कौन है बदरुद्दीन तय्यब जी क्या रहा खास उनका किरदार
एडमिन
बदरुद्दीन तैयबजी स्वतंत्रा संग्राम सेनानी थे इंडियन नेशनल कांग्रेस के संस्थापक सदस्य और तीसरे अध्यक्ष भी रहे।
वह बाम्बे हाई कोर्ट के पहले भारतीय बेरिस्टर , और चीफ जस्टिस थे ।
तैयबजी की पैदाइश 10 अक्तूबर 1844 में मुम्बई के एक सुलेमानी बोहरा परिवार में हुई।
उनके पिता का नाम मुल्ला तैयब अली भाई मियां था जो एक धार्मिक नेता और व्यापारी थे ।
तैयबजी ने उर्दू व फारसी की शिक्षा एक मदरसा में हासिल की।
उसके बाद वह Elphinstone college में दाखिल हुए सन् 1860 में। जब वह मात्र 16 साल के थे।
उन्हें शिक्षा के लिए लंदन भेज दिया गया जहां उनके दूसरे 6 भाई शिक्षा प्राप्त कर रहे थे।
1867 तक कानून की शिक्षा ग्रहण करने के बाद बाम्बे लौट आए ।
दिसंबर 1867 में उन्होंने बाम्बे हाई कोर्ट में बेरिस्टर की हैसियत से प्रेक्टिस शुरू की ऐसा करने वाले वह पहले भारतीय थे ।
तैयबजी 1873 में बाम्बे म्युनिसिपल कारपोरेशन के सदस्य बनाए गए 1875 से 1905 तक वह बाम्बे युनिवर्सिटी के सदस्य और 1882 में बाम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य भी रहे।
बदरुद्दीन तैयबजी अपने बड़े भाई जस्टिस कमरुद्दीन के साथ इंडियन नेशनल कांग्रेस के बनाने में भी शामिल हुए।
और उन्हें 1887 ,88 में कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया ।
इलाहाबाद में होने वाले कांग्रेस के अधिवेशन को उन्होंने अध्यक्ष के तौर पर संबोधित किया ।
तैयबजी मुसलमानों की एकता बनाए रखने के कामों में लगे रहे और उन्होंने बाम्बे में इस्लाम कल्ब और इस्लाम जिमखाना की बुनियाद भी रखी ।
1902 में वह बाम्बे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बनें उस समय चीफ़ जस्टिस बनने वाले पहले भारतीय थे जहां इनके समक्ष तिलक जी का केस पेश किया गया।
उन्होंने तिलक जी को जमानत देकर हलचल मचा दी ।
आखिर 19 अगस्त 1906 में 62 वर्ष की आयु में इनका इंतेकाल हो गया।
तैयबजी का परिवार
बदरुद्दीन तैयबजी के परिवार में एक से एक लोग पैदा हुए।
जिन्होंने देश को आज़ाद कराने और उस की तरक्की व शिक्षा व्यवस्था में उल्लेखनीय योगदान दिया है ।
जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि इनके बड़े भाई जस्टिस कमरुद्दीन भी कांग्रेस के संस्थापक सदस्य थे ।
इनके भतीजे अब्बास तैयबजी बड़ौदा राज्य के चीफ जस्टिस थे।
गांधी जी के आव्हान पर डांडी मार्च में शामिल हो गए वह गांधी जी के निकटतम सहयोगियों में से थे ।
बदरुद्दीन तैयबजी के पोते जिनका नाम भी बदरुद्दीन तैयबजी था।
सिविल सेवा में थे वह नेहरूजी के पसंदीदा आफीसर्स में से एक थे।
अशोक चक्र को भारतीय राजकीय प्रतीक बनाने का सुझाव इन्होंने दिया था।
आजादी के बाद ईरान समेत कई देशों में भारतीय राजदूत रहे ।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर भी रह चुके हैं।
इनकी पत्नी सुरैया तैयब जी ने भारतीय राष्ट्रध्वज तिरंगा को डिजाइन किया था।
मशहूर इतिहास कार इरफान हबीब साहब का संबंध इसी परिवार से है ।
बदरुद्दीन तैयबजी का सबसे बड़ा कारनामा जो कि बाम्बे में मुसलमानों की शिक्षा के लिए अंजुमने इसलाम नाम की शिक्षण संस्थान की स्थापना की है 1874 में।
तैयबजी ने अपने बड़े भाई जस्टिस कमरुद्दीन , और कुछ दोस्तों को अपने घर बुलाया वहां उन लोगों ने 1857 के स्वंतत्रा संग्राम के बाद बने हालात विशेष रूप से मुसलमानों के हालात की समीक्षा की और फैसला किया कि मुम्बई में एक स्कूल खोला जाए।
जिससे मुस्लिमों की शिक्षा को बेहतर बनाया जा सके इसके लिए मुंशी ग़ुलाम मोहम्मद साहब को दिल्ली लाहौर और लखनऊ भेजा गया कि देखें वहां स्कूल किस तरह बने हैं शिक्षा का क्या प्रबंध है मुंशी ग़ुलाम मोहमद के तीनों जगहों से लौटने के बाद एक मीटिंग हुई जिसमें अंजुमने इसलाम की स्थापना की।
बात तय हुई तुरंत तैयबजी ने साढ़े सात हजार रूपए और मोहम्मद अली रूखे साहब ने दस हज़ार रुपए देने का ऐलान किया।
जो उस समय के हिसाब से एक बड़ी रकम थी।
शुरू में किसी के घर में 628 बच्चों के साथ शुरू किया गया यह संस्थान।
आज 145 वर्षों के बाद भारत के बड़े शिक्षा संस्थानों में से एक है।
इसके अंतर्गत 97 स्कूल , कालेज और इंस्टीट्यूट मुंबई में चल रहे हैं।
जिनमें एक लाख बीस हजार से अधिक छात्र व छात्रा पढ़ रहे हैं।
बहुत से मशहूर लोग जैसे पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुर्रहमान अंतोले , दिलीप कुमार साहब और कादर ख़ान यहां से शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं।