इस कदर जुल्मों सितम कबतक रहेंगे खामोश?पहले मुसलमानों को बनाया जाता रहा निशाना अब दलितों की बारी

उड़ीसा
विशेष संवाददाता

ओडिशा के गंजाम से दिल को चीर देने वाली खबर।

बुलू नायक और बाबुला नायक, दो दलित भाई, जिनका कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने अपनी बेटी की शादी के लिए तीन गायें खरीदीं।

मगर इस देश में इंसानियत का गला घोंटने वाली वहशी भीड़ को यह मंजूर न हुआ।

गौ-तस्करी का झूठा इल्ज़ाम लगाकर पहले पैसे मांगे, और जब मना किया तो उनकी इंसानियत को रौंद डाला।

आधा सिर मुंडवाया, खरीगुम्मा से जाहड़ा गांव तक दो किलोमीटर घुटनों के बल रेंगने को मजबूर किया।
घास खाने, नाली का गंदा पानी पीने की सजा दी। क्या यही है हमारा देश?
जहां इंसान को जानवर से भी बदतर समझा जाता है?

*कल तक ये भीड़ सिर्फ मुसलमानों को निशाना बनाती थी।
सिर्फ शक की बुनियाद पर मॉब लिंचिंग कर उनकी हत्याएं की गईं।
तुम चुप रहे, तमाशा देखते रहे।

अब देखो, ये आग हर घर तक पहुंच रही है।
बुलू और बाबुला का दर्द सिर्फ उनका नहीं, हर उस इंसान का दर्द है जो इस ज़ुल्म के खिलाफ खामोश है। देश के करोड़ों देशवासियों का दर्द है
लगेगी आग तो आएंगे घर, कहीं जद में सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है?

ये आग हर उस दिल में लगनी चाहिए, जो इस बर्बरता को देखकर सिहरता नहीं।
कब तक खामोश रहोगे?
कब तक इंसानियत की हत्या होती रहेगी?
संवाद;पिनाकी मोरे

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