मिस्र के सीनाई पेनिनसुल्ला में कोहिनूर के पहाड़ जिसे जबल ए मूसा भी कहा जाता है, जिसके पास बनी केथरीन मोनेस्ट्री है जोकि ई .548और565 के बीच तामीर की गई , ईसाइयों की खानकाह है जिसके बारे में जाने खास जानकारी

एमडी डिजीटल न्यूज चैनल और प्रिंट मीडिया
विशेष संवाददाता और ब्यूरो

पहली तस्वीर में दिख रही इमारत मिस्र के सिनाई पेनिनसुला में कोहतूर के पहाड़ जिसे जबल-ए-मूसा भी कहते हैं, के पास बनी “सेंट कैथरीन मोनेस्ट्री” है। 548 ई० और 565 ई० के बीच तामीर की गई ये ख़ानक़ाह (मोनेस्ट्री) दुनिया की क़दीम तरीन ईसाई ख़ानक़ाहों में से एक है।

रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में इस ख़ानक़ाह से कुछ ईसाई आप के पास हाज़िर हुए और इल्तिजा की कि, हमें एक अहदनामा हमारी हिफ़ाज़त के लिए तहरीर कर दें कि, आने वाले वक़्त में मुसलमान इस चर्च को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुँचाएंगे। लिहाज़ा हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन ईसाईयों को एक अहदनामा दिया जिस पर निशानी के तौर पर अपने दस्त-ए-शफ़क़त का निशान भी लगाया।

दूसरी तस्वीर उसी असली अहदनामे की है जिसे ईसाईयों ने बड़ी हिफ़ाज़त से इस ख़ानक़ाह में बनी लाइब्रेरी में 1400 बरस से संभाल कर रखा है और इस पर जो निशान है, वो आप के दस्त-ए-शफ़क़त का है।

यह ख़ानक़ाह 2002 में यूनेस्को की आलमी सक़ाफ़ती वरसा (वर्ल्ड हेरिटेज साइट) बन गयी। क्योंकि ईसाईयत, इस्लाम और यहूदियत की रिवायात में इसकी मुनफ़रिद अहमियत है।

संवाद ;मो अफजल इलाहाबाद

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