हजरत अली r a जो इसी दिन यानी 18जिलहिज्जा,(बकरीद)को सबके मौला बन गए,कैसे जाने पूरी स्टोरी
अफजल इलाहाबाद
सन् 10 हिजरी का आख़िरी महीना ज़िलहिज्जा यानी बकरीद वाले महीने में पैगंबरे इस्लाम मुहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) ने अपनी ज़िंदगी का आख़िरी हज किया और मक्का से मदीने जाने के लिए अपने क़ाफ़िले को चलने का हुक़्म दिया।
किताबों में मिलता है कि जब यह क़ाफ़िला ग़दीर ए खुम नामी जगह पर पहुंचा तो हज़रत मुहम्मद (स.अ.) के पास अल्लाह के फ़रिश्ते जिब्राइल-ए-अमीन पैग़ाम लेकर आए। कहा, ऐ रसूल उस पैग़ाम को पहुंचा दीजिए जो आपके परवरदिगार की ओर से आप पर नाज़िल हो चुका है और अगर आप ने ऐसा न किया तो ऐसा है जैसे आपने रिसालत का कोई काम अंजाम नही दिया। अल्लाह, लोगों के शर से आप की हिफ़ाज़त करेगा। (सूरह मायदा आयत 67)
इस आयत से साफ़ है कि मुहम्मद साहब को कोई बेहद ज़रूरी काम सौंपा गया था। उन्होंने क़ाफ़िले से रुकने को कहा। गर्मी अपने शबाब पर थी। ऊंटों पर बैठने के लिए जो कजावा होते हैं, उनसे मिंबर (एक तरह की कुर्सी कहिए या तख़्त) बनाया गया।
रसूल मुहम्मद साहब उसपर चढ़े और ऊंची आवाज़ में एक ख़ुत्बा (स्पीच) दिया। ऐ लोगो वह वक़्त क़रीब है कि जब मैं अल्लाह के बुलावे को क़बूल कर तुम्हारे बीच से चला जाऊं। उसके दरबार में तुम भी जवाबदेह और मैं भी। क्या मैंने तुम्हारी ज़िम्मेदारियों को पूरा कर दिया है ?
जब लोगों ने हां में जवाब दिया तो उन्होंने फिर पूछा, क्या तुम गवाही देते हो कि इस पूरी दुनिया का माबूद एक अल्लाह है और मुहम्मद उसका बंदा और रसूल है।
जन्नत, जहन्नम और जन्नत की ज़िंदगी में कोई शक नही है ?
अल्लाह के रसूल सवाल करते रहे, लोग जवाब देते रहे। उनकी हर बात पर यक़ीन जताते रहे। हर बात में हामी भरते रहे। जब तमाम बातों का तक़रीबन एक लाख के मजमे ने इक़रार कर लिया ।
तब रसूल अल्लाह ने हज़रत अली का सबसे तार्रुफ़ कराया और कहा, “मनकुन्तु मौलाहु फ़हाज़ा अलीयुन मौलाहु।
मतलब पैग़म्बर ने फ़रमाया जिस-जिस का मैं मौला हूं उस उस के यह अली मौला हैं। ऐ अल्लाह उसको दोस्त रख जो अली को दोस्त रखे और उसको दुश्मन रख जो अली को दुश्मन रखे, उस से मुहब्बत कर जो अली से मुहब्बत करे और उस पर ग़ज़बनाक (परकोपित) हो जो अली पर ग़ज़बनाक हो, उसकी मदद कर जो अली की मदद करे और उसको रुसवा कर जो अली को रुसवा करे और हक़ को उधर मोड़ दे जिधर अली मुड़ें।
इतना सुनते ही हज़रत अबूबक्र से लेकर तमाम जलीलुलक़द्र सहबियों ने हज़रत अली को मुबारक दी और कहा ऐ अली! मुबारक हो ,आज से आप हमारे भी मौला हुए।
यानि मतलब साफ़ था पैग़म्बर ने उम्मत को भविष्य में होने वाली गुमराही से बचाने के लिए अली का दर चुना । यानि जिधर अली, उधर ही हक़ है सच्चाई है असल इस्लाम है, अली के मुक़ाबले में जो आए वो हक़ से भटका हुआ है चाहे उसके कितने बड़े अलक़ाब ही क्यों न लगे हों। क्योंकि रसूल अल्लाह की दुआ है, कभी ख़ाली नहीं जाती है।
अगर किसी को विलायत भी लेनी हो तो उसे सबसे पहले अली के दर पे ही आना होगा ।
जिन्होंने इस बारे में ग़दीर ए खुम के इस ऐलान के बारे में ज़िक्र किया है। इन नामों में इब्ने हंबल शेबानी, इब्ने हज्रे अस्क़लानी, जज़री शाफ़ेई, अबु सईदे सजिस्तानी, अमीर मुहम्मद यमनी, निसाई, अबुल आला हमदानी, अबुल इरफ़ान हब्बान।
आप सबको ईद-ए-ग़दीर मुबारक।