साल 2014के पहले ना जाने कहां गए वो दिन, था कितना अच्छा माहौल, किंतु इन की वजह से महज 10साल में कितना बदल गया भारत?

नई दिल्ली
एमडी डिजिटल न्यूज
वरिष्ठ पत्रकार
पीनांकी मोरे

सिर्फ 10 साल में कैसे बदल गया भारत ?

2014 से पहले – मीडिया सरकार से सवाल करता था.
2014 के बाद अब मीडिया विपक्ष से सवाल करता है।
2014 से पहले – नागरिक सरकार को दोषी ठहराते थे। लेकिन
2014 के बाद – नागरिक स्वयं को दोषी मानते हैं।

2014 से पहले – कॉरपोरेट्स को मीडिया के खुलासे का डर होगा।
2014 के बाद – अधिकांश मीडिया पर कॉरपोरेट का स्वामित्व है। और तो और
2014 से पहले – संसद में मंत्रियों को घेरा जाता था। सवाल पूछे जाते थे और बदले मे जवाब की डिमांड रहती थी लेकिन
2014 के बाद हालात ही बदल गए क्योंकि मंत्रियों के पास संसद का स्वामित्व है।

गौर तलब कीजिए कि
साल 2014 से पहले – शिक्षक सद्भाव और सहनशीलता सिखाते थे। मगर
2014 के बाद उसके विपरित – कई शिक्षक सक्रिय रूप से नफरत सिखाते हैं।

2014 से पहले – भारतीयों को अभिव्यक्ति की आज़ादी पर गर्व था।
2014 के बाद – कई भारतीय अभिव्यक्ति की आज़ादी को देशद्रोह मानते हैं।

2014 से पहले भारत के समस्त- पीएम प्रेस वार्ता में मीडिया से रूबरू होते थे। किंतु
2014 के बाद सब पहलुओं को ठोकर मारते हुए वर्तमान प्रधानमंत्री ने शून्य प्रेस वार्ता की, और लोकतंत्र की जननी” का जश्न मनाया।

वर्ष
2014 से पहले – संस्थानों ने अपनी बात पर कायम रहने की कोशिश की। परंतु
2014 के बाद – संस्थाएँ डिफ़ॉल्ट रूप से सरकार को बूट करती हैं।

2014 से पहले – सरकारों द्वारा सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा दिया गया था। लेकिन
2014 के बाद सब बदल दिया गया इन महाशय की सत्ता में समस्त जनता के साथ एक मात्र धोखा हुआ है – सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने वालों को ही सरकार द्वारा गिरफ्तार किया जाता है।

ध्यान देने योग्य बात है कि अब भारत की 140करोड़ जनता कहना तो बहुत कुछ चाहती है लेकिन इनकी तानाशाही की वजह से अपने आप को भय, बेबस और खुद को ठगा सा महसूस करते हुए बहुत ही कठिन हालात में दिन गुजार ने पर मजबूर है । जिसको बहुमतों से चुना था उसने जनता के साथ विश्वास घात किया है।

बीते कुछ वर्षो
2014 से पहले – विरोध प्रदर्शनों को जीवन के निशान के रूप में मनाया जाता था। मगर सबकी मजबूरी है कि
2014 के बाद – विरोध प्रदर्शन राष्ट्रविरोधी हैं।

2014 से पहले – नागरिकों ने सस्ते ईंधन और भोजन की मांग की। उस मुताबिक उन की मांगों को खासे तवज्जो दिया जाता रहा था मगर जैसे ही
2014 में मोदी जी देश के प्रधान मंत्री चुने गए उस के बाद के हालात ही बदलते गए। समस्त नागरिक अपनी मांगों की अपेक्षा की बजाए कमरतोड़ बढ़ती महंगाई पर चुप हो गई।

यूं तो सभी जानते है कि
2014 से पहले – भारत के समस्त किसान भारत के अन्नदाता समझे जाते थे। किंतु
2014 के बाद से इन अन्नदाता किसानी को अनेकों पीड़ाये और बुरे दिन झेलने पड़ रहे है। – आज मोदी राज में किसान देशद्रोही और भारत विरोधी कहलाए जा रहे हैं।

2014 से पहले – बुद्धिजीवी तर्क की आवाज़ थे।
2014 के बाद – बुद्धिजीवी शहरी नक्सली हैं।
2014 से पहले – डेटा और आँकड़े ज्यादातर सच थे।
2014 के बाद – केवल सरकार समर्थक। डेटा सच है.
2014 से पहले – सब्सिडी गरीबों के लिए थी।
2014 के बाद – सब्सिडी गायब कर दी गई जिसमे हानिकारक बदलाव है।

2014 से पहले – संविधान हमारा गौरव था।
2014 के बाद – संविधान घटिया है, बेकार है, डंप करने लायक है। बहुत सारे बदलाव किए जा रहे है।
2014 से पहले – विज्ञान विज्ञान था, आस्था व्यक्तिगत थी।
2014 के बाद – विज्ञान हीन है, आस्था सर्वोच्च है।

2014 से पहले – सरकार की आलोचना करना। एक महान लक्ष्य था
2014 के बाद – सरकार की आलोचना। परम देशद्रोह है।
2014 से पहले – राज्य सरकार से अलग था। पीएम से अलग था, राष्ट्र से अलग था.
2014 के बाद – राज्य = सरकार। = पीएम = राष्ट्र

2014 से पहले – सबसे ज्यादा खुशी भारतीय होने के नाते मनाई जाती थी।
2014 के बाद – कई लोगों को एहसास हुआ कि वे भारतीय हैं क्योंकि मोदी ने उन्हें इसका एहसास कराया।
एक ऐसा एहसास
सिर्फ 10 साल में कैसे बदल गया भारत? सबको सोचने पर मजबूर और बे बस कर दिया साहब ने।

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