हमारे देश में वह कौन दो नंबरी है जिन्होंने मोदी जी को जीरो से हीरो बनना ने के प्रोजेक्ट पर अपना हजारों करोड़ों रुपयों का भंडार खोल दिया ?जानिए एक पुरानी पोस्ट का खुलासा
वैसे तो ये 4-5 साल पुरानी पोस्ट है। अदाणी अफेयर के परिप्रेक्ष्य में एक बार फिर से पेश है।
पिछले 9 – 10 साल में मोदी को जीरो से हीरो बनाने के प्रोजेक्ट पर 50 हजार करोड़ रु से ज्यादा का खर्च तो आया ही है।
वो कौन दो नंबरी हैं जिन्होने इस खर्च के लिए अपना भंडार खोला? फिर इतना पैसा नकद सूटकेसों में भरकर इधर से उधर गया होगा, ये तो कोई मूर्ख भी नहीं सोच सकता। ये आईएलएफ़एस, आईसीआईसीआई, अनिल अंबानी, सिटी बैंक, ज़ी, वगैरह जो मामले सामने आ रहे हैं,
जिनकी जांच से घबराकर न्यूयॉर्क में कैंसर का इलाज कराता जेटली अस्पताल के बिस्तर पर से उठ खड़ा होता है, जांच अधिकारी हटा दिये जाते हैं, सारी जांच एजेंसियों से लेकर सुप्रीम कोर्ट और रिजर्व बैंक तक हिला दिये जाते हैं, ये फासिस्ट सामाजिक-राजनीतिक मुहिम को फ़ाइनेंस करने वाली जंजीर की कुछ कड़ियां हैं जो अपनी कमजोरी से टूटने के कगार पर हैं।
मजबूत कड़ियां अभी टिकी हैं। पर ये तो बस आगाज है, बहुत कुछ सामने आना बाकी है।
ये सब पूंजीपति और भाजपा पार्टी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, पहला दूसरे का खर्चा चलाता है तो दूसरा सत्ता में आने के बाद पहले को देश के समस्त सम्पदा व संसाधनों को थाली में परोसकर लूटने के लिए देता है। बहुत पहले कहे रजनी पाम दत्त के शब्द याद रखने जरूरी हैं
,चीखते-चिल्लाते मह्त्वोन्मादियों, गुंडों, शैतानों और स्वेच्छाचारियों की यह फ़ौज जो फासीवाद के ऊपरी आवरण का निर्माण करती है, उसके पीछे वित्तीय पूंजीवाद के अगुवा बैठे हैं, जो बहुत ही शान्त भाव, साफ़ सोच और बुद्धिमानी के साथ इस फ़ौज का संचालन करते हैं और इनका ख़र्चा उठाते हैं।
फासीवाद के शोर-शराबे और काल्पनिक विचारधारा की जगह उसके पीछे काम करने वाली यही प्रणाली हमारी चिन्ता का विषय है। और इसकी विचारधारा को लेकर जो भारी भरकम बातें कही जा रही हैं उनका महत्व पहली बात, यानी घनघोर संकट की स्थितियों में कमजोर होते पूंजीवाद को टिकाये रहने की असली कार्यप्रणाली के संदर्भ में ही है। ऐसी कुछ घटनाएं मौजूद है जो तमाम देश वासियों को सोचने पर मजबूर करती है।
संवाद:यासीन कुरेशी