मसजीद अल अक्सा हमारे खातिर कितनी अहम वो बेशकीमती है जिसकी कोई मिसाल नही

फिलिस्तीन और सुल्तान अब्दुलहमीद

मस्जिद अल – अक्सा हमारे लिए कितनी बेशकीमती है इसकी कोई मिसाल ही नहीं । यह किब्ला ए अव्वल और , मक्का मुकर्रमा और मदीना मुनव्वरा के बाद ये इस्लाम की तीसरी सबसे मुकद्दस जगह है ।

सुल्तान अब्दुल हमीद उस वक्त सुल्तान थे , जब थियोडोर हर्ज़ल और कई यहूदियों द्वारा एक अलग यहूदी देश की माँग उठ रही थी । सन 1896 में , हर्ज़ल ने उस्मानिया सल्तनत की कमजोरी का फायदा उठाते हुए अपने लोगों को एक सौदे के साथ इस्तांबुल भेजा , उसने सोचा कि तुर्क सुल्तान अब्दुल हमीद इसे ठुकरा नहीं सकेंगे ।

असल में उस समय यह सल्तनत एक भारी कर्ज के बोझ तले दबी हुई थी , जिसकी आज के समय तकरीबन 11.6 बिलियन डॉलर कीमत होगी , तो हर्ज़ल ने प्रस्ताव रखा कि अगर आप यहूदियों को फिलिस्तीन में रहने की इजाज़त देंगे तो हम आपको 2.2 बिलियन डॉलर की रकम देंगे ।

जिसके बदले में सुल्तान ने कहा ” मैं फिलिस्तीन की एक इंच जगह भी नहीं बेचूँगा , क्योंकि यह मेरी नहीं तमाम मुसलमानों की मिल्कियत है । उन्होंने इस सलतनत की कीमत अपने खून से अदा की है । तुम अपने पैसे अपने पास रखो , अगर तुम्हे फिलिस्तीन चाहिए तो तुम्हें हमारी लाशों के उपर से चढकर जाना होगा ।

सन 1901 में हर्ज़ल अपनी माँग के साथ सुल्तान अब्दुल हमीद से खुद आकर मिला । जिसके जवाब में सुल्तान ने दहाड़ते हुए कहा ” जब तक मैं जिंदा हूँ , मैं फिलिस्तीन की सरज़मीं को इस्लामी खिलाफत से कटते हुए देखने के बजाय अपने जिस्म को तलवार में ढकेल दूँगा । यहां तक कि अगर तुमने मुझे ज़मीन के वजन के बराबर भी सोना दे दिया तो भी मैं कभी राज़ी नहीं हूँगा । मैं मुसलमानों को शर्मिंदा नहीं करूँगा।

फ़िलिस्तीन ख़रीदना चाहते हो तो जान लो कि इसकी क़ीमत सभी मुसलमानों के खून की है । इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मनों के अलावा मेरा कोई दुश्मन नहीं है।

संवाद: मो अफजल इलाहाबाद

SHARE THIS

RELATED ARTICLES

LEAVE COMMENT