पाक भारत जैसी ताकतवर के सामने कुछ भी नहीं है मगर चीन की क्या है भारत के सामने हकीकत

विशेष संवाददाता

शक्ति के सामने:-

दरअसल हम इसी में खुश हो जाते हैं कि पाकिस्तान हमारे सामने कुछ नहीं है। दरअसल हम इसी में खुश हो जाते हैं कि हमने पाकिस्तान को पीट दिया, घर में घुसकर मार दिया।

मगर जैसे ही सामने चीन होता है, हमारी सिटृटी पिट्टी गुम हो जाती है। देश के विदेश मंत्री कहते हैं कि “चीन हमसे बड़ी इकोनॉमी है हम नहीं लड़ सकते।

देश के प्रधानमंत्री कहते हैं कि
ना कोई हमारी सीमा में घुसा है ना किसी ने हमारी चौकियों पर कब्ज़ा किया है”।
फिर चीन से गुपचुप समझौता करके ऐलान किया जाता है कि चीन जो हमारी सीमा में घुसा था वह यहां तक वापस जाने के लिए तैयार हो गया है।
हम गलवान घाटी में चीन द्वारा हमारे 20 से अधिक सैनिकों के मारे जाने को छिपाते हैं और देश के बाज़ार को चीन को कमाने के लिए खोले रहते हैं।

चीन भारत में व्यापार करके सबसे अधिक कमाने वाला देश है , मगर उसके अरुणाचल प्रदेश का नाम बदलने पर हमें घिघ्घी बंध जाती है और अरुणाचल प्रदेश के शहरों और क़स्बों का नाम बदलने पर हम कहते हैं कि उसके नाम बदलने से क्या होता है।

हम 1965 , 1971 का युद्ध तो गर्व से याद करते हैं मगर 1962 का युद्ध हम भूल जाते हैं। 1998 में तत्कालीन रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीज, उसके बाद तत्कालीन रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि चीन हमारा सबसे बड़ा दुश्मन हैं।
दरअसल यही वास्तविकता है कि भारत का सबसे बड़ा दुश्मन चीन है, वह भी नहीं चाहेगा कि भारत मज़बूत हो उसके पड़ोस में एक महाशक्ति का उदय हो। इसलिए उसने हमें सबसे अधिक चोट दी है , मगर हम इससे मुंह चुरा कर उनके राष्ट्रपति को झूला झुलाते हैं क्योंकि वह हमसे मज़बूत है।

तब जबकि हमारे पास विरासत महाभारत की है जिसमें 5 पांडव कहीं शक्तिशाली कौरवों पर जीत दर्ज करते हैं, तब जबकि हमारी विरासत रामायण है जहां उस दौर के सबसे सशक्तिशाली रावण को राम ने जंगली जानवरों को साथ लेकर हरा दिया था।
दरअसल मामला सिर्फ सांप्रदायिक सोच का है , जो खुशी और लाभ पाकिस्तान को सामने रखकर मिलता है वह चीन को सामने रखकर कहां मिलता है? इसीलिए चीन के सामने हमारा नजरिया बदल जाता है।

चीन से लड़ने की हिम्मत पैदा करिए, साहस पैदा करिए, सामर्थ्य पैदा करिए , पाकिस्तान तो अपने आप हार जाएगा।
मगर हकीकत यह है कि सब कुछ सामने आने के बाद भी हम चीन का पाकिस्तान को युद्ध में समर्थन देने तक को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। यह शक्ति के सामने दंडवत होने का हमारा चरित्र है , शक्ति को पूजने की हमारी संस्कृति है।
चीन से लड़ने की शक्ति पैदा करो . चीन ही हमारे देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है…
हकीकत यही है , सोचिएगा.
संवाद; पिनाकी मोरे

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