CAG ने किया पर्दाफाश? रिपोर्ट में बड़ा खुलासा स्टेशनों और ट्रेनों में मिलने वाला खाना इंसानो के खाने लायक नही!
रिपोर्टर.
रेल में मिलने वाला खाना इंसान के खाने के काबिल नहीं है. नियंत्रक एवं लेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है!
भारतीय रेलवे की कैटरिंग सर्विस पर कैग की ऑडिट रिपोर्ट शुक्रवार को संसद में रखी जानी है !
रिपोर्ट में बताया गया है कि रेलवे स्टेशनों पर जो खाने-पीने की चीजें परोसी जा रही हैं, वो इंसानी इस्तेमाल के लायक ही नहीं हैं?
रिपोर्ट के मुताबिक ट्रेनों और स्टेशनों पर परोसी जा रही चीजें प्रदूषित हैं।
डिब्बाबंद और बोतलबंद चीजों को एक्सपायरी डेट के बावजूद बेचा जा रहा है।
जांच में यह भी पाया गया कि रेलवे परिसर और ट्रेनों में साफ-सफाई का बिलकुल ध्यान नहीं रखा जा रहा.
इसके अलावा ट्रेन में बिक रही चीजों के बिल न दिए जाने और फूड क्वॉलिटी में कई तरह की खामियों की भी शिकायतें हैं।
सीएजी और रेलवे की ज्वाइंट टीम ने 74 स्टेशनों और 80 ट्रेनों का मुआयना करने के बाद इस रिपोर्ट को तैयार किया है।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि रेल में यात्रियों को दी जा रही खाद्य वस्तुओं के संबंध में ठेकेदारों ने कीमतों के साथ समझौता किया और गुणवत्ता मानकों पर ध्यान नहीं दिया?
रेलवे प्रशासन की ओर से प्रभावी कार्रवाई भी नहीं हुई. इसके कारण यात्रियों को खाद्य और पेय पदार्थों के ज्यादा दाम देने पड़े और ठेकेदारों ने स्टेशनों पर अस्वच्छ और निम्न गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थो का विक्रय जारी रखा.
शुक्रवार को संसद में पेश कैग की ‘भारतीय रेलवे में खानपान सेवाओं’ पर रिपोर्ट में कहा गया कि रेलवे खानपान के संबंध में यह प्रावधान है कि विक्रय की गई वस्तुएं निर्धारित दरों पर बेची जाएं !
इस प्रकार की प्रत्येक वस्तु का मूल्य रेल प्रशासन के द्वारा निर्धारित किया जाएगा और यात्रियों से अधिक प्रभार नहीं लिया जाएगा !
इन वस्तुओं में बिस्कुट, सीलबंद उत्पाद, मिठाइयां आदि शामिल हैं. इन्हें पीएडी वस्तुएं कहा जाता है और इन्हें लाइसेंसधारी इकाइयों के साथ-साथ विभागीय खानपान सेवा इकाईयों में बेचा जाता है.
रिपोर्ट के मुताबिक यह देखा गया कि ब्रांड का चयन क्षेत्रीय रेलवे द्वारा किया जाता है, लेकिन इनमें मूल्यों का उल्लेख नहीं होता है।
ब्रांड के अधिकृत विक्रेता को इस शर्त के साथ एमआरपी पर विक्रय की अनुमति दी गई है कि खुले बाजार में विक्रय किए गए समान उत्पाद की एमआरपी से अधिक नहीं हो.
कैग के अनुसार पीएडी वस्तुएं खुले बाजार की तुलना में भिन्न वजन और मूल्य से रेलवे स्टेशनों पर बेची जा रही थीं
, जिसमें रेलवे परिसरों में प्रति यूनिट लागत, बाजार के विक्रय मूल्य से बहुत अधिक थी।
इतना ही नहीं, जुर्माना लगाए जाने के बावजूद यात्रियों से ज्यादा दाम लेने और शोषण के मामले जारी रहे !
रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2005 की खान-पान नीति के अनुसार भारतीय रेल ने खान-पान व्यवसाय को भारतीय रेलवे खान-पान एवं पर्यटन निगम (IRCTC) को सौंप दिया !
साल 2010 में इस नीति में फिर से संशोधन किया गया और भारतीय रेल ने IRCTC से फूड प्लाजा एवं फास्ट फूड यूनिटों को छोड़कर सभी खान-पान इकाइयों का प्रबंधन वापस लेने और इन्हें विभागीय रूप से प्रबंधित करने का निर्णय किया।
खान-पान सुविधाओं की गुणवत्ता में अपेक्षानुसार सुधार नहीं होने पर रेलवे बोर्ड ने नई खान-पान नीति 2017 को प्रतिपादित की, जिसे 27 फरवरी 2017 में जारी किया गया. इसके बावजूद हालात नहीं सुधर रहे हैं!
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि ठेकेदारों को ठेका देने के लिये निर्धारित अधिकतम सीमा का पालन न करने से रेलवे ने कुछ फर्मो के अधिपत्य को बढ़ावा दिया.
एकाधिपत्य के कारण यात्रियों को प्रदान की जाने वाली सेवाओं कीगुणवत्ता से समझौता हुआ।
खान-पान नीति में बार बार परिवर्तन और खान-पान इकाईयों के प्रबंधन के उत्तरदायित्व को रेलवे से आईआरसीटीसी को हस्तांतरित करने और वापस लेने के परिणामस्वरूप यात्रियों को प्रदान की जाने वाली खान-पान सेवाओं के प्रबंधन में अस्थिरता की अवस्था उत्पन्न हुई है।
इसमें बार-बार परिवर्तन के कारण रेलवे और आईआरसीटीसी के बीच समन्वय विषयों और ठेकेदारों के साथ वैधानिक विवाद बढ़े हैं।
कैग ने अपनी सिफारिशों में कहा कि रसोईयानों के निर्माण के दौरान इसमें गैस बर्नर से विद्युत ऊर्जा उपकरणों के अंतरण की नीति को ध्यान में रखा जाए.
लंबी दूरी की ट्रेनों के मामले में नीति के अनुसार रसोईयानों के प्रावधान पर विचार किया जाए ।
रेलवे खानपान इकाईयों को आईआरसीटीसी को हस्तांतरित करने की प्रक्रिया को सुगम बनाया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि क्षेत्रीय रेलवे अपने दायित्वों का वहन करे।
इसमें कहा गया है कि आईआरसीटीसी को स्टेशनों पर पर्याप्त संख्या में सस्ता जनता खाना प्रदान करने के लिये दायित्वबद्ध किया जाए और यात्रियों के बीच इसे प्रभावी रूप से प्रचारित किया जाए।
कैग ने सुझाव दिया है कि खान-पान प्रदाताओं द्वारा अनुचित पद्धतियों जैसे अधिक दाम वसूलना, निर्धारित मात्रा से कम खाना परोसना, स्टेशनों और ट्रेनों में अप्राधिकृत खाद्य सामग्री बेचना, मूल्य कार्ड का प्रदर्शन नहीं करना और बेचे गए खाने के सामान के लिये रसीद जारी नहीं करने को रोकने के लिए रेलवे द्वारा प्रभावी जांच एवं नियंत्रण सुनिश्चित किया जाए !