जिन्हे आज याद नही किया जाता मगर जानिए कौन है मुगल शहेजादी रोशन आरा बेगम और उसके किरदार के बारे में कुछ खास जानकारियां
शहज़ादी रौशन आरा बेगम
हिन्दुस्तान के शहंशाह औरंगजेब आलमगीर को तख़्त तक पहुँचाने वाली उनकी बहन रौशन आरा को भी याद करना चाहिए।
रौशन आरा मुगल शहंशाह शाहजहां और मुमताज़ महल की तीसरी बेटी थीं। बला की ज़हीन, क़ाबिल और पढ़ी लिखी ख़ातून थीं। इल्म से ख़ास लगाव था। फ़न ए किताबत (Calligraphy) में अपना जवाब नहीं रखती थीं। फ़ारसी में शेर भी कहती थीं। किले में पेश आने वाले सियासी हालात से बा-ख़बर रहती थीं।
मुगल बादशाह औरंगज़ेब और रौशन आरा में बड़ी मोहब्बत थी इसलिए क़िले में होने वाले हर वाक़िये की इत्तला औरंगज़ेब को करती थीं। जब तख़्त को लेकर रस्साकशी शुरू हुई तो रौशन आरा ने खुल कर औरंगज़ेब की हिमायत की।मुगल बादशाह शाहजहां ने औरंगजेब को ख़त लिख कर दिल्ली आने को कहा और कहा कि इस मसले को निपटा लिया जाए।
तारीख़ बताती है कि शाह जहां का इरादा औरंगज़ेब को क़ैद करने के बाद मार डालने का था। जब ये बात रौशन आरा को मालूम हुई तो उस ने औरंगज़ेब को ख़त लिख कर सारी साज़िश आगाह कर दिया। इस तरह रौशन आरा ने औरंगज़ेब की जान बचाई।
1658 में सामूगढ़ की जंग के बाद शाहजहां ने औरंगजेब को बुला भेजा। वहाँ दारा शिकोह के हिमायतियों का मंसूबा ये था कि महल की औरतें औरंगजेब पर हमला कर के उसे क़त्ल कर दें। लेकिन रौशन आरा ने इस की ख़बर भी औरंगज़ेब को कर दी। इस तरह दो बार रौशन आरा ने औरंगजेब आलमगीर की जान बचा के उस पर अहसान ए अज़ीम किया।
औरंगज़ेब ने भी अपनी बहन के अहसान का खुले दिल से ऐतराफ़ किया और पादशाह बेगम का ओहदा अता किया। मुग़ल सल्तनत में औरत का सब ये बड़ा ओहदा होता था आज के दौर में अगर कहें तो मालिका या फर्स्ट लेडी। इस तरह देखा जाए तो रौशन आरा अपने ज़माने में सब से ज़्यादा ताक़तवर औरत थीं। औरंगजेब के बीमार होने पर उस ने ही मुल्क को सम्भाला और हुकुमत की।
रौशन आरा महल की सियासत का शिकार हुईं और लोगों ने आलमगीर औरंगजेब को बहन की तरफ़ से बदज़न कर दिया। ज़िन्दगी के आख़िरी दिनों में रौशन आरा शहर से बाहर अपने बनवाए हुए बाग़ रौशन आरा बाग़ में रहती थीं जो अब दिल्ली यूनिवर्सिटी के नॉर्थ कैम्पस के पास मौजूद है वहीँ उनकी 1668 ईस्वी में वफ़ात हुई और वहीँ उन की क़ब्र गाह है।
संवाद; मो अफजल इलाहाबाद