पढ़ेगा भारत तभी बढ़ेगा अमेरिका…
ये क्या बात है? कैसी बात है? और ये बात ही क्यों है? इसे पढ़कर एक भारतीय तो यही सब बोलेगा। हमारे भारत की जो शिक्षा व्यवस्था से पढ़कर निकलने वाले बुद्धिजीवी और उत्कृष्ट विद्यार्थी आज अमेरिका में जाना पसंद करते हैं। ऐसा क्यों?
सबसे अधिक और बड़ा कारण जो बताया जाता है वो ये कि भारत उन्हें वो सुविधाएं नहीं दे पाता जो अमेरिका जाकर उन्हें मिलती है इसलिए यहां के विधार्थी उन सुविधाओं के लालच में वहां जाना पसंद करते है। और अमेरिका को भी इससे एक बहुत विशेष फायदा ये होता है कि भारत का विद्यार्थी अमेरिका के विद्यार्थी के मुकाबले कम पैसों में काम करता है अध्ययन और अनुसंधान करता है इसलिए अमेरिका भारत की जो क्रीमी लेयर है विशेष बुद्धि और क्षमता के जो विद्यार्थी है उन्हे ही अपने देश आने का आमंत्रण देते है और अमेरिका हर तरह से उनको अपने देश में लाने की कोशिश करता है।
इसलिए वो विद्यार्थी और वो प्रतिभा अमेरिका चली जाती है और ये सुविधाओं की अपर्यप्तता भारत देश के लिए चिंता का विषय सिद्ध हो जाती है। अपनी विशेष शिक्षा के विकास हेतु आपको ये भी बता दे की कुछ विद्यार्थियों की ये भी इच्छा होती है की वो लोग अपने ज्ञान और प्रतिभा को और बेहतर बनाएं, जो दूसरे देश में जाकर संभव हो पाएगा। चूंकि हम जानते है कि अमेरिका और कई देश तकनीकी अविष्कार और अनुसंधान करने हेतु संसाधनों में भारत से आगे है इसलिए वो लोग वहां जाना पसंद करते है और ऐसी इच्छाएं दूसरे देशों के विद्यार्थियों को भी होती है।
उन देशों के कानून इस मामले में बहुत कड़े है जिन्हे गोल्डन रूल कहे तो कोई गलत बात नहीं क्योंकि ये किसी राष्ट्र की तरक्की से संबंधित चीज़े है और वो नियम यही है कि वो चले तो जाए जहा भी जाना चाहते है लेकिन उनको अपने देश में सेवाएं तो जरूर देना पड़ेगी। इसके अतिरिक्त वास्तिवकता ये भी कि वो लोग अपने देश से बाहर कोई तरक्की करना ही नहीं चाहते उनके अंदर देशप्रेम की भावना बहुत ज्यादा है।
और ऐसा भी नहीं है कि हर चीज में वो आगे है सबसे ज्यादा इंजिनियरिंग कॉलेज मेडिकल कॉलेज हाई टेक के रिसर्च इंस्टीट्यूट और बहुत सारे छोटे बड़े इंस्टीट्यूट्स भारत में है। लेकिन हमारी शिक्षा ही कुछ इस प्रकार की है जो हमें मजबूर कर देती है वहां जाने के लिए और अमेरिका भी काफी पैसे खर्च करता है आईआईटी कॉलेजेस पर इसलिए भारत की सरकार भी कुछ नहीं कर पाती क्योंकि वो कहावत है न कि जो धन देता है वो अपनी धुन बजवाता है।
इसलिए बहुत सस्ते दाम में भारत की क्रीमी लेयर वहा ब्रेन ड्रेन के नाम पर चली जाती है और भारत को इससे बहुत बड़ा नुकसान होता है। कई बार मैं सोचता हूं जो काम आनंद मोहन चक्रवर्ती ने अमेरिका में किया वही भारत में किया होता.. जो काम डॉक्टर हरगोविंद खुराना ने किया वो भारत में किया होता तो शायद मौलिक अनुसंधान को आगे बढ़ाने में बहुत मदद मिलती। हम इस देश में रहे.. पढ़ाई यहां करे.. खाए पीए यहां.. घूमें फिरे.. सब संघर्ष यहां करें .. सुख दुख सब यहां देखें और जब जरूरत हो अपनी प्रतिभा उजागर करने की.. अपने देश को ऊंचा बनाने की.. वो दूसरे देश में जाकर करें और ऐसा करते वक्त गर्व महसूस करें… ये कैसा देशप्रेम है..? ये कैसा मातृप्रेम है..?
लेकिन हम बहुत सारे ऐसे उदाहरण दूसरे देशों में और कुछएक तो भारत में भी देखते है.. कि उन देशों के विधार्थी अपने देश से बाहर काम करने के लिए जाना ही नही चाहते। चाहे उन्हे कैसा भी लालच क्यों न दिया जाए वो बाहर नहीं जायेंगे.. जो काम करेंगे देश में देश के लिए करेंगे। तो क्या कारण है ये भिन्नता क्यों दिखाई देती है वो लोग क्यों नही जा रहे जब उन्हें भारत से बेहतर या अपने देश से बेहतर सुविधाएं दूसरे देश में मिल रही है..?
उसका सबसे बड़ा कारण यही है की उनके अंदर मातृप्रेम बहुत ज्यादा है भारतीयता से बेहद लगाव है भारत प्रेम बहुत ज्यादा है। और भारत में बहुत ऐसे उदाहरण भी है जैसे भारत के महान वैज्ञानिक डॉक्टर जहांगीर भाभा, सी वी रमन और भारत के महान वैज्ञानिक और राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम। डॉक्टर कलाम को भी दूसरे देशों से बहुत आमंत्रण आएं लेकिन उन्होंने उन सभी को अश्विकारा और केवल भारत और भारत के लिए ही अपना जीवन समर्पित किया।
फर्क मातृप्रेम का है अगर हमारे अंदर मातृप्रेम है तो हम हर चीज से आगे अपने देश को रखेंगे नहीं तो जरूरी था क्या डॉक्टर कलाम को चले जाते दूसरे देश में और करते उनके लिए काम लेकिन नही उन्हे तो भारत प्रिय है उन्होंने कभी किसी दूसरे देश के लिए काम करना ही नहीं चाहा और भारतीयता को अपने हृदय में संजोए हुए काम किया और भारत को कई बार गौरवान्वित महसूस कराया क्योंकि ये बात राष्ट्र के सम्मान की है.. स्वाभिमान की है।
लेखक के बारे में: युवा लेखक मोहित शर्मा, मूल रूप से बागपत के निवासी है और विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर लेख लिखकर जन जागरूकता का संचार कर रहे है।