ऐ उम्म्त ए मोहम्मदी की शहजादियों तुम बहुत अजमत वाली हो कि तुम्हें अल्लाह के रसूल S .S. ने इज्जत नवाज दे दी!

आज की बेहतरिन बात

औरत अगर बिवी के रुप में थी तो रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया” खदीजा अगर तुम मेरी जिल्द (चमड़ी) भी मांगती तो मैं उतार कर दे देता।
जब औरत बेटी के रूप में थी तो आप ﷺ ने हमेशा खुद खड़े हो कर इस्तकबाल किया और फरमाया फातिमा मेरी जिगर का टुकड़ा है।

औरत जब बहन के रूप में थी तो आप ﷺ ने फरमाया बहन खुद आने की ज़हमत क्यूँ की तुम पैगाम भिजवा देती मैं सारे कैदी छोड़ देता और जब औरत माँ के रूप में आयी तो कदमों में जन्नत डाल दी गई और हसरत भरी सदा भी तारीख़ ने महफ़ूज किया कि फरमाया गया।

ऐ सहाबा-ए-कराम..
*काश “मेरी माँ ज़िंदा होती मैं नमाज़-ए-इशा पढ़ रहा होता मेरी माँ
मोहम्मद पुकारती, मैं नमाज़ छोड़ कर माँ की बात सुनता “औरत की तकलीफ़ का इतना एहसास फरमाया गया कि दौरान-ए-नमाज़ बच्चे के रोने की आवाज़ सुनते ही किरात मुख़्तसर कर दी।

ऐ उम्मत-ए- मोहम्मदी की बेटियों तुम बहुत अज़मत वाली हो कि तुम्हें अल्लाह के रसूल ने इज़्ज़त दी है!
आपकी नवाजिशे और रहमो करम है सारी बेटियों पर।

संवाद
मो राशिद खान

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