छूटपुट टीमों को गर छोड़ दें तो भाजपा और आम आदमी पार्टी जो ए और बी कहलाती है,ऐसे में अब संघ का नटवरलाल बच पाएगा कहना मुश्किल ही नहीं ना मुमकिन है!

संघ का नटवरलाल केजरीवाल क्या बच पायेगा?

जैसा कि अब तक जाहिर हो चुका है कि संघ द्वारा पोषित छुटपुट टीमों को यदि छोड़ दें तो दो टीमें भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी जो ए और बी टीम कहलाती हैं इन दिनों परस्पर उलझती हुई नज़र आ रही हैं उससे साफ होता है कि अब भाजपा से ही संघ को कड़ी चुनौती मिल रही है आम लोग इस खेल को नहीं समझ पा रहे हैं।
भाजपा एक बहुत बड़ी और धनी पार्टी बन चुकी है और वह हारने के बाद भी जीत का सेहरा सर पे बांध लेती है।

फिलहाल पूर्वोत्तर के परिणाम आने के बाद भाजपाई गिरगिट रंग बदलने में लग गए हैं ये उनकी राजनैतिक कलाबाजियां हम पिछले कई चुनावों में देख चुके हैं भाजपा ने अपना ज़मीर बेच रखा है।वह में केन प्रकारेण 2024में सरकार बनाने की आकांक्षी है।
उनके साहिब जी ने देश हित का चोला पहनकर एक अदना से गुजराती व्यापारी गौतम अडानी को दुनियां में दूसरे नंबर तक पहुंचाने में जिस दीवानगी से काम किया उसकी पोल पट्टी अब निरंतर खुलती जा रही है।एक तरफ अडानी का ग्राफ नंबर दो से 40वां पार कर रहा है वहीं देश की गिरती छवि के साथ सरकार का बुरा हाल हो रहा है।जनता की बात तो पूछिए ही नहीं। फिर भी सत्ता का दुरुपयोग बढ़ रहा है। बीजेपी के लिए ईवीएम का कथित रूप से बड़ा सपोर्ट है ये अंदर की यानी बड़े ही राज की बात छुपी हुई है। जो डूबते घड़ी में बीजेपी अर्थात मोदी जी की डूबती नैय्या को पार कर सकता है, दिखावे के लिए कभी दीगर पार्टियों को भी जीत दिलाने में अहम भूमिका निभा लेता है।

वहीं संघ भी पशोपेश में है उसके पुराने कर्मठ सदस्य भी भाजपा की अनुशासनहीनता और गंदे राजनैतिक खेल से दुखी हैं। उधर भाजपा के लंबे चौड़े हाथ हो गए हैं जिसमें बिकाऊ मीडिया, बिकाऊ सांसद मुख्यमंत्री, विधायक,ईडी, सीबीआई वगैरह शामिल हैं। इसलिए वे अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के साथ अब संघ की बी केजरीवाल टीम को शिकार बनाने पर तुल गए हैं।जिस पर संघ को अटूट विश्वास रहा उसे ईमानदार और कर्मठ माना।उसकी सरकार बदनाम करने लगता है। इस कृत्य में भाजपा लगी हुई है। सत्येन्द्र जैन या मनीष सिसोदिया जेल जाएं इससे बदनाम केजरीवाल ही हो रहे हैं।

कभी गले का हार रहे उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया शराब नीति को लेकर बुरी तरह फंस चुके हैं। उन्हें 12 महत्वपूर्ण विभागों का मंत्री बनाया गया था।अब कह रहे हैं उनका कथित फर्जी इस्तीफा बनाने के बाद उनके विभागों को बांटने में जो चार नाम सामने आए थे उनमें से सिर्फ दो पर ही सहमति बनी है। इसके विरोध में आप के विधायक भी रस्साकशी के मूड में आ चुके हैं। दूसरी तरफ केजरीवाल के खिलाफ भाजपा ने जनजागरण मोर्चा निकालना शुरू कर दिया है जो केजरीवाल के इस्तीफे की मांग कर रहा है। वहीं कांग्रेस के भी मुख्यमंत्री से इस्तीफा मांगने की खबर है।

विदित हो कि अरविंद केजरीवाल ने चतुराई से कोई भी विभाग अपने पास नहीं रखा और अपने मंत्रियों से जमकर भ्रष्टाचार कराया। इससे पहले भी एक मंत्री सत्येन्द्र जैन जो मनी लांड्रिंग मामले में इस वक्त जेल
की हवा खा रहे हैं।इस दूषित छवि के बाद कहना लाज़मी होगा कि केजरीवाल का प्रधानमंत्री बनने का सपना स्वाहा हो गया है। क्योंकि इसी लूट की कमाई की बदौलत वे दिल्ली, पंजाब में जीते,गुजरात और अन्य प्रदेशों में उछाल भर रहे थे और भाजपा पर जब तब वार करते नज़र आते हैं।

याद करिए अरविंद केजरीवाल एक ऐसे संघी मुख्यमंत्री है जिनने दिल्ली दंगों की वीभत्सता पर दो शब्द तकन कहना गवारा नहीं समझा। किसान आंदोलन हो या इससे पूर्व सीएए का वृहद आंदोलन हो अपनी सदाशयता का कभी परिचय नहीं दिया। जो आश्वासन दिए गए वे भी आधे अधूरे ही पूरे किए गए। स्कूली क्रांति में मनीष सिसोदिया ने जो किया वह भी चुनिंदा सरकारी स्कूलों तक ही सीमित रहा।संघ की दम और सहयोग के बल पर अडानी की तरह ऊंची उड़ान भरने की तमन्ना कहीं इन्हें भी औंधे मुंह पटकनी तो नहीं दे देगी।

सिंहासन पर सवार भाजपा मतवाले हाथी की तरह इस पार्टी को ख़त्म करने पर तुली है।सुना जा रहा है कि सांसद संजय सिंह पर भी खतरे के बादल मंडराने
लगे है।दीगर विधायकों को खरीदने का दुष्चक्र भी चल रहा होगा इसमें संदेह नहीं।
संघ की हालत भी भाजपा के इन तौर तरीकों से पतली है। मोदी शाह उनके कंट्रोल से बाहर हो गए हैं। सर संघचालक मोहन भागवत जी की उपेक्षाओं के कारण गुजरात और महाराष्ट्र का द्वंद भी बढ़ रहा है। यही वजह है संघ का मुखिया मुसलमानों को अपने डीएनए वाला बता रहा है। तो ईसाई समुदाय में अपनी मुहिम चला रहा है।

उधर राहुल गांधी की प्रशंसा भी होने लगी है।ये स्थितियां बता रहीं हैं कि वे मोदी और शाह से राजपाट छुड़ाने की तैयारी में हैं। उनके अब आदर्श आदित्य योगीनाथ हैं जो अंबानी को सहलाने में लगे हैं। देवेन्द्र फड़नवीस भी प्रतीक्षा में हैं।अरविन्द केजरीवाल की अगर पोल पट्टी ना खुलती तो वे भी प्रतिस्पर्धा में अव्वल थे ही।लगता है संघ और भाजपा की दूरी अब घटने वाली नहीं है।इसका फायदा कांग्रेस को भी मिल सकता है। क्योंकि संघ की पूरी मेहनत पर गुजरात लाबी ने पानी फेर दिया है और उनकी मज़बूत मानी जा रही बी टीम टूटने की कगार पर है।

देखना यह है कि संघ अपने इस नटवरलाल के लिए अब कौन सी तैयारी करता है। क्योंकि वह भी इस वक्त अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। जो हर हालत में 2024 में बदलाव का पक्षधर है।तो दूसरी तरफ भाजपाई जमूरे भी अब तक मोदी शाह मदारी के इशारों पर नाच रहे हैं।आम जनता का ज़रुर बढ़ती मंहगाई से मोहभंग हुआ है।संघ और भाजपा दोनों के लिए यह आरपार की लड़ाई है। कल को कोई हिंडनबर्ग रिपोर्ट केजरीवाल की भी आ जाए तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए क्योंकि आजकल विदेशी मीडिया भारत पर काफ़ी मेहरबान हैं। कांग्रेस धीरे धीरे अपने वजूद की पुनर्वापसी में लगी हुई है।

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