चुनाव चोरी पर मोदी और चुनाव आयोग को जवाब, चुनाव का विपक्ष द्वारा बहिष्कार

संवाददाता

चुनाव चोरी पर आमदा मोदी सत्ता और चुनाव आयोग को सही जवाब होगा चुनावो का बहिष्कार

“प्रमोद जैन पिंटू”

जब चुनाव करने वाली संस्था ही चुनाव चोरी पर उतारू हो जाए तो फिर लोकतंत्र के मायने बचते क्या है?

जब सत्ता लोकतंत्र की मर्यादाओं की सीमा लांघ दे , और न्याय प्रणाली आदेश की जगह आग्रह करें और चुनाव चोरी आयोग अपनी मनमानी करें
उसके बाद यदि विपक्ष चुनाव में जाना भी चाहे तो उसका अर्थ क्या बचता है?
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यह पहली बार नहीं हुआ है पिछले लगातार चुनाव में चुनाव आयोग पर सवाल उठाए जाते रहे है?

कभी कानून ने आंख बंद कर ली कभी सत्ता ने कानून बदल दिए और कभी आयोग ने जवाब नहीं दिए!

मशीनों में वोट कैसे बढ़ जाते हैं, सुप्रीम कोर्ट में हलफ नामा देने के बावजूद भी आवश्यक शुल्क जमा करने के बाद भी डाटा
ईरेंज कर दिया जाता है!

5 महीने में एक प्रदेश में 76 लाख मतदाता बढ़ जाते हैं। 5:00 बजे बाद बाद वोट डालने वाले लोगों की संख्या लाखों में नजर आती है और चुनाव आयोग सूचना देने में आनाकानी करता है। वीडियोग्राफी देने की बात पर इधर-उधर की बात कर कर बात को बाईपास किया जाता है!

एक ही ई पिक कार्ड के कई मतदाता पकड़े जाने के बाद भी
चुनाव आयोग पहले तो मन मानी करता है बाद में स्वीकार करता है लेकिन सुधार नहीं!

कभी आधार कार्ड को मतदाता पहचान पत्र से लिंक करने की बात की जाती है और कभी आधार कार्ड की विश्वसनीयता पर ही सवालिया निशान लगाया जाता है!

पिछले 25 सालों से वोट दे रहे लोगों की नागरिकता पर सवाल उठाए जाते हैं!
इंटेंसिव रिवीजन के नाम पर बिहार में जो कुछ हो रहा है उस पर बड़े-बड़े राजनीतिकविश्लेषकों के सवाल और फिर जागरुक पत्रकारों पर दमन का सिलसिला इस बात का प्रमाण है। इंटेंसिव रिवीजन के नाम पर चुनाव आयोग एक पार्टी विशेष की संस्था बन गया है!

जभी तो एक कमरे में बैठकर पचासों बी एल ए कन्वेंशनल फार्म पर जाली हस्ताक्षर कर रहे हैं, एक राजनीतिक दल के कार्यकर्ता लाखों की संख्या में चुनाव आयोग ने किस आधार पर bla बना दिए , लोगों ने वीडियो देखा है एक पार्टी की महिला विंग की जिला अध्यक्ष कन्वेंशन फॉर्म की जांच कर रहीहै?

ग्राउंड पर लोग कह रहे हैं हमें फॉर्म ही नहीं मिले रिसीविंग फॉर्म किसी को नहीं दिया गया और चुनाव आयोग दावा कर रहा है 90% लोगों के फॉर्म भर दिए गए!
चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ होने से लेकर वो टो की गणनातक आयोग की हर प्रक्रिया विवाद का विषय रहती है!

बेशर्म होता चुनाव आयोग पूरी ढीठता के साथ अपनी अनैतिकताओं का बचाव करता है, और कई-कई बार तो यह भ्रम पैदा कर देता है कि चुनाव आयोग कहीं सत्ता का ही कोई फ्रंटल ऑर्गेनाइजेशन तो नहीं है!

आदर्श और नैतिकता के दुहाई देने वाली विचारधारा मर्यादा के निम्नतम स्तर पर खड़ी होकर नंगी नजर आती है! लोकतंत्र को अपहरण कर कर देश को तानाशाही की ओर आगे बढ़ाया जा रहा है!
जिस चुनाव व्यवस्था पर लोगों का भरोसा खत्म हो गया है और जो व्यवस्था रोज-रोज परिणाम को अपहरण करने की कोशिश करती है उस व्यवस्था के खिलाफ जन आक्रोश की अभिव्यक्ति और सड़क से संघर्ष तभी ही अपनी सफलता का आयाम छू सकेगा जब सत्ता को जनता इस बात का जवाब देगी कि उसकी व्यवस्था पर इस देश का भरोसा नहीं रहा है!

न्याय को पिछले 4 सालों से हम देख रहे हैं जो या तो स्थितियों को इस संदर्भ में विश्लेषित कर देता है या कुछ आदर्शवादी बातें कहकर स्थितियों को आगे बढ़ा देता है!
ऐसे भी मेरा मानना है विपक्ष को चुनाव का बहिष्कार कर देना चाहिए और लोगों को जन आक्रोश की अभिव्यक्ति देने के लिए सड़क से क्रांति का बिगुल बजा देना चाहिए!
भरोसा खोती व्यवस्था के खिलाफ जन विद्रोह अभी-अभी हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश में सारे विश्व ने देखा है?

मेरा सवाल सिर्फ यह है क्या बहिष्कार एक अहिंसक तरीका है जो इस सत्ता को व्यवस्था को झकझोर सकता है?
और लोकतंत्र के प्रति इस देश की आस्था को आदम कद बना सकता है!

आपके विचार हमारा मार्गदर्शन करेंगे!
साभार;पिनाकी मोरे

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