प्रयागराज के संत महंत नरेंद्र गिरी के कमरे ने तीन करोड़ रुपए नकदी,पचास किलो सोना नौ क्विंटल घी, और करोड़ों रुपए की संपत्ति पुलिस को मिली,कहां से प्राप्त हुई ये संपत्ति?

प्रयागराज के महंत नरेंद्र गिरि की मृत्यु के तीन साल के बाद पुलिस ने उनके कमरे को खोला है, जिससे तीन करोड़ रुपये नकद, पचास किलो सोना, नौ क्विंटल घी और करोड़ों रुपये की संपत्ति के कागजात. इतनी संपत्ति एक तृतीय दर्जे के महंत के कमरे से मिली है। इनसे बड़े-बड़े तो भारत में सैंकड़ों महंत होंगे, और कुछ तो और भी बड़े हैं, जिनके पास अकूत संपत्ति जमा है।

बड़े-बड़े पीठाधीश्वर, शंकराचार्य, विशाल मंदिरों के पूजारी, आश्रमो के बाबा, अखाड़ों के संत, ठाकूरबाड़ी के महंत और अनगिनत मंदिरों के स्वामियों के पास न जाने कितनी संपत्ति जमा है।
यह सारी संपत्ति देश के लोगों ने ही तो दिया है। पर, इसका कोई भी उपयोग देश की भलाई या जनता के लिए नहीं होता।

धर्म की प्रतिष्ठा के लिए साधु, संत, महंत, बाबा, जगदगुरु, शंकराचार्य और अध्यात्मिक गुरु बने हजारों लोगों के पास गिरवी पडी देश की इतनी विशाल संपत्ति आखिर किस काम की? क्या इनका सदुपयोग देश के विकास के लिए नहीं हो सकता था?

क्यों पत्थरों को पूजने और पूजवाने वाले पूजारियों के पास इतनी संपत्ति पड़ी यूँ ही बेकार पड़ी रहेगी? क्या इस संपत्ति का देश की जनता के लिए उपयोग अधर्म कहलाएगा? काश, हम धर्म का सही अर्थ समझ सकते!

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