मिटा दे अपनी हस्ती को गर कुछ मर्तबा चाहे तो दाना खाक में मिलकर गुले गुलज़ार होता है
आखिर कैसे मार गिराया ?
आज भी पश्चिमी दुनिया इससे नहीं निकल पाई है।
जिस दिन इनका मुकाबला अफगानों से होगा तो वो गुलेल से ही मार गिराएंगे राफेल को और अब जर्मनी ने भी अफ़ग़ान दूतावास इमारत-ए-इस्लामी अफ़ग़ानिस्तान के ह़वाले करने का फ़ैस़ला किया।
सोचिए ! यह लोग उन 46 देशों में शामिल थे जो बड़े ग़ुरूर के साथ अल्लाह के मह़बूब बंदों को मिटाने आए थे…आज 25 साल बाद उन्हें अपनी ज़मीन आबाद करने के लिए सौंप रहे हैं।
इत्तेफ़ाक़ देखिए कि जो फ़िरऔन बनकर मिटाने आए थे आज उनमें से कोई एक भी सत्ता में नहीं , यहां तक कि लोग उनके नाम भी भूल गए , कुछ मर खप गये और कुछ गुमनामी की ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं लेकिन अल्लाह के मह़बूब बंदों में लगभग 70% आज भी वही लोग इक़्तेदार में हैं जो आज से पच्चीस साल पहले मैदानों में मिटने आए थे।
मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ हौस़ला चाहे।
कि दाना ख़ाक में मिलकर गुले-गुलज़ार होता है।
संवाद;मोहमद शफीक, अफजल इलाहाबाद