ऐसे कुछ लोग है जो इस्लाम मुक्त होने का ख्वाब देख रहे है, जबकि इस्लाम मगलूब नही बल्कि गालिब होने के लिए आया है इसको कैसे और किस तरह गालिब करना है ये अल्लाह की जिम्मेदारी है!
इस्लाम ग़ालिब होने के लिए आया है मिटने के लिए नही
आज जिसे देखो वह इस्लाम के खिलाफ बोलकर अपनी रोजी रोटी चला रहा है, अभी हाल ही में व्यपारी रामदेव का विडिओ मेरे सामने आया जो इस्लाम को लेकर ऊल जुलूल बात कर रहा है, और अब ऐसे विडिओ आये दिन किसी न किसी के आते ही रहते हैं उनमें एक नई प्रजाति Ex muslim नामक प्राणी की भी है।
कुछ लोग इस्लाम मुक्त का ख्वाब भी देखते है, उन्हे नहीं मालुम कि इस्लाम मग़लूब नहीं ग़ालिब होने के लिए आया है।इसको कैसे ग़ालिब करना है किस तरह ग़ालिब करना यह अल्लाह की ज़िम्मेदारी है।यह दीन किसी अरब किसी तुर्क किसी ख़ुरासानी किसी हिंदुस्तानी की क़यादत का मोह़ताज नहीं..अल्लाह ने जब जिससे जो काम लेना है लेकर इस्लाम को ग़ालिब कर देगा..और बड़े बड़े नामनेहाद इस्लामी धुरंधर धरे कि धरे रह जायेंगे।
इस्लाम जिन पर नाज़िल हुआ उस वक़्त की दुनिया में वह सबसे बैकवर्ड ख़स्ताह़ाल और बद्दू चरवाहे जैसे अलक़ाब से पुकारी जाने वाली क़ौम थी।और यही चरवाहे जब इस्लामी अलम लेकर निकले तो दुनिया की दो सुपर ताक़तें मटियामेट होकर इतिहास के पन्नों में सिमट गयीं । अगली सात सदियों तक फिर इन चरवाहों का मुक़ाबला करने वाली दुनिया में कोई क़ौम नहीं बची थी।
फिर एक वक़्फ़ा आया जब मंगोल साम्राज्य का उदय हुआ तो दुनिया की सारी क़ौमों ने ख़ुशफहमी पाल ली कि बस इस्लाम चंद घड़ी का मेहमान है अब मिटा कि तब मिटा?
लेकिन अल्लाह ने फिर स़ाबित किया कि इस्लाम ग़ालिब होने के लिए आया मग़लूब नहीं..जब दुनिया के बड़े बड़े अरब और तुर्क सलात़ीन गाजर मूली की तरह काटे जा रहे थे तो अल्लाह ने उनके ग़ुलामों से काम ले लिया..जी हां ! मिस्री गुलाम वंश के बादशाहों ने जब ऐन जालूत़ में मंगोलों को शिकस्त-फाश दी तो उस वक़्त किसी के वहम-ओ-गुमान में भी नहीं था कि मंगोलों को हराया भी जा सकता है..चीन समेत लगभग पूरा एशिया और पूर्वी यूरोप मंगोलों की तलवारों के नीचे था..लेकिन अफ्रीक़ा के दरवाज़े पर ग़ुलाम वंश पहरेदारी कर रहा था और एशिया के एक कोने हिंदुस्तान में भी गुलामों का ही राज था..और अल्लाह की क़ुदरत देखिए कि दोनों तरफ सिर्फ ग़ुलाम ही मंगोल साम्राज्य से आज़ाद थे..और इन्हीं ग़ुलामों ने मंगोल साम्राज्य की ऐसी बिसात लपेटी कि मंगोल साम्राज्य अब तारीख़ के पन्नों में ही नज़र आता है।
उसके बाद छः सौ साल तक इस्लामी अलम की जानशीन रही ख़िलाफ़त-ए-उस्मानिया भी तुर्क ज़रूर थी लेकिन उन्हें भी तुर्कों में सबसे पसमांदा यानि सबसे पिछड़ा तुर्क का दर्जा ह़ासिल था, और यह कबाइली लोग थे, बाद में तुर्कान-ए-ग़ज़ को जो इज़्ज़त नस़ीब हुई वह तो इन्हीं उस्मानियों के इक़्तेदार का नतीजा था।लेकिन अल्लाह ने इस्लाम को ग़ालिब करना था सो कर दिखाया वह किसी ह़सब-नसब का मोहताज थोड़ी है!
सात सौ साल बाद फिर एक वक़्फ़ा आया है एक सदी गुज़रने को है।लंपू चंपू ख़ुशफहमी पाले हुए हैं कि हम विश्वगुरू बन गए हैं अरब में अपना मा’अबद बनाकर सोच रहे हैं कि गोबर में कट्टा मार दिए हैं। दमिश्क और बग़दाद में मंगोलों ने भी टेंगरी स्थापित कर ली थी क्या हुआ ? अब वह टेंगरी जेसीबी ख़ुदाई से भी नहीं मिलने वाली।
आज का मुसलमान अगर अगर खुद को बेबस और लाचार समझ रहा है तो अल्लाह किसी और को खड़ा करके अपना काम लेगा क्योंकि इस्लाम ग़ालिब होने के लिए आया है मग़लूब नहीं।तू नहीं कोई और सही
कोई और नहीं तो कोई और सही।अल्लाहु-अकबर का यह सिलसिला रूकने वाला नहीं चलता रहेगा ताकयामत।यहूद नस़ारा मजूसी मंगोल सब ने कोशिश कर ली फिर उनके सामने तो समंदर के आगे तुम्हारी औक़ात नाली जितनी भी नहीं।
बस नाम रहेगा अल्लाह का।
संवाद:मो शहीद