जोधपुर से ख़ास रिपोर्ट।
शनिवार की दोपहर थी। गर्मी ऐसी कि पंखे भी सोच में पड़ जाएं। लेकिन जोधपुर हाईकोर्ट के अधिवक्ता संघ का हाल कुछ और ही था। वहां AC से ज़्यादा ठंडी बातें हो रही थीं। क्यों? क्योंकि मंच पर ‘आर्ट ऑफ गिविंग’ का कार्यक्रम चल रहा था और इस बार की थीम थी – नेबरगुड। अब आप सोच रहे होंगे, ये नेबरगुड क्या होता है? भाई साहब, पड़ोसी वाला गुडनेस। वही जो दुख में पहले दरवाज़ा खटखटाए, खुशियों में बिना बुलाए मिठाई ले आए। जिसके घर से आती रसोई की खुशबू और आवाज़ दोनों जान-पहचान की लगती हो।
ब्रांड एंबेसेडर हरीश कुमार माइक संभालते हैं। आंखों में चमक और बातों में मिशन वाला जोश। बोले – “हम यहां सिर्फ बात करने नहीं, दिल जोड़ने आए हैं।” और फिर शुरू हुई डॉ. अच्युत सामंता की कहानी – कैसे एक छोटे गांव के लड़के ने 5000 रुपये से शुरुआत की और आज KIIT में 40,000 बच्चों को मुफ़्त में खाना, रहना, पढ़ाई, खेलकूद सब दे रहा है। अरे भैया, ये तो शिक्षा का अम्बानी निकला!
अब मंच पर आईं अधिवक्ता कांता राजपुरोहित। जैसी गरिमा, वैसा ही दिल। बोलीं – “पड़ोसी वो होता है, जो बिना कहे काम आए। बाकी सब तो रिश्तेदार होते हैं व्हाट्सएप वाले, काम के समय ऑफलाइन!” हॉल में ठहाके गूंजे। लेकिन बात सीधी दिल में उतरी। किसी ने पीछे से कहा – “हमारे वाले पड़ोसी को भी बुला लेते, थोड़ी क्लास हो जाती!”
किशन मेघवाल साहब भी बोले –”जो पास रहता है, वही सबसे बड़ा सहारा होता है। बाकी तो सब जीओ-लोकेशन में ही रहते हैं!” कार्यक्रम में मौजूद बाकी वकीलों की फेहरिस्त भी लंबी थी – धर्मेंद्र सुराणा, श्यामसिंह गादेरी, बुद्धाराम चौधरी, गणपत इन्दलिया, कन्हैया लाल, संजय जोया, दिलीप बारूपाल, मोना सोलंकी, सिद्धार्थ राज, चंद्रवीर – सबने मिलकर बातों की ऐसी झड़ी लगाई कि कानून के बीच से इंसानियत झांकती दिखी।
अंत में जनता का टेकवे – पड़ोसी सिर्फ घर के बगल में नहीं होते, दिल के भी बगल में होते हैं। नेबरगुड मतलब, जब दीवारें नहीं रिश्ते काम आते हैं। और ‘आर्ट ऑफ गिविंग’ मतलब, बिना मतलब कुछ अच्छा करना – वो भी पूरे दिल से! यही है असली बात – और यही है जोधपुर वाला जज़्बा!