क्या है अरबी(इस्लामिक)महीनों के नाम ?जानिए !

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रिपोर्टर:-

अल्लाह तआला 📖कुरआन मे फरमाता है कि-
*_”जिस दिन से अल्लाह ने यह ज़मीन व आसमान बनाए है तभी से अल्लाह की किताब मे महीनों की तादाद बारह(12)है.और उनमे से चार महीने हुरमत वाले है.”_*(📖सूरः तौबा 36)

अरबी(इस्लामिक महीनों के नाम जो 🌙चाँद के हिसाब से होते है।
मुहर्रम
यह हुर्मत यानी तअज़ीम से बना है।
चूंकि अरब वाले इस महीने की बहुत इज़्ज़त करते थे इसमे लड़ाई झगड़े को बुरा जानते थे इसलिए इसे मुहर्रम कहा गया।

सफ़र
इस महीने मे अरब वालों के घर खाने पीने की चीज़ो से खाली हो जाते थे और उन्हे कमाई के लिए सफ़र करना पड़ता था।
इसलिए इसे सफ़र यानी खाली होने का महीना कहते थे।

रबीउल अव्वल
रबीउल आख़िर
रबीअ के मानी है बहार अव्वल के मानी है पहली जिस वक़्त महीनों के नाम रखे गए तब इन दो महीनो मे बहार का मौसम था इसलिए इन्हे रबीअ कहा गया यानी बहार का पहला महीना और दूसरा महीना।
जमादिउल अव्वल जमादिउल आख़िर
लफ्ज़ जमादी जम्दुन से बना है यानी बर्फ जमना,जब इन महीनों का नाम रखा गया तब सख़्त सर्दी थी कुछ मुल्कों मे बर्फ पड़ रही थी।
तालाब वगैरह जमे हुए थे,इसलिए इन महीनो के नाम जमादिउल अव्वल और जमादिउल आख़िर हुए।
रज्जब
इसके मानी इज़्ज़त व अज़मत के होते है।
चूंकि अरब वाले खासकर कबीला मुदर के लोग इस माह की बहुत ताज़ीम किया करते थे इसलिए इसे रज्जब कहा गया।
हदीसों मे इसे रजबे मुदर यानी कबीलए मुदर का मोहतरम महीना कहा गया है।
शअबान
यह लफ्ज़ शअब से बना है यानी फैलना,बिखरना,या अलग अलग होना।
,चूंकि अरब वाले आम तौर से इस माह मे रिज़्क की तलाश और तिजारत के लिए अलग अलग मकामात पर सफ़र करके चले जाते थे इसलिए इस शअबान कहा गया।

रमज़ान यह लफ्ज़ रमज़ से बना है जिसके मानी तपाना, हरारत पहुंचाना,या जला देना के होते है।
कुछ लोगों का कहना है कि जब महीनों के नाम रखे गए तो जो महीना जिस मौसम में पड़ा उसका नाम उसकी मुनासिबत से रख दिया गया ।

जो महीना गरमी मे आया उसे रमज़ान कह दिया गया।
दूसरा यह कि अल्लाह को इस महीने मे इबादत के ज़रीए लोगों के गुनाहों को जलाकर मिटवाना था।
उसने इस महीने का नाम रमज़ान रखवाया चूंकि इस महीने मुसलमान रोज़े की इबादत से भूख प्यास की शिद्दत बरदाश्त करता है।

जो उसके गुनाहो को जला देने का सबब होती है इसलिए इसे रमज़ान कहा गया।
महीनों मे सिर्फ ‘रमज़ान’ का नाम कुरआन’ मे लिया गया है।
शव्वाल
यह लफ्ज़ शौलुन से बना है यानी उठाना,ऊंचा करना इस महीने से हज्ज की तैयारी शुरू हो जाती है।
ज़िलकदा
इस महीने मे अरब लोग कही आते जाते नही थे घरों मे ही बैठे रहते थे इसलिए इसे ज़िलकदा कहा गया। ज़िलहज्ज
_यह महीना हज़्ज का महीना है लिहाज़ा इसे ज़िलहज्ज कहा  गया !

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