

जहां राज्य सरकार से मुआवजा प्राप्त होने के बाद शिकायतकर्ता मुकदमा खत्म करने के लिए आरोपी के साथ कर लेते हैं समझौता। अदालत ने कहा कि उनका विचार है कि करदाताओं के पैसे का इस प्रक्रिया में किया जा रहा दुरुपयोग।

अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में राज्य सरकार कथित पीड़ितों से मुआवजे की रकम वापस लेने के लिए है स्वतंत्र। जहां शिकायतकर्ता ने आरोपी के साथ मुकदमा वापस लेने के लिए कर लिया है समझौता .. या अदालत ने मुकदमा कर दिया है रद्द।

बताते चलें कि याचियों ने उनके खिलाफ एससी – एसटी एक्ट के तहत रायबरेली जिले की विशेष अदालत में दाखिल चार्जशीट और मुकदमे को खारिज किए जाने की की थी मांग।याचियों का कहना था कि इस मामले में उनका वादी के साथ हो चुका है सुलह समझौता, मामले के वादी ने भी याचियों का समर्थन करते हुए कही थी सुलह की बात।

कोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर टिप्पणी की कि वादी को राज्य सरकार से मुआवजे के तौर पर मिल चुके हैं 75 हज़ार रूपए जबकि बाद में इस मामले में हो गया समझौता।इस प्रकार से मुआवजा बांटकर टैक्सपेयर्स के पैसों का किया जा रहा दुरुपयोग।

कोर्ट ने आगे कहा कि उचित यही होगा कि एससी – एसटी एक्ट के तहत अभियुक्त की दोष सिद्धि होने पर ही पीड़ित को दिया जाए मुआवजा न कि एफआईआर दर्ज होने या मात्र चार्जशीट दाखिल होने पर।

कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि जिन मामलों में मुआवजा दिया जा चुका है और वादी व अभियुक्त के बीच समझौते के आधार पर चार्जशीट खारिज की जा चुकी है, ऐसे मामलों में सरकार मुआवजे की रकम को वादी या पीड़ित से वापस लेने के लिए है स्वतंत्र।

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