एक खास पैगाम खुदा की तरफ से गैबी मदद का इंतजार करनेवालों के नाम

एमडी न्यूज
संवाददाता

गैबी मदद का इंतजार करने वालों के नाम/ जब होगी गैबी मदद

गैबी मदद स्पेन के लिए नहीं आई,तुर्क खिलाफत को बचाने नहीं आई,इजरायल की स्थापना को रोकने नहीं आई,बाबरी मस्जिद को शहीद किया गया उस दौरान भी गैबी मदद नहीं आई,इराक और सीरिया के लिए नहीं आई।
म्यांमार में हजारों मुसलमानों का कत्लेआम किया गया जवान लड़कियों और औरतों के साथ गैंग रैप को अंजाम दिया गया किंतु उस दौरान भी मुसलमानों के लिए गैबी मदद नहीं आयी।

2002में हुए
गुजरात में दंगाइयों द्वारा दो हजार से भी मुसलमानों को निशाना बनाकर हत्या,कत्लेआम किया गया, मासूम लड़कियों और औरतों की इज़्ज़त लूटी गई उस वक्त मस्जिद पर के लिए भी गैबी मदद नहीं आई।
कश्मीर के लिए भी नहीं आई।
फिर भी हम घरों और मस्जिदों में बैठकर गैबी मदद का इन्तजार कर रहे हैं। हरियाणा में एक सप्ताह पहले सेकडो की तादाद में दंगाइयों ने रात के वक्त मस्जिद में घुस कर मस्जिद को जलाकर दंगा फसाद को अंजाम दिया और वहां के इमाम मौलाना साद को जान से मार डाला उस वक्त भी मुसलमानों के हक में नही आई कोई भी गैबी मदद।

हां इतना जरूर है कि
बद्र की लड़ाई में गैबी मदद आई जब 1000 के मुकाबले मे मुसलमान केवल 313 जंग के मैदान में उतरे और फता हो गए।
खंदक की लड़ाई में गैबी मदद तब मिली जब अल्लाह के प्यारे नबी ﷺ ने भी अपने पेट पर पत्थर बांधे खाई खोदी और जंग के मैदान में उतरे।

अफ़ग़ानिस्तान मे तालीबान को गैबी मदद मिली जब भूखे प्यासे मुसलमान बग़ौर सामान सुपर पावर रशिया से टकरा गए
लेकिन ऐशो आराम की जिंदगी जीते हुए लक्जरी घरों और कारों में बैठे गैबी मदद के मूंतजीर मुसलमानों को अब भी गैबी मदद का इंतजार रहता हैं

तागूती निजाम पर मुत्मईन होकर फिर गैबी मदद के मूंतजीर
अल्लाह की जमीन पर अल्लाह और उसके प्यारे नबी ﷺ के अहकाम लागू करने की मेहनत करने के बजाय सिर्फ नात पाक मिलाद की मेहफील ओर तसबीह के दाने लाख 2 लाख घुमा कर गैबी मदद के है मूंतजीर।
युनिवर्सल धर्म को चंद इबादतो मे समेट कर गैबी मदद के मूंतजीर!

मुसलमानो को मुजाहिद की जगह मुजावर बनाने के बाद गैबी मदद का मूंतजीर…
जिहाद फी सबिलील्लाह और शहादत के जज़बे से दूर रहकर सिर्फ मुसलमानों पर हुए जुल्म को देखकर
अल्लाह दुश्मन को गरक करे
अल्लाह दुश्मन को तबाह बर्बाद करे
अल्लाह मजलूम लोगों की मदद करे।
इस तरह की बद्दुआ करके बस चुपचाप होकर सुकुन से तरनिवाले खाकर पेट भर भरकर गहरी नींद सोने वाले ग़ैबी मदद के मूंतजीर है?

यानी सब कुछ अल्लाह पर छोड़कर और पीछे हटकर गैबी मदद का इंतजार करते हैं
जिहाद के मैदान में डरते और कतराते हुए आसमान से फरीश्तो के उतरने के मुंतजिर।
क्या हम इस तरह अल्लाह और उसके प्यारे नबी ﷺ के साथ डरामे करते रहेंगे?
शैतान में भी ऐसी जुर्रत नहीं थी और न ही है।

पैगंबर ﷺ की सुन्नत हमें बताती है कि पहले पैगंबर ﷺ ने जंग के मैदान को सजाया और फिर अल्लाह से मदद के लिए दुआ में हाथ उठाये।तब मुसलमानों को गैबी मदद मिली।
आज हम मुसलमान सिर्फ बद्दुआ करते है न पहले ना बाद कोई अमली कदम उठाते है। ना अमल में कोई पुख्ता दम हैं।
ऐसी सुरत में शायद सिर्फ अल्लाह की पकड और अजाब ही आता है कोई ग़ैबी मदद नहीं।

संवाद :मोहमद राशिद खान

SHARE THIS

RELATED ARTICLES

LEAVE COMMENT