कौन सुनेगा संविदा, निविदा कर्मियों का दर्द और कौन लड़ेगा इन की लड़ाई?

लखनऊ

संवाददाता

वाह रे पावर कार्पोरेशन वाह

लखनऊ 8 जनवरी, इस नए साल के आगमन होते ही ठंड ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया और ठंड बढते ही अनुरक्षण का काम बढना शुरू हो गया है। लोगो ने अपने घरो मे हीटर ब्लोअर चलाने शुरू कर दिये जिससे कि बिजली की खपत बढ गयी और लाईनो पर लोड फिर से बढ गया।

नतीजा हर जगह फाल्ट होने शुरू हो गये विभागीय अभियन्ताओ को बडका बाबू ने फर्मान सुनाया कि डिस्कनेक्शन अभियान चलाओ और विभागीय अभियन्ताओ ने अपने से नीचे वालो को यह फर्मान जारी कर दिया कि बिल वसूलो या कनेक्शन काटो और सारी जिम्मेदारी आगयी इन गरीब ठेके पर रखे निविदा के कर्मचारियो पर ।यह बहुत मामूली सी तनख्वाह पाने वालो की फौज निकल पडी सीढी ले कर साहब के हुक्म की तामील करने ।

बिना पूरे सुरक्षा इन्तेजाम के चल दिए ट्विटर पर आगयी फोटो की फलानी जगह आज अभियान चला और इतने डिसकनेक्शन हुए फोटो मे एक निविदा कर्मी जो कि अपने आप को सविदा कर्मी मानता है। लोहे की सरिया से बने एक जुगाड से बिना किसी सुरक्षा उपकरण के खंभे पर चढता दिखाई देता है। कुछ खोजबीन की तो पता चला सीढी कार्यदायी सस्था ने उपलब्ध ही नही कराई ना दस्ताने ना अर्थिग राड, बस हाथ मे प्लास पकडा और जुगाड से खंभे पर चढ गये लाईन काटने ।

ऐसे में अगर हादसा हुआ तो पूरा परिवार हाय कर के रह जाता है या तो वो निविदा कर्मी आंशिक रूप से या पूर्ण रूप से विकलांग हो जाता है और कई बार अपनी जान से हाथ भी धो लेता है तो किसी को कोई चिन्ता नही होती। बस एक पाच लाख रुपए का चेक उस मृतक के परिजनो के हाथो मे थमा कर इतिश्री हो जाती है। अखबार के किसी कोने मे एक छोटी सी खबर प्रकाशित हो जाती है और सब भूल जाते है।

ना तो कार्यदायी सस्था पर कोई कार्रवाई होती है ना जिम्मेदार अधिकारियो पर ही कोई अंगुली उठाता है।। इनके अपने नेता भी इनकी बात आगे नही बढा पाते क्योकि जिन लोगो पर इन सब की जिम्मेदारी है वो खुद ही डर के मारे आत्महत्याऐ कर रहे है और उनके उपर बालो को अवैध रूप से बैठे बडका बाबू इतना प्रताडित कर रहे है कि उनको हार्ट अटैक पढ रहे है।

विभाग निजीकरण की तरफ तेजी से बढ रहा है और कोई इसको बचाने के लिए आवाज उठाने वाला नही बचा तो इस आवाज को उठाने के लिए और अपनी जायज मांगों को मनवाने के लिए इस श्रमिक वर्ग को खुद ही संगठित हो कर आवाज उठानी पड़ेगी। और अपने नेताओ से पूछना पडेगा कि आखिरर समझौता होने के बाद क्यो नही उसे आज एक महीने से ऊपर हो जाने पर भी लागू क्यो नही करा पाऐ? जब कि संघर्ष समिति और अभियन्ता संघ और जूनियर इन्जीनियर संगठन लगभग हर हफ्ते मंत्री जी के दरबार मे सलाम बजाने पहुच जाते है।

वैसे उच्च न्यायालय इलाहाबाद मे भी कोई तारीख नही पड रही है सुनवाई की। इन सब के बीच अगर कोई वर्ग सफर कर रहा है तो वो है श्रमिक वर्ग, यानि जिनके कन्धो पर इस विभाग को चलाने की जिम्मेदारी है तो जुमलेबाजी छोडो और अपने हक को हासिल करने आप को ही आगे आना होगा क्यो कि सबसे बडी जिम्मेदारी आप पर है और सबसे कम वेतन भी आपका ही है जो मैने महसूस किया जो चर्चा सुनी व स्थितिया देखी वह लिख दी । खैर

युद्ध अभी शेष है

संवाद
अविजित आनन्द

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