आला हजरत फाजिले बरेलवी मजहबी रहनुमा होने के साथ साथ एक अजीम साइंसदान भी थे,जानिए उनके बारे में और भी कुछ खास जानकारी

संवाददाता
S R खान

प्रेस विज्ञप्ति
खानकाहे आलिया क़ादरिया रज़वीया नूरिया हसनिया हसनैनीया,तहसीनिया l

दीनाँक :10/09/2023

विषय : आला हज़रत फ़ाज़िले बरैलवी मज़हबी रहनुमा होने के साथ साथ एक अज़ीम साइंसदान भी थे।

क़ुरान की पहली सूरत नाज़िल हुई मेक्का की पहाड़ी जबल अन नूर की एक गार मे जिसका नाम गारे हिरा है,जब फरिश्ता वही लेकर बारगहे हुज़ूर ए अकदस (सल्ललाहो अलैहिवसल्लम ) मे हाजिर हुआ और कहा “इक़रा “यानि पढ़ो,पढ़हो अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया,आदमी को खून की फटक से बनाया, पढ़हो तुम्हारा रब ही सबसे बड़ा करीम, जिसने क़लम से लिखना सिखाया, आदमी को सिखाया जो ना जानता था।

(सूरह अलक़ आयत 1,2,3 तर्जुमा कंज़ूल ईमान)। तो क़ुरान की सूरह ए अलाक़ से हमें मालूम हुआ कि तालीम की क्या अहमियत है। यह वोह रौशनी है जिसके हुसूल से इंसान दीन ओ दुनिया की कामयाबीया हासिल करता है और जब इसमें पिछड़ता है तो पस्तियों मे खो जाता है।

मुस्लिम क़ौम जब तक हुक्मारा रही जब तक तालीम से आरास्ता रही जब हमने तालीम को छोढ़ा तो हमारे अमल ना अच्छे रहे ना जहाँ मे हमारी क़द्र ओ मंज़िलत रही। वरना इस्लामिक गोल्डन पीरियड मे बड़े बड़े उलूम ओ फुनून के मराकीज़ हमारी ही मीरास थे।

आला हज़रत फ़ाज़िले बरैलवी की पहचान दुनिया भर मे उनके इलमी कारनामो से ही हुई। उन्होंने मुजदीद, मुफक्कीर, आलिम फ़ाज़िल की हैसियत से तो पूरी दुनिया मे इल्म का लोहा माना। लेकिन उनके जदीद साइंसी कारनामो का पहलु कही दब गया। उसकी एक वजह यह भी रही कि उनकी तहकीक और तहरीर फ़ारसी अरबी और उर्दू ज़बान मे है और जदीद साइंस और टेक्नोलॉजी इंग्लिश मे।

आपके साइंसी उलूम के चंद वाक़ियत क़लम बंद करदु ताकि मेरे दावे की पुख्तागी हो सके और अहले इल्म हज़रत को कुछ मज़ीद तहकीक का मुकाम फरहम हो। आला हज़रत का इल्म ए रियज़ी (मैथ्समेटिक्स )का हैरान करने वाला वाकीया।

सर ज़ियाउददीन वाईस चांसलर अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जो ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के पढ़े हुए थे
उन्हें मैथमेटिक्स के एक मसले की रिसर्च मे दुशवारी पेश हुई, उन्होंने जर्मनी मे होने वाले सेमिनार मे अपने मसले के हल की गरज से जाने का इरादा किया। यह बात जब शोभा ए दीनियत के प्रोफेसर सुलेमान अशरफ क़ादरी साहब को मालूम हुई जो आला हज़रत के मुरीद थे। उन्होंने कहा कि एक बार मेरे साथ बा रगहे आला हज़रत मे चलिए। उनके कहने पर सर ज़ियादीन जब बरैली तशरीफ़ लाए तो आला हज़रत नमाज़ ए असर के लिए बैठे थे।

सुलेमान अशरफ साहब ने सारा मुआमला बताया और कहा कि फुर्सत से इस मसले पर गौर कीजियेगा,आला हज़रत ने जवाब दिया कि मसला क्या है? सर ज़ियाउददीन ने अपनी जेब से कागज़ क़लम निकाला और मसला बताया। आला हज़रत ने फ़ौरी उसका हल उन्हें कई मेथडस से लिख कर दे दिया, वोह बेसाख्ता कह उठे कि सुना था इल्म ए लदउननी (अताई इल्म )क्या है? आज अपनी आँखों से देख लिया।

आला हज़रत का इल्मे फलकियात (Astronomy)
अमेरिकन साइंसदान प्रोफेसर अल्बर्ट एफ पोर्ट मिशिगन यूनिवर्सिटी ऑफ़ अमेरिका ने 17 दिसंबर 1919 को एक पेशंगोई की सूरज के पास कुछ सय्यारे जमा होंगे और उनके टकराओ की वजह से पृथ्वी पर तबाही होंगी। अल्बर्ट एफ पोर्ट की यह पेशंगोई बाकिपुर शहर से निकलने वाले अख़बार दी एक्सप्रेस मे छपी। जब आला हज़रत ने यह खबर पढ़ी तो उन्होंने इसका जवाब बरैली से निकलने वाले अख़बार अल रज़ा मे उसका रद छापा और 17 दलिलो से बताया कि फला फला सय्यारे इतनी दुरी पर होंगे और आपस मे नहीं टकराएंगे और ना दुनिया मे तबाही होंगी। आला हज़रत के जवाब को न्यूयॉर्क टाइम्स 16 दिसंबर 1915 ईसवी को प्रमुखता से छापा गया।
वैसे तो आला हज़रत ने मॉडर्न साइंस की तहक़ीक़ पर 17 किताबें लिखी है, चंद के नाम यहाँ दिए जा रहे है।
1- तुलूब वा गुरुब ए नययार ए ऐन।
2-इस्टाग्राट ए तक़वीमत ए कोकिब।
3-मदीनए उलूम ए दर समीन।
4-इस्टाग्राजे उसूल ए कमर ।

चश्मे चिरागे खानदान ए आला हज़रत इंजीनियर सोहैब रज़ा खान की क़लम से ।

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