मासाहारी खाना केवल तुर्की,अफगानी और मुगलो की ही देन नही है बल्कि आज से हजारों साल पहले चोल सम्राट दक्षिण पूर्व एशिया तक पहुंच चुके थे !

संवाददाता

मो अफजल इलाहाबाद

मांसाहारी खाने के शौकीन का मामला।

उस वक़्त के चेट्टियार नाविक सौदागर शौक से कई क़िस्म के सूखे और तरीवाले माँसाहारी व्यंजन खाते थे।
वास्तव में अंग्रेज़ी का ‘करी’ शब्द तमिल ‘कारी का ही अपभ्रंश है।

तमिलनाडु के सौदागर दो हज़ार साल पहले रोम के साथ व्यापार कर रहे थे और मलाबार तट अरब जगत से आने वाले व्यापारियों के संपर्क में रहा है. यह सोचना तर्क संगत नहीं कि यह आदान-प्रदान शुद्ध शाकाहारी रहा है।
स्वयं बुद्ध का देहांत भिक्षा पात्र में मिले दूषित मांस के कारण हुआ था, ऐसा माना जाता है. जातक कथाओं में राजपरिवारों एवं अमीर व्यापारियों के घरों का जो बखान मिलता है उससे यही बात पता चलती है।

अहिंसा का संकल्प लेने के बाद भी सम्राट अशोक के महल में परंपरा के निर्वाह के लिए माँस पकता था इसका जिक्र उसके शिलालेखों में दर्ज है।
महाभारत का रचनाकाल चौथी सदी ईस्वी पूर्व से चौथी सदी ईस्वी के बीच माना जाता है।

इसमें भारत वर्ष के अनेक प्रदेशों के निवासियों की रोजमर्रा की जिंदगी की झलकियों के साथ-साथ त्योहारों, शादी ब्याह के मौक़ों पर पकाए, खाए जाने वाले पकवानों का जो वर्णन मिलता है उससे भी यही साबित होता है कि देश भर में माँस खाया जाता था।

युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के वक़्त जो राजा महाराजा इंद्रप्रस्थ पहुँचे उनकी ख़ातिरदारी में पेश माँस की कई किस्म के व्यंजनों का बखान सुलभ है।
लगभग दक्षिण भारतीय ब्राह्मण मांसाहारी हैं।
वहीं उत्तर भारतीय अधिकतर ब्राह्मण मांसाहारी हैं।

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