मेरठ की मशहूर शाही जामा मस्जिद U P में सबसे पुरानी है जिसका इतिहास सैंकड़ों साल पुराना है,जिस की नीव मेहमूद गजनवी के शासनकाल में रखी गई थी, इस बरेमे जानिए और भी कुछ खास रोचक जानकारी

महमूद गजनवी के वजीर की इस इबादतगाह को नसीरुद्दीन ने बनवाया था एक हजार वर्ष में प्रवेश कर चुकी है #_मेरठ की शाही जामा मस्जिद उत्तर भारत में सबसे पुरानी है।

दोस्तों जब भी जामा मस्जिद की बात अगर चलती है तो जेहन में सबसे पहले दिल्ली का ख्याल आता है लेकिन मेरठ की जामा मस्जिद का इतिहास इससे भी सैंकड़ों साल पुराना है,
इसकी स्थापत्य कला भी बाकी मस्जिदों से जुदा है,मजबूती और महत्व के नजरिए से भी यह बाकी मस्जिदों से बहुत उम्दा है।

मेरठ की इस जामा मस्जिद की नींव महमूद गजनवी के शासनकाल में रखी गी थी,
आज मेरठ का शुमार भारत के प्राचीनतम शहरों में है और जिसका इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है, मेरठ शहर विश्व का 63 वां सबसे तेजी से बढ़ता शहरी क्षेत्र और भारत का 14 वां सबसे तेजी से विकसित होता शहर है।

यह जामा मस्जिद मेरठ में स्थित है, उत्तर भारत की अति प्राचीन मस्जिदों में से एक है, मेरठ कोतवाली के निकट स्थित इस मस्जिद का निर्माण 11वीं शताब्दी में करवाया गया था, इसका निर्माण क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया था तथा उसके पश्चात् इल्तुतमिश के पौत्र नसीरूद्दीन महमूद ने इसका पुर्ननिर्माण 1239 में करवाया था यह सल्तनत काल की वास्तुकला का एक अनूठा नमूना है, यह मेरठ के पुराने शहर के भीतर स्थित है तथा एक अति पवित्र धार्मिक स्थल के रूप में माना जाता है।

मेरठ गजेटियर मे उल्लेख है कि महमूद गजनवी के वजीर हसन महबंदी जब मेरठ आए थे तब मेरठ मे मुस्लिमों की आबादी बहुत कम थी, मेरठ के बाले मियां के साथ उन्होंने काफी समय बिताया था, तभी कई सूफी लोग भी यहां बसे, ऐसे में इन लोगों की इबादत के लिए वर्ष 1019 में महबंदी ने मस्जिद की नींव रखी तब यह मस्जिद बहुत छोटी थी,

बता दें कि
जब गुलाम वंश नसीरुद्दीन महमूद के हाथ सत्ता आई तब उनके वजीर बलबन ने मस्जिद निर्माण का काम पूरा कराया, उसी समय इस मस्जिद को जामा मस्जिद का दर्जा दिया गया था इस तरह उत्तर भारत की सबसे पहले जामा मस्जिद का निर्माण मेरठ में हो गया, इस मस्जिद की दीवारें भले ही उम्र दराज हो गई हों, लेकिन अंदर जाने पर गुंबद के नीचे की नक्काशी मंत्रमुग्ध कर देगी, तुगलक काल से शहरकाजी जामा मस्जिद के इमाम शहरकाजी जामा मस्जिद का इमाम होता था यह प्रथा मोहम्मद बिन तुगलक के समय से चली आ रही है और आज भी कायम है।

प्रो. जैनुस साजिद्दीन सिद्दीकी का परिवार लगभग 300 वर्ष से इस सेवा में जुटा हुआ है, सन 1870 में हुई थी रिमरम्मत लेकिन मजबूती में इसका कोई सानी नहीं एक बार 1870 के दशक में मस्जिद का एक गुंबद गिर गया था जिसकी ब्रिटिश सरकार ने मरम्मत कराई थी, प्रो. सिद्दिकी के दादा दादाजी उस समय शहर काजी थे एक हिस्से की मरम्मत के लिए ब्रितानी हुकूमत को उन्होंने खत लिखा था, तब इस पर लगभग दो हजार रुपये खर्च हुए थे।

संवाद:मो अफजल इलाहाबाद

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