जानिए पाक सेनापति, और डोनाल्ड ट्रंप दोनों की लंच डिप्लोमेसी, फोन काल का नरेटिव

विशेष
संवाददाता

फोन कॉल का नॉरेटिव

ट्रंप मुनीर की लंच डिप्लोमेसी

आईटी सेल की इमेज बॉन्डिंग रिटेन करने की खोखली कोशिश

प्रमोद जैन पिंटू

जैसे ही मीडिया में खबर चली के पाकिस्तानी सेनापति मुनरो को ट्रंप ने लंच पर आमंत्रित किया है वैसे ही अमेरिका की पाकिस्तान को एक तरफा झुकाव वाली बात को गलत साबित करने के लिए और मोदी जी के विश्व गुरु चरित्र की रक्षा के लिए फोन कॉल का नॉरेटिव गढ़ा गया!

दरअसल् यह अर्ध सत्य रहा होगा !

प्रधानमंत्री के फोन कॉल पर कभी विदेश मंत्रालय को ब्रीफिंग करते हुए नहीं देखा गया है।
जब स्वयं प्रधानमंत्री छोटी-छोटी सी बातों के लिए ट्वीट करते है ।
मन की बात करते हैं , फिर इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर उनके व्यक्तिगत वार्तालाप पर विदेश सचिव कोई वक्तव्य दे यह बात हजम नहीं होती।

तीसरी बात यह है यह सामान्य शिष्टाचार के खिलाफ है क्योंकि प्रधानमंत्री की किसी नेता के साथ हुई व्यक्तिगत बातचीत को विदेश मंत्रालय के रिकॉर्ड पर रखा जाए।
विदेश सचिव सरकारके एक विभाग अधिकारी मात्र है प्रधानमंत्री की बात यदि विदेश मंत्री कहते केंद्रीय मंत्री परिषद की तरफ से कही जाती तो वह सरकार की बात होती तो ज्यादा असर कारक होती।

अमेरिका में सिर्फ पाकिस्तान के सेनापति को जिस तरह ग्लोरिफाई किया गया था लंच की डिप्लोमेसी से उसको न्यूट्रल करने के लिए यह नॉरेटिव घड़ा गया।
दरअसल श्रीमान ट्रंप ने फोन तो किया होगा लेकिन माय डियर फ्रेंड को फोन में उन्होने स्पष्ट रूप से अमेरिका में आमंत्रित किया था कि वह G7 समिट के बाद अमेरिका होते हुए भारत आए और जो पाक सेनापति के साथ लंच था वह भारत के प्रधानमंत्री पाकिस्तान के सेनापति और अमेरिका के राष्ट्रपति एक साथ करें!

इस डिप्लोमेसी की वजह थी एक तो ट्रंप यह स्थापित करना चाहते थे कि मध्यस्थता उनकी वजह से हुई है। दूसरी पाकिस्तान के सेनापति ने उन्हें नोबेल पीस प्राइज के लिए नामांकित किया है। अगर भारत के प्रधानमंत्री भी वहां उपस्थित होते हैं तो शायद इस पीस प्राइज के लिए उनके प्रतिनिधित्व को ज्यादा मान्यता मिलने के अवसर थे।

बीजेपी की आईटी सेल लगातार एक नॉरेटिव स्थापित करने की कोशिश कर रही है कि ईरान पर पाकिस्तान आक्रमण करें या ईरान पर अमेरिका जो आक्रमण करेगा उसमें पाकिस्तान के हवाई अड्डा का इस्तेमाल किया जा सके इसके लिए पाकिस्तान के सेनापति को बुलाया गया था।
पाकिस्तान खुलकर ईरान के साथ है वह उसकी मजबूरी भी है। क्योंकि उसे अरब देशों का साथ चाहिए और मुस्लिम कंट्री का भी। ईरान उसका स्वाभाविक दोस्त है और हर बार ईरान पाकिस्तान के साथ रहा है।

जिओ पॉलिटिक्स की भी बात करें, तो चीन तुर्की जैसे देश जो खुलकर पाकिस्तान के साथ खड़े थे। वह ईरान के समर्थन में है ऐसे में पाकिस्तान अमेरिका के दबाव में ईरान पर हमले की इजाजत दे दे इस नरेटीव में दम नहीं लगता।

दूसरा बीजेपी के दावों की पोल अमेरिका ने फिर खोल दी , जब विदेश सचिव के वक्तव्य के 24 घंटे के पहले ही राष्ट्रपति ट्रंप ने फिर एक बार बयान दिया कि भारत पाक युद्ध को न्यूक्लियर व्यवहार से बचने के लिए उनकी मध्यस्थ की बहुत बड़ी भूमिका थी।
और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है जिस फोन की बात की गई है , उसके संदर्भ में अमेरिका से किसी प्रकार की पुष्टि नहीं की गई है।

जब साहेब 35 मिनट तक लालआंख कर कर ट्रंप को धमका सकते हैं, तो क्या कारण है ट्रंप के एक बार फिर बयान देने के बाद प्रधानमंत्री भी खामोश है विदेश मंत्री भी और तथाकथित विशेषज्ञों के अनुसार भारत का सफलतम विदेश मंत्रालय भी?

अमेरिका की स्पष्ट डिप्लोमेसी है उसे साउथ एशिया में अपना अड्डों के लिए पाकिस्तान चाहिए और रूस की नाक में नकल डालने के लिए अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए बलूचिस्तान में अपनी मनमानी चाहिए। पाक अमेरिका को क्यों प्रिय है , क्योंकि वह अमेरिका के बि हाफ पर ही आतंकवादी गतिविधियों को मॉनिटर करता है।
चीन के लिए पाकिस्तान व्यापारिक मजबूरी है क्योंकि पाकिस्तान से होकर उसके ट्रेड का एक बहुत बड़ा रास्ता गुजरता है और पाकिस्तान में लगभग सरेंडर की मुद्रा में उसे चीन को सौंप रखा है।

अमेरिका जानता है भारत और चीन के बीच में बहुत सारे विवाद है इसलिए हथियारों की होड़ में चीन भारत को मदद नहीं करेगा और रूस यूक्रेन युद्ध में उलझा होने के कारण वैसे ही निर्माण क्षमता में बहुत पीछे हो गया है। ऐसे में अमेरिका ही एकमात्र ऐसा प्रतिद्वंदी है जिसे भारत में बाजार के अवसर प्राप्त हो सकते हैं। भारत एक बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार है और हथियारों के बाजार के लिए एक उपयुक्त ग्राहक। इसलिए अमेरिका की नीति भारत को बैलेंस करने की भी है।
भाजपा का थिंक टैंक इस वक्त घबराया हुआ है, क्योंकि जिस तरह इन दिनों मोदी जी की वैश्विक छवि को डेंट लगा है विश्व गुरु की छवि आहत हुई है और सीज फायर करने के बाद , फिर ट्रंप के आगे घुटने टेकने के बाद और सबसे बड़ी बात तो यह है कि पहलगाम और पुलवामा का आतंकवादियों पर साहेब के मुंह से एक शब्द तक नहीं निकलता।

इन सब बातों ने उनके परसेप्शन की हवा निकाल दी है और बुरी तरह बेचैनी महसूस करती हुई उनके आई टी सेल इस तरह रोज नए-नए झूठ नरेटिव गढ़कर सोशल मीडिया और गोदी मीडिया के माध्यम से उस आभामंडल को बचाए रखने की कोशिश कर रही है।

साभार; पिनाकी मोरे

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