हमारे देश में बढ़ती आर्थिक असमानता और, अमीर गरीब के बीच दिनो दिन बढ़ता फांसला ये सब कितना डरावना हो सकता है?

विशेष वरिष्ठ संवाददाता

नई दिल्ली

इस तस्वीर में प्रधानमंत्री के हाथ में खाली फोल्डर देखकर मैं कल रात सटायरिकल था।
लेकिन यही पिछले 10 साल का सच है। प्रधानमंत्री के पास भारत की आम जनता के लिए झूठ के सिवा बचा कुछ भी नहीं है।सब–कुछ अदानी और अंबानी के लिए है। बावजूद इस खाली फोल्डर के, प्रधानमंत्री कल नई संसद में तीसरी इकॉनमी की बात फिर कर गए।

यह जानते हुए भी कि जीडीपी के अनुपात में देश की बचत 50 साल के सबसे निचले स्तर पर आ धमकी है।
गौर तलब हो कि 2021–22 में यह जीडीपी 7.9% थी, जो 2022–23 में 5.1% थी।
पाई–पाई जोड़ने की भारतीय संस्कृति कहां गुम हो गई? क्यों फटी धोती पर टांके जोड़कर बच्चों की शिक्षा पर खर्च करने वाला समाज आज भिखमंगा हो गया?

इस के लिए 2020–21 में भारतीय परिवारों ने 22.8 लाख करोड़ जोड़े।
2021–22 में यह आंकड़ा 16.96 लाख करोड़ पर आ गया।
2022–23 में और गिरकर 13.76 लाख करोड़ हो गया।

लेकिन जुलाई 2022 में इन्हीं परिवारों ने 35.94 लाख करोड़ का पर्सनल लोन लिया। जुलाई 2023 में देखते ही देखते यह आंकड़ा धड़ाम से उछलकर 47.31 लाख करोड़ पर पहुंच गया।
कल अंजना ओम कश्यप उछल–उछलकर अपने एआई प्रोग्राम्ड रोबोट को आज तक पर दिखा रही थी।
दरअसल, रोबोट को मोदी सत्ता से कड़वे सवाल पूछने के लिए प्रोग्राम ही नहीं किया गया है।

मीडिया में एआई तकनीक का दलाली संस्करण इस तरह घुस चुका है जीसे आप रिपोर्टिंग पर नहीं भेज सकते। हां, स्टूडियो में बिठाकर महज सत्ता को तेल मालिश जरूर करवा सकते हैं।
अगर आप इसी अवधि में औद्योगिक कर्ज को देखें तो जुलाई 2022 में यह आंकड़ा 31.82 लाख करोड़ था, जो जुलाई 2023 में 33.65 लाख करोड़ है।

साफ है कि देश के 50 करोड़ लोग ज़िंदा रहने के लिए बचत से 4 गुना ज्यादा कर्ज ले रहे हैं, जो वे फंदे में झूल जाने पर भी नहीं चुका सकेंगे।*
दूसरी ओर, लोन माफी और टैक्स माफी की कमाई से सत्ता को टुकड़े फेंककर कॉर्पोरेट्स मलाई चाट रहे हैं।
और फिर जनता से लूटकर यही कॉर्पोरेट्स लोन भी बांट रहे हैं।
ऐसे में देखा जाए तो इस देश में बढ़ती आर्थिक असमानता और अमीर–गरीब के बीच बढ़ता फासला भयावह है।

लेकिन, सत्ता की दलाली करने वाले 14 एंकरों पर पाबंदी से तिलमिलाए बीईए ने कल बैन उठाने की मांग की है। सुप्रियो प्रसाद जैसे तलवाचाट ने मीटिंग बुलाई थी।क्या इनके पास वे आंकड़े नहीं है, जो मेरे पास हैं? बिल्कुल हैं। लेकिन इन्होंने अपनी रीढ़ बेच खाई है। ईमान धर्म सब कुछ बेच खाया है।
देश , समाज, कानून, व्यवस्था, लोकशाही–सब धंस चुकी है।
अगर कुछ है तो बस तमाशा, जलसा, प्रचार। जनता को तो अचार भी नसीब नहीं!

लेकिन दलाल दलाल मीडिया को छोड़िए जनाब, सोशल मीडिया तो जिंदा है न? इस लिए
पूछिए, अपने हिस्से के सवाल। और ऐसे कुछ पेचीदा सवालों के सोशल मीडिया द्वारा जवाब तलब कीजिए कि हमारे देश के खूब पढ़े लिखे माननीय प्रधान मंत्री जी देश की करोड़ों जनता के साथ कैसा व्यवहार किए जा रहे है ? इनके लिए कितना भरोसा है समस्त जनता के दिल में और ये महामहिम जनता की भलाई के लिए आखिर करना क्या चाहते है?
बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी।

संवाद;पिनाकी मोरे

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