मौलाना अबुल कलाम आजाद की एक किताब इंडिया विस फ्रीडम से गांधीजी की एक तस्वीर

गांधी जी 31 मार्च को दिल्ली आ गए पहला जुमला जो उन्होंने मुझ से कहा वो ये था कि तक़सीम अब वाक़ई ख़तरा बन गयी है, वल्लभ भाई और जवाहर लाल नेहरू ने तो शायद हथियार डाल दिए हैं तुम्हारा क्या ख़याल है तुम भी बदल गए हो या मेरा साथ दोगे।

मैं ने जवाब दिया – मैं जैसा पहले तक़सीम का मुख़ालिफ़ था अब भी हूँ बल्कि मैं तो कहूँगा कि तक़सीम का जितना सख़्त मुख़ालिफ़ मैं अब हूँ इतना पहले कभी नहीं था मगर मैं इस बात से बेहद परेशान हूँ कि जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल ने हार मान ली है या जैसा आपने फ़रमाया हथियार डाल दिया है!

अब मुझे जो उम्मीद है आपसे है अगर आपने इस्तक्लाल के साथ तक़सीम की मुखालिफत की तो हम अब भी बच सकते हैं लेकिन आप भी दब गए तो मुझे डर है कि हिंदुस्तान तबाह हो जाएगा।

गांधी जी ने कहा – अगर कांग्रेस तक़सीम को तस्लीम करेगी तो मेरी लाश को रौंध कर करेगी जब तक मेरे जिस्म में जान है मैं तक़सीम पर कभी राज़ी नहीं होऊंगा और अगर मेरा बस चला तो कांग्रेस को भी राज़ी नहीं होने दूंगा
उसी रोज़ बाद में गांधी जी माउन्ट बेटन से मिले दूसरे दिन उनकी फिर मुलाक़ात हुई, 2 अप्रैल को वो एक बार फिर मिले |

पहली मुलाक़ात से वापसी के फ़ौरन बाद सरदार पटेल गांधी जी के पास आए और दो घंटे से ज़्यादा तखलिए में गुफ्तगू करते रहे। मुझे कुछ इल्म नहीं कि उन दोनों के बीच क्या बातें हुई? लेकिन मैं जब उसके बाद गांधी जी से मिला तो मुझे अपनी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सदमा पहुंचा मैंने देखा गांधी जी भी बदल गए हैं अभी वो खुल्लम खुल्ला तक़सीम का समर्थन तो नहीं कर रहे थे लेकिन उनकी मुखालिफत में पहली जैसी गर्म जोशी नहीं थी।

उससे भी ज़्यादा हैरानी और दुःख मुझ को इस बात से हुआ कि अब वो भी वही दलीलें पेश करने लगे थे जो मैं सरदार पटेल की ज़बानी सुन चुका था, तक़रीबन दो घंटे तक मैं उनकी मिन्नत समाजात करता रहा लेकिन कोई असर नहीं हुआ!

2अक्टूबर
गांधी जयंती

संवाद
मो अफजल इलाहाबाद

SHARE THIS

RELATED ARTICLES

LEAVE COMMENT