बेहद अफसोस और ताज्जुब की बात कि? कोई शख्स 12किलो मीटर तक अपनी कार से किसी लड़की की लाश को घसीटता है और उसे पता तक नहीं चलता
अगर चे कार चला रहा एक शख्स किसी दुर्घटनाग्रस्त शरीर को कई किलोमीटर तक घसीटता रहता है, तो कानून उसके अपराध को जिस श्रेणी में भी रखे, हमें मानना होगा कि एक व्यक्ति के रूप में उसने अपना नाश कर लिया है।दुर्भाग्य यह है कि समृद्धि और विकास की नई परिभाषाओं के साथ बदलते भारत में स्वयं का नाश कर चुके ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
सोच कर देखिये, एक व्यक्ति बारह किलोमीटर तक अपनी गाड़ी से एक शव को घसीटता है और उसे पता ही नहीं चलता? क्या यह बात मानी जा सकती है? उस कार में 5 लोग बैठे होते हैं और किसी को पता तक नहीं चलता? यदि सचमुच उन्हें नहीं पता चला तो यह और बुरी बात है। यदि उन्होंने जानबूझ कर किया है फिर तो वे क्रूर अपराधी हैं।पर यदि उन्होंने अनजाने में किया है तो वे अत्यंत बर्बर शहरी हैं जो अपराधियों से अधिक खतरनाक हैं।ऐसे अपराधियों को सलाखों की जगह होनी चाहिए।
खबरऐ सी है कि अपराधियों में एक दो लोग प्रभावशाली लोग थे, और खबर यह भी है कि घटना के तुरंत बाद प्रशासन ने इसे सामान्य दुर्घटना बता कर पल्ला झाड़ लिया। कोई भी सरकार कुछ भी दावे कर ले, पर अब भी किसी रसूखदार व्यक्ति की कॉलर पकड़ने से पहले हजार बार सोचना पड़ता है प्रशासन को। राजतंत्र हो या प्रजातंत्र, समरथ का दोष नहीं देखा जाता।
प्रशासन का चरित्र आम भारतीय के चरित्र से भिन्न नहीं है, हम भी तो अपनों की मदद करने के लिए नैतिक-अनैतिक के प्रश्न को भूल कर अपनी क्षमता भर सहयोग कर ही देते हैं न! प्रशासन भी वही कर रहा है।
एक पक्ष मुखर है क्योंकि उसके विपक्षी दल का नेता आरोपी है। दूसरा पक्ष चुप है क्योंकि उसका बन्दा फंसा हुआ है। अगर आरोपी पहले पक्ष का होता तो वे चुप होते और दूसरा पक्ष मुखर होता। यही इस देश का राजनैतिक चरित्र है। दुर्भाग्य यह है कि अब आमजन भी राजनीति के हिसाब से ही मुखर या चुप होता है।
अभी कई लोगों की पोस्ट पढ़ी कि लड़की oyo से निकली थी। किसी ने यह भी लिखा कि अपराधी उसके परिचित थे और इन सब ने साथ मे शराब पी थी। ये बातें शायद सही भी हों तो क्या यह चर्चा का विषय होना चाहिये? क्या oyo से निकलना या साथ में शराब पीना हत्यारों के अपराध को कम कर देता है? नहीं!
अपराधी तब भी अपराधी ही हैं और उनकी बर्बरता घृणा के ही योग्य है। हाँ, इन बातों का जिक्र कर हम अपराधियों के प्रति उमड़े गुस्से को दूसरी ओर ट्रांसफर करने का प्रयास करते हैं और स्वयं को थोड़ा नीचे गिरा लेते हैं। दुर्भाग्य यह भी है अब लगभग हर व्यक्ति की वैचारिक यात्रा ऊपर से नीचे की ओर ही हो रही है।
नए साल पर हम कितनी भी अच्छी बातें कर ले, हम एक सभ्य समाज की कसौटी पर लगातार फेल हो रहे हैं।