हमारे दिलों को जगाने के लिए काफी है उनके सजदे

संवादाता
निसार शेख

यह सिर्फ़ आटे का एक थैला था लेकिन ग़ज़ा के उन मज़लूम भूखे घरों में जैसे ईद का समाँ था। माँ की आँखों में ख़ुशी के आँसू, बच्चे ख़ुशी से झूम रहे थे, बूढ़े, जवान अल्लाह के हुज़ूर में सजदा-ए-शुक्र में झुके हुए थे… बस एक थैला !

और हम ? हम नेमतों के अंबार में गुम, कभी शुक्र नहीं करते, कभी ग़ौर नहीं करते कि हम पर अल्लाह का कितना फ़ज़ल है? उन मज़लूम मुसलमानों ने हमें सबक़ दिया है नेअमत की अस्ल क़ीमत वही जानता है जो उससे महरूम हो।

हम कितनी बे-दर्दी से खाना ज़ाया कर देते हैं,
कितनी बार बग़ैर शुक्र के खा लेते हैं,
और वह ? वह हर निवाले पर रब की हम्द करते हैं।

क्या हमारे दिल अभी ज़िंदा हैं?

क्या हम अपने भाइयों का दर्द महसूस करते हैं?
क्या हमने आज अल्लाह का शुक्र अदा किया?
शुक्रिया ए ग़ज़ा ! तूने हमें रज़ा की तालीम दी।
शुक्रिया ए मज़लूमो तुमने दिखाया कि सच्ची ख़ुशी दिल की होती है, न कि थालियों की।
शुक्रिया कि तुमने हमारी ग़फ़्लत पर सवाल खड़ा किया।
ए अल्लाह। हमें अनगिनत नेमतों पर शुक्रगुज़ार बना,
हमें अपने मज़लूम भाइयों के लिए दर्दमंद दिल अता फरमा, और हमें उनका सच्चा मददगार बना, महज़ तमाशाई नहीं।
वह महरूमी में ख़ुशी ढूँढते हैं।

और हम ख़ुशहाली में नाशुक्री करते हैं
ग़ज़ा वालों के सजदे, हमारे दिलों को जगाने के लिए काफ़ी हैं। भूख की तड़प क्या होती है गाजा वालों मजलूमों से सीखे।

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